लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों के बीच पश्चिम बंगाल में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। संदेशखाली में तृणमूल नेता शाहजहां शेख की गिरफ्तारी और महिलाओं के उत्पीड़न का मुद्दा भी सुर्खियों में है। हैट्रिक की तैयारी में जुटे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पश्चिम बंगाल में इंट्री ऐसे समय में हुआ है जब राज्य में बीजेपी और टीएमसी के बीच संदेशखाली पर तनातनी चल रही है. हुगली के आरामबाग में पीएम मोदी द्वारा संदेशखाली का जिक्र करते ही वहां का राजनीतिक पारा सातवे आसमान पहुंच गया। जीत की गारंटी के बीच पीएम मोदी ममता के गढ़ में खूब गरजे। कहा, इंडी गठबंधन के नेता संदेशखाली पर तो चुप हैं ही, इस मामले में ममता दीदी ’आंख-कान-नाक-मुंह गांधी जी के तीन बंदरों की तरह’ बंद हो गयी है। यह अलग बात है कि जिस शाहजहां को ममता सरकार अब तक क्लिनचिट देती आ रही थी, उसे गिरफ्तारी के बाद पार्टी से बाहर कर दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या ममता बनर्जी को लग रहा है कि संदेशखाली उनपर भारी पड़ेगा? क्या पश्चिम बंगाल में संदेशखाली बनेगा चुनावी मुद्दा? क्या मोदी के गारंटी की होगी बड़ी जीत? क्या इस बार बंगाल में संदेशखाली पर खेल होवे? क्या बंगाल में चलेगी ममता की दादागिरी या मोदीगिरी? क्या सिंगुर का जादू संदेशखाली से छू होगी? मतलब साफ है पश्चिम बंगाल में संदेशखाली बनेगा बीजेपी का बूस्टर? देखा जाएं तो पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं और पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 300 सीटें पार करवाने में इस सूबे ने अहम भूमिका अदा की थी। इन दिनों पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अत्याचार का मु्द्दा छाया हुआ है, और माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों के नतीजे तय करने में यह अहम भूमिका अदा कर सकता है। 2019 के चुनावों में बीजेपी ने 42 में 18 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी क्या बीजेपी पश्चिम बंगाल में शानदार प्रदर्शन कर पाएगी, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन इसे लेकर सियासत अभी से गरम हैफिरहाल, पश्चिम बंगाल में संदेशखाली पर गदर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब हालात ये हो गए हैं कि बीजेपी ने ममता सरकार को संदेशखाली के इलाके में ही घेरने की पूरी प्लैनिंग तैयार कर ली है. इसी कड़ी में हुगली के आरामबाग में पीएम मोदी द्वारा संदेशखाली का जिक्र करते ही वहां का राजनीतिक पारा सातवे आसमान पहुंच गया है। जीत की गारंटी के बीच पीएम मोदी ममता के गढ़ में खूब गरजे। कहा, इंडी गठबंधन के नेता संदेशखाली पर तो चुप हैं ही, इस मामले में ममता दीदी ’आंख-कान-नाक-मुंह गांधी जी के तीन बंदरों की तरह’ बंद हो गयी है। मतलब साफ है मार्च महीने में बीजेपी बड़े स्तर पर महिला हिंसा और जमीन पर कब्जे के मुद्दों को उठा सकती है। इधर ममता ने बीजेपी और ईडी को घेरते हुए कहा है कि संदेशखाली में बीजेपी की साजिश चल रही है। या यू कहे बंगाल में बड़ा ’ग़दर’ होना तय है। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली पर ’खेला होबे’! क नारा सिर चढ़कर बोलेगा। बता दें, विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान टीएमसी का ’खेला होबे’ नारा बेहद लोकप्रिय हुआ था. इस बार भी संदेशखाली को लेकर ’खेला होबे’ का नारा हर जुबान पर चढ़ गया है। ममता बनर्जी से लेकर पीएम मोदी तक हर कोई मंच से बस यही कह रहा है- खेला होबे. मतलब साफ है लोकसभा चुनाव में संदेशखाली जैसे संवेदनशील मुद्दे के सहारे बड़ा खेल होने वाला है? आरामबाग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सवाल उठाते हुए कहा है की संदेशखाली तो सिर्फ झांकी है, पश्चिम बंगाल में पूरी फिल्म अभी बाकी है। जनता में खास कर महिलाओं में पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा है। अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है। उधर, ममता बनर्जी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर चुनाव आयोग ने भाजपा की मदद नहीं की होती तो वह 30 सीट भी नहीं जीत पाती। साथ ही ममता बनर्जी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में जनता ने नारा ’खेलो होबे’ को खूब सराहा। अब लेकसभा में गूंजेगा खेला होबें।
बंगाल का राजनीतिक समीकरण
पश्चिम बंगाल के राजनीतिक समीकरण को देखा जाएं तो टीएमसी व भाजना दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 42 सीटों में से बीजेपी ने 18 सीटें जीती थीं। टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं। इस बार भी टीएमसी व भाजपा अपनी-अपनी चालें चलनी तेज कर दी है। टीएमसी कानून-व्यवस्था की स्थिति, विशेष रूप से पार्टी कैडर के खिलाफ हिंसा और ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति को धार देने में जुटी है तो भाजपा मोदी के सहारे संदेशखाली को बड़ा मुद्दा बना दिया है। आरामबाग के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बारासात में महिला केंद्रित एक जनसभा में संदेशखाली की पीड़िताओं का दर्द सुनेंगे। बड़ा संदेश देने के लिए पीएम की जनसभा की तारीख छह मार्च की जगह आठ मार्च कर दी गई है। लोग संदेशखाली घटनाओं को 1980 के दशक में घटी कश्मीर की घटनाओं से जोड़कर भी देख रहे हैं, जहां हिंदू महिलाओं से इसी तरह की अशोभनीय घटनाएं घटी थीं। भाजपा का मानना है कि लोगों की यह नाराजगी लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है। संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख द्वारा हिंदू समुदाय की महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की बात पूरे पश्चिम बंगाल में फैलती जा रही है। अब संदेशखाली की तरह राज्य में कुछ अन्य मामले भी सामने आ रहे हैं, जहां तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने लोगों की जमीन हड़प ली हैं और उन्हें स्थानीय प्रशासन से प्रताड़ित किया जा रहा था। कुछ स्थानों से हिंदू समुदाय के श्रमिकों के पलायन करने की खबरों ने भी राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। यही कारण है कि इस मुद्दे का राजनीतिक असर होने की आशंका से राज्य सरकार को अपनी गलती का आभास हो गया है। शाहजहां शेख के मामले पर ममता बनर्जी के बदले सुर भी यह बताते हैं कि उन्हें भी इस मामले में अपनी गलती का एहसास हो गया है। राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 30 फीसदी है। यह आबादी कई लोकसभा क्षेत्रों और विधानसभा क्षेत्रों को अकेले दम पर प्रभावित करने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि वामपंथी दलों का शासन रहा हो, या तृणमूल कांग्रेस का, किसी के लिए भी मुस्लिमों की उपेक्षा करना संभव नहीं रह गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगभग 40 फीसदी हिंदू मतदाताओं का वोट मिला था। यदि इस चुनाव में यह आंकड़ा थोड़ा भी बढ़ जाता है, तो चुनाव परिणाम पूरी तरह बदल सकते हैं। वहीं, मुस्लिम समुदाय का वोट विधानसभा चुनाव में पूरी तरह ममता बनर्जी के साथ एकजुट हो गया था। यदि एक बार फिर ऐसा होता है तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस और वामदलों को हो सकता है।ममता के गले की हड्डी बना संदेशखाली का मुद्दा
संदेशखाली का मुद्दा बंगाल में दीदी के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह घटना राज्य में राजनीतिक माहौल को बदल सकती है। संदेशखाली के मुद्दे पर बीजेपी लगातार ममता बनर्जी को घेरने की कोशिश में जुटी है। हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी भी सामने आई है। मतलब साफ है पश्चिम बंगाल में संदेशखाली की घटना ने लोकसभा चुनाव से पहले राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बीजेपी इस मुद्दे को लेकर पूरे राज्य में एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने की तैयारी कर रही है। संदेशखाली का मामला जब से सामने आया है इसमें हर दिन कोई न कोई खुलासा हो रहा है। संदेशखाली का मामला कलकत्ता हाई कोर्ट में भी है और सुनवाई के दौरान कोर्ट की सख्त टिप्पणी सामने आ चुकी है। कोर्ट की टिप्पणी के बाद बीजेपी की ओर से टीएमसी और ममता बनर्जी पर हमला और भी तेज हो गया है। संदेशखाली के मामले के बीच राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर से 16 लोगों को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी पिछले साल राम नवमी के जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के मामले में हुई है। पिछले साल इस मामले पर राज्य में काफी हंगामा खड़ा हुआ था। इस बार संदेशखाली के मुद्दे पर पीएम मोदी कुछ ऐसा संदेश देने की कोशिश करेंगे जिसकी गूंज पूरे लोकसभा चुनाव तक सुनाई देगी। बीजेपी लगातार यह कह रही है कि एक महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद संदेशखाली में महिलाओं के कथित बलात्कार और उत्पीड़न में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। बीजेपी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की छत्रछाया में लंबे समय से महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं। टीएमसी लगातार इस मुद्दे पर बैकफुट पर है। यह घटना राज्य सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह ऐसी घटना है जो भाजपा को राजनीतिक लाभ दे सकती है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही वह हार गई लेकिन राज्य में 77 सीटें जीतीं जो 2016 में 3 सीटों से काफी अधिक थी। पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन काफी बेहतर था और पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में उस आंकड़े को पार करना चाहती है। यही वजह है कि बीजेपी संदेशखाली की तुलना नंदीग्राम से कर रही है। नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ही ममता बनर्जी के लिए सत्ता में पहुंचने का रास्ता साफ हुआ था।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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