देवरहा बाबा का समय :-
देवरहा बाबा के समय का एक संदर्भ के अनुसार 1836 - 1990 ई .माना जाता है | देवरहा बाबा जब छोटे थे तभी से एक साधु संत परिवृति के थे और काम उम्र में ही वो साधु बन कर साधु भाव सबके साथ बाटते थे। देवरहा बाबा का जीवन परिचय की बात करे तो ये एक बहुत ही उदार और भगवान में बिश्वास रखने वाले नागा साधु के भेष में रहने वाले एक योगी थे।
सरयू तट स्थित उमरिया नामक गांव में जन्म :-
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लाक/ थाना के अंतर्गत सरयू तट स्थित उमरिया नामक गांव में हुआ था। उमरिया भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक छोटा सा गांव है। यह बस्ती मंडल के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय बस्ती से 27 किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित है। कप्तानगंज से 11 कि.मी. राज्य की राजधानी लखनऊ से 191 किमी दूर स्थित है।
जनार्दन दत्त दुबे ही देवरहा बाबा थे:-
देवरहा बाबा का बचपन का नाम जनार्दन दत्त दूबे था उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था उनके तीन पुत्र थे सूर्यबली देवकली और जनार्दन। पिता जी अपने तीनों बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे । जनार्दन सबसे छोटे भाई थे। तरुणाई में ही वे बड़ी बहन का उलाहना पाकर सरयू पार कर रामनगरी आ पहुंचे। यहां कुछ दिन निवास करने के बाद वे संतों की टोली के साथ उत्तराखंड चले गए। वहां पहुंचे संतों के मार्गदर्शन में योग एवं साधना की बारीकी सीखी। समाधि को उपलब्ध होते इससे पूर्व दीक्षा की आवश्कता महसूस हुई और वे दैवी प्रेरणा से काशी पहुंचे। दीक्षा के बाद उन्हें गुरु आश्रम में भगवान की पूजा का दायित्व मिला। भदौनी निवासी पं. गया प्रसाद ज्योतिषी के यहां रहकर वे संस्कृत व्याकरण का अध्ययन करने लगे थे। कई वर्ष काशी में अध्ययनरत रहने के बाद जनार्दन दत्त स्वामी निरंजन देव सरस्वती के साथ हरिद्वार आ गये हरिद्वार कुम्भ मेले के दौरान जनार्दन दत्त का अपने पिता पं. राम यश दूबे से अचानक मिलना हो गया। पिता जी को देखते ही जनार्दन दत्त भयभीत हो गये उनके घर चलने के लिए कहने पर वह उनके साथ चलने के लिए तैयार भी हो गये थे। रास्तें में पिताजी की इच्छा अयोध्या में राम जी के दर्शन की हुई। जहां अचानक पिता जी का निधन हो गया। रामयश जनार्दन को लेकर घर की ओर चल पड़े मगर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई ।पिता को वहीं छोड़कर जनार्दन उमरिया गांव पहुंचे और अपने भाइयों को लेकर अयोध्या आए वहां पर पिता का अंतिम संस्कार किया पिताजी के निधन के बाद उनके परिवार के विरोधियों ने उन्हें आतंकित करना प्रारम्भ कर दिया। विरोधियों से बचने के लिए जनार्दन दत्त को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़ी थी ।
ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति देवरिया में:-
उसके बाद जनार्दन पुनः ब्रह्म की खोज में वापस चले गए ब्रह्म की तलाश में निकले जनार्दन दुबे की ज्योति तप साधना योग से पूरे देश में फैलने लगी पूरे देश में बड़ी बड़ी हस्तियां उनकी तरफ चली आ रही थी उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक की बात है पूरे उत्तर प्रदेश में भीषण अकाल पड़ा था । अकाल से सर्वाधिक प्रभावित गोरखपुर जिला था। आज का देवरिया जिला उन दिनों गोरखपुर जिले में ही था। भयंकर सूखे के कारण पूरे जनपद में त्राहि त्राहि मची थी। देवरिया में सरयू नदी के तट पर एक प्राचीन गांव मईल है। एक दिन अकाल ग्रस्त ग्रामवासी सरयू नदी के तट पर एकत्रित होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। देवरा (एक प्रकार का छोटा पौधा) के घने जंगलों में लम्बे समय तक बाबाजी को रुकना व छिपना पड़ा था इससे उनके केश बाल और दाढ़ी बहुत बढ़ गये थे। कोई उस जंगल में अचानक जनार्दन दत्त को देखकर उन्हे "देवरा बाबा" कह भय से वहां से भाग गया था। नदी की रेत को जनभाषा में भी देवरा कहते हैं ।वहां रहने के कारण बाबा को देवरहा बाबा कहा जाने लगा। अवधूत वेषधारी जटाधारी एक तपस्वी महापुरुष नदी तट पर प्रकट हुए उनका उन्नत ललाट मुख मंडल पर देदीप्यमान तेज आंखों में सम्मोहन देखकर उपस्थित जन अपने को रोक न सके और उस तपस्वी के सामने साष्टांग लेट आए ।यह सूचना पूरे गांव में फैल गई। देखते देखते गांव के समस्त नर- नारी दौड़कर आ गए ।कुछ ही देर में बाबा के सामने एक विशाल जनसमुदाय इकट्ठा हो गया ।बाबा सरयू नदी के जल से प्रकट हुए थे इसलिए "जलेसर महाराज" के नाम से जय - जयकार के नारे लगने लगे। बाबा से सभी मनुष्यों ने अपनी अपनी विपत्तियां कहीं ।बाबा ने सबकी बातें प्रेम पूर्वक सुनी और कहा तुम लोग घर जाओ ।शीघ्र ही वर्षा होगी ।वे बाबा का गुणगान करते हुए अपने घरों को लौट पड़े और शाम होते ही पूरा आकाश बादलों से भर गया देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी। देवरा ( नदी के रेत ) की जगह से प्रकट होने के कारण देवरहा बाबा कहे जाने लगे । "जलेसर बाबा" ही आगे चलकर " देवरहा बाबा" कहलाए। देवरहा बाबा रामभक्त थे, उनके मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तों को राम मंत्र की दीक्षा देते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहते थे। उनका कहना था-
"एक लकड़ी हृदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो।
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म लाभ संशय न जानो"।
देवराहा बाबा जनसेवा और गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे और प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने और भगवान की भक्ति में रता रहने की प्रेरणा देते थे। देवराहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तों को मुक्ति दिलाने के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।
"ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविंदाय नमो-नम:"।
बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती।” अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर साधना करते थे। दर्शनार्थ आने वाले भक्तों को वे सदमार्ग पर लेकर गए अपना मानव जीवन सफल बनाने का आशीर्वाद देते थे। वे कहते हैं, “इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने ही अवतार लिया था।” यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा और सम्मान करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है।"
देव लोक गमन :-
देवरहा बाबा ने 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया था । लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का व्यवहार बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि, पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर तैयार है। 19 जून को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदन रहित हो गया। भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। बाबा ने शारीर त्याग दिया था। अपने जीवन के अन्तिम दिनों मे वह मथुरा में रहकर पवित्र यमुना तट पर 19 जून 1990 को वह इस धरा धाम से सदा सदा के लिए चले गये।
चमत्कारों के साथ ही लंबी आयु :-
देवरहा बाबा अपने चमत्कारों के साथ ही लंबी आयु के लिए भी जाने जाते हैं. देवरहा बाबा की आयु को लेकर लोगों के बीच अलग-अलग मत है।जिनके जन्म के विषय में किसी को भी संपूर्ण ज्ञान नहीं कि उनका जन्म कब कहां और किस अवस्था में हुआ था। उनके विषय में जो कथाएं प्रचलित हैं, जो साधारण जनमानस जानता है, वह यह है कि उनका जन्म भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जिले में हुआ था। यह कथा सत्य नही है। उनका जन्म स्थान देवरिया नही बस्ती है। उनकी कर्म भूमि देवरिया में रहने के कारण वे देवरहवा बाबा के रूप में प्रसिद्ध हुए। आज वो स्थिर शरीर से मुक्ति ले चुका है लेकिन सूक्ष्म शरीर के रूप में आज भी वो हमारे साथ है, हमारे पास है, जीवन का सही मार्ग दिखाने के लिए। उनकी कही आज भी हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करती है। हम उस परम पुण्य आत्मा को हृदय से नमन करते हैं और अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं।
देवरहवा बाबा मंदिर उमरिया बस्ती :-
ब्रम्हर्षि श्री देवराहा बाबा जन्मस्थान प्रधान पीठ उमरिया जिला बस्ती में स्थापित है । यह एक विशाल भू भाग पर सरयू नदी के तट भव्य प्राकृतिक सुषमा बिखेरता है। उनके वंशज और कुल के भक्तों द्वारा पोषित यह मन्दिर विविध प्रकार के सांस्कृतिक आयोजनों की आयोजना करता रहता है। यह गांव इस मन्दिर के अलावा त्रिदेव मन्दिर तथा प्रसिद्ध बाबा निहाल दास की कुटिया वा मन्दिर के लिए भी विख्यात है। ब्रम्हर्षि श्री देवरहा बाबा जन्मस्थान प्रधान पीठ के महंत स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज रहे जो अब साकेत वासी हो चुके हैं।वर्तमान महंत स्वामी मधुसूदनाचार्य जी महाराज मन्दिर में पूजा पाठ तथा आश्रम की देख रेख कर रहे हैं। अन्य सेवक गण में इसी गांव और बाबा के कुल के दो श्रद्धालु श्रीकृष्ण शरण दूबे चार्य और प्रफुल्ल दूबे अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 25 दिसंबर 2023 को उमरिया निवासी देवरहा बाबा के कुल वंश क उनके नाती श्री मथुरा दूबे का ब्रह्म भोज सम्पन्न हुआ है । जिसमे इस क्षेत्र के पूर्व विधायक राणा कृष्ष किंकर सिंह के सुपुत्र राणा नागेश प्रताप सिंह जी ने अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित किए थे।
आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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