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इसके पूर्व बसंत पंचमी पर बाबा विश्वनाथ की प्रतिमा का तिलकोत्सव हुआ था। हल्दी की रस्म के लिए गवनहिरयों की टोली संध्या बेला में महंत आवास पहुंची। संजीवरत्न मिश्र ने बाबा का विशेष राजसी-स्वरूप में श्रृंगार कर भोग लगाया। इसके उपरांत आरती उतारी। मंगल गीत के बीच बाबा को हल्दी लगाई गई। तेल-हल्दी की रस्म पूर्व महंत डा. कुलपति तिवारी के सानिध्य में संपन्न हुई। पूजन अर्चन का विधान उनके पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने पूर्ण किए। इस दौरान मांगलिक गीतों से महंत आवास गुंजायमान हो रहा था। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित गीत गाए गए। महंत आवास पर शिवांजलि में वृंदावन से आए भक्तों की टोली ने बाबा के हल्दी के उत्सव के बाबा के समक्ष शिव-पार्वती प्रसंग को नृत्य की भंगिमाओं और भावों के माध्यम से जीवंत किया। नृत्य सेवा की शुरुआत उन्होंने अर्धांग से की और भावनृत्य किया। पारंपरिक कथक नृत्य के अंतर्गत गणेश परन और शिव परन की प्रस्तुति विशेष रही। समापन होली गीत पर नृत्य से किया। इससे पूर्व गवनहारियों की टोली ने बाबा की पंचबदन प्रतिमा के समक्ष मंगल गीत गाए। पारंपरिक शिवगीतों में दुल्हे की खूबियों का बखान किया गया। साथ ही दूल्हन का ख्याल रखने की ताकीद भी की जा रही थी। हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए गीत गाकर महिलाओं ने भगवान शिव की रजत मूर्ति को चावल से चूमा।
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