परीक्षा प्रश्न-पत्रों को सेट करने में वरिष्ठ, अनुभवी और सुयोग्य शिक्षकों और विषय-विशेषज्ञों की सहायता ली जाती है। परीक्षा-नियंत्रक द्वारा ऐसे सुयोग्य व्यक्तियों की एक सूची तैयार की जाती है और इस अनुमोदित पैनल में से प्रश्न-पत्र तैयार करने वालों का चयन किया जाता है। परीक्षा -नियंत्रक इस विशवास के साथ आगे बढ़ता है कि अनुमोदित महानुभाव विश्वसनीय विद्वान हैं और उनकी सत्यनिष्ठा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। दुर्भाग्य से, कुछ विद्वान आर्थिक अथवा अन्य तरह के प्रलोभनों में आकर उनके द्वारा बनाये गये प्रश्नपत्रों को लीक कर देते हैं और इस तरह से परीक्षा-प्रणाली की पवित्रता से समझौता कर लेते हैं।कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रश्न पत्रों का लीक होना हमारी परीक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौती है।यह प्रवृत्ति न केवल परीक्षा प्रणाली की निष्पक्षता को खतरे में डालती है, बल्कि परीक्षार्थियों के मनोबल को भी कम करती है। ध्यान से विचार करें तो ज्ञात होगा कि परीक्षा-नियंत्रक परीक्षा कराने की जटिल प्रक्रिया के हर पहलू की व्यक्तिगत रूप से निगरानी नहीं कर सकता। वह एक विहग तो नहीं कि हर जगह पहुंचे और हर एक पर नजर रखे। उसे तो अपने भरोसेमंद अधीनस्थों पर निर्भर रहना पड़ता है।दुर्भाग्य से, ज्यादातर इन भरोसेमंदों में से ही कुछ कर्मचारी व्यक्तिगत लाभ अथवा प्रलोभन के वशीभूत होकर बाहरी तत्वों के साथ मिलकर प्रश्न पत्र लीक करने जैसी अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। ऐसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करने की सख्त ज़रूरत है।
डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
पूर्व प्राचार्य, शिक्षाविद और लेखक
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