पटना : तेजस्‍वी जी, सवर्ण प्रेम के खतरे को समझिए - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 मार्च 2024

पटना : तेजस्‍वी जी, सवर्ण प्रेम के खतरे को समझिए

  • बाप के चक्‍कर में माई के बिधुक जाने का संकट बढ़ा

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पटना, रविवार 3 मार्च को गांधी मैदान में जनविश्‍वास महारैली से वापस आकर घर में काम कर रहे थे। इसी दौरान एक साथी का फोन आया। राजद के कट्टर समर्थक। जाति के पाल हैं और वैशाली जिले के रहने वाले हैं। उन्‍होंने बात शुरू होते ही कहा कि खाली यादव से पार्टी चल जाएगी। हमने कहा कि रैली में सभी जाति-वर्ग के लोग आये थे। आप कैसे कह सकते हैं कि यादव ही आए थे। उन्‍होंने बात को आगे बढ़ाते हुए रास्‍ते में जितनी बस दिखीं, अधिकतर पर पोस्‍टर सिर्फ यादव का लगा हुआ था। हमने भी अपना पाला झाड़ते हुए कहा कि यह समस्‍या राजद और तेजस्‍वी की है, हमें क्‍यों बता रहे हैं। आप उन तक अपना मैसेज पहुंचाइए। खैर।


महारैली में भीड़ थी, उत्‍साह था, जोश था। तेजस्‍वी यादव के भाषण में भी अपील थी, उत्‍साह था। माई के सिर पर बाप चढ़कर बोल रहा था। तेजस्‍वी यादव ने खुद ही माई-बाप के अलग-अलग शब्‍दों की व्‍याख्‍या की। माई मतलब मुसलमान-यादव। बाप शब्‍द को हम पहली बार सांसद सुशील मोदी की प्रेस रिलीज में पढ़े थे। संभवत: उन्‍होंने तेजस्‍वी के बाप की व्‍याख्‍या पर प्रतिक्रिया दी थी। बाप के शब्‍दबंध में एक शब्‍द है अगड़ा। अगड़ा मतलब सवर्ण, जिसके लिए कई बार भूराबाल शब्‍द का इस्‍तेमाल किया जाता है। तेजस्‍वी यादव का अगड़ा प्रेम माई के साथ पिछड़ा और गरीब को भी हजम नहीं होता है। सवर्ण प्रेम संभव है कि तेजस्‍वी यादव के लिए एडी सिंह, मनोज झा समेत अन्‍य सवर्ण नेताओं को पचाने के लिए हाजमोला जैसा कोई पाचक हो, लेकिन अन्‍य लोगों को यह हजम नहीं होता है। लेकिन तेजस्‍वी यादव सिर्फ बोलने वाले नेता हैं, सुनने के लिए धैर्य और समय उनके पास नहीं है। उनके जो डिजाइनर हैं, उन्‍होंने सिर्फ तेजस्‍वी यादव को बोलने की कला सिखायी है। 


2020 का चुनाव परिणाम इस बात गवाह है कि राजद के कोर वोटर को सवर्ण स्‍वीकार्य नहीं हैं। 2020 में तेजस्‍वी यादव ने उन्‍हीं सीटों और इलाकों में बड़ी जीत दर्ज की थी, जिन इलाकों में राजपूत और भूमिहारों की बड़ी आबादी है। इन दो जातियों के खिलाफ अन्‍य जातियों का गोलबंद हो जाना सहज हो जाता है। इसलिए जीत आसान हो जाती है। वामपंथी दलों की बड़ी लड़ाई भी इन दो जातियों के खिलाफ रही है। इसलिए मगध, शाहाबाद, सारण, पटना आदि इलाकों में बड़ी जीत हुई थी। जैसे-जैसे क्षेत्र के हिसाब से राजपूत और भूमिहारों का प्रभाव घटता गया, महागठबंधन की जीत का आंकड़ा भी सिमटता गया। लोजपा ने जदयू, हम और वीआईपी के सभी उम्‍मीदारों के खिलाफ और सभी इलाकों में उम्‍मीदवार उतारा था, लेकिन राजद सिर्फ वहीं बड़ी जीत दर्ज की, जहां सवर्णों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभुत्‍व है।


मनोज झा या एडी सिंह तेजस्‍वी यादव की मजबूरी हो सकते हैं। उनका कार्यकर्ता माई और बाप का बड़ा हिस्‍सा सवर्णों को स्‍वीकार करने को तैयार नहीं है। महारैली के मंच से कुआं की बात होती है, लेकिन ठाकुर का कुआं  गायब हो जाता है। तेजस्‍वी यादव को सवर्ण प्रेम के पीछे छुपे खतरे को समझना होगा। बाप को खुश रखने के फेर में माई समेत पार्टी का बड़ा आधार बिधुक (नाराज होना) सकता है। इसका ख्‍याल भी तेजस्‍वी यादव को रखना चाहिए। जब तक तेजस्‍वी यादव सवर्णों के खिलाफ आक्रामक मुद्रा में नहीं आएंगे, तब तक राजद और वामदलों का कोर वोटर बहुत सक्रिय होकर चुनाव मैदान में उतरेगा, ऐसा लगता नहीं है। तेजस्‍वी यादव ने मंच से कहा कि जदयू 2024 में समाप्‍त हो जाएगा। उनके दावे को सही मान भी लिया जाए तो जदयू का वोटर तेजस्‍वी की वर्तमान सवर्ण प्रेम वाली शैली से राजद से जुटने से रहा। उस बिखरने वाले वोट को राजद से जोड़ने का कारगार हथियार भी सवर्ण विरोध ही है। 




— बीरेंद्र यादव न्यूज —

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