पटना : पाटलिपुत्र में क्‍यों उलझी हुई हैं मीसा भारती - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 28 मार्च 2024

पटना : पाटलिपुत्र में क्‍यों उलझी हुई हैं मीसा भारती

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राज्‍यसभा में राजद की सांसद हैं मीसा भारती। 2016 से लगातार सासंद है। उनका कार्यकाल 2028 तक है। 2029 के लोकसभा चुनाव से महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित हो जाएगी। फिर किसी भी सीट से चुनाव में जीत आसान हो जाएगी। तो फिर वह पाटलिपुत्र में क्‍यों उलझी हुई हैं। इसी सीट से 2014 और 2019 में चुनाव हार चुकी हैं। फिर तीसरे मुकाबले की बेचैनी क्‍यों है। जबकि राज्‍य सभा और लोकसभा के सदस्‍य के रूप में वेतन, भत्‍ता और सुविधाओं में कोई अंतर नहीं है। यह भी तय है कि य‍दि चुनाव जीत जाती हैं तो राज्‍यसभा में राजद की एक सीट कम हो जाएगी। क्‍योंकि राज्‍यसभा के उपचुनाव में सत्‍ता पक्ष ही जीतेगा।


दरअसल पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ने की मीसा भारती की जिद राजनीतिक नहीं है। अहंकार को तुष्‍ट करने की जिद है। वह पाटलिपुत्र में रामकृपाल यादव को पराजित करना चाहती हैं। भाजपा के उम्‍मीदवार रामकृपाल यादव ने ही उन्‍हें दो बार चुनाव में पराजित किया है। रामकृपाल यादव राजद प्रमुख लालू यादव के सबसे विश्‍वस्‍त और करीबी थे।  2014 में  वह पाटलिपुत्र से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन लालू यादव मीसा भारती को चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसी कारण रामकृपाल यादव ने बगावत कर दी और फिर भाजपा से टिकट हासिल करने में कामयाब हो गये। उस चुनाव में लालू यादव की पुत्री और लालू यादव के विश्‍वस्‍त आमने-सामने थे। जीत भूतपूर्व शार्गिद की हो गयी। इसी सीट पर लालू यादव को उनके सबसे करीबी रंजन प्रसाद यादव ने 2009 में पराजित किया था। पाटलिपुत्र में 2009 से ही लालू यादव को अपनों से शिकस्‍त झेलनी पड़ रही है। इस दंश को मिटाने के लिए ही लालू यादव एक बार मीसा भारती से चुनाव में रामकृपाल यादव को पराजित करवाना चाहते हैं। इसलिए लगातार हारने के बाद भी रामकृपाल यादव को हराने का मोह नहीं छोड़ रहे हैं।


हम यह नहीं कह रहे हैं कि पाटलिपुत्र में लालटेन का पहरुआ कौन हो सकता है। यह राजद की समस्‍या है। लेकिन इतना तय है कि एक बेहतर रोटी के लिए तावा पर उसे उलट-पुलट करना जरूरी है। ठीक वैसे ही किसी क्षेत्र में बेहतर परिणाम के लिए उम्‍मीदवारों को बदलना भी जरूरी है। पिछले 5 वर्षों में राजद न रामकृपाल यादव का आधार कम कर पाया है और न अपने जनाधार का दायरा विस्‍तार कर पाया है। 2019 में राजद ने पाटलिपुत्र पर भाकपा माले का समर्थन हासिल करने के लिए अपने कोटे की एक सीट आरा को माले को सौंप दिया था। इसके बाद भी परिणाम अनुकूल नहीं आया।   2019 की तुलना में 2024 का समीकरण बदल गया है। वोटरों का ट्रेंड भी बदला है। गोलबंदी भी नये सिरे से हो रही है, लेकिन राजद पाटलिपुत्र में उम्‍मीदवार बदलने को तैयार नहीं है। एक अहंकार की तुष्टि के लिए अपनी संभावनाओं पर पानी फेरने का जोखिम राजद ही उठा सकता है। राजनीतिक हालात बता रहे हैं कि राजद न पार्टी में नये नेताओं को पनपने का मौका दे रहा है और न परंपरागत दायरे को तोड़ना चाहता है। इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।





--- वीरेंद्र यादव न्यूज ---

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