- अपने बच्चों को जरूर सिखाएं संस्कार वरना माता-पिता और बच्चे रहेंगे हमेशा दुखी : पंडित प्रदीप मिश्रा
शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंद
पंडित श्री मिश्रा ने भगवान शिव के चक्रों की चर्चा करते हुए कहा कि चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पडऩे पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला। इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है।
कुबेरेश्वरधाम पर आस्था का रंग, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे धाम
विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि कुबेरेश्वरधाम पर हर रोज लाखों की संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कथा का श्रवण करने पहुंच रहे है। कुछ श्रद्धालु तो ऐसे है जो पैदल चलकर की भी धाम पर पहुंच रहे है। ऐसे ही एक दर्जन से अधिक मनावर धार से धाम पर करीब 325 किलोमीटर पैदल चलकर आए श्रद्धालुओं का कहना है कि यह उनकी तीसरी यात्रा है और वह झंडा लेकर हर साल पैदल धाम पर आते है। मनावर के रहने वाले नारायण राजपूत ने बताया कि पहली बार तो हम दो लोग ही कथा का श्रवण करने आए थे, इस बार एक दर्जन क्षेत्रवासी हमारे साथ है, बाबा ने हमारी झोली भर दी है। इन श्रद्धालुओं का गुरुदेव पंडित श्री मिश्रा ने सम्मान किया।
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