कविता : सिसकते रातें कटी हैं हमारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 31 मार्च 2024

कविता : सिसकते रातें कटी हैं हमारी

थोड़ा भी न समझा है हमें,

थोड़ा भी न जाना है,

बस एक बोझ कह दिया हमें,

खुशी न माना, मातम से मिलाया हमें,

अपनी खुदगर्जी में हिस्सा बनाते हमें,

बोझ बनाकर ज़ुबां से बयां करते हमें,

माना है उन्होने हमें पराया,

न मिला हमें आगे बढ़ने का सहारा,

न सुनने को मिले हमें कभी मीठे बोल,

पैदा होते ही सुनी हमने कड़वे बोल,

न जाना है उन्होंने हमें, ना समझा इन्होंने,

अपनी खुदगर्जी में घसीटा है हमें,

तभी तो लोगो को जाना है हमने,

रोते रोते कटी है हमारी रातें,

सिसकते सिसकते ज़ुबां थमी है हमारी।।




Pooja-charkha-features

पूजा

सिमतोली, कपकोट

उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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