पटना. सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को बुधवार 6 मार्च तक निर्वाचन आयोग को डीटेल्स पेश करने का निर्देश दिया था. इस बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी डीटेल्स को जमा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का समय मांगा है. एसबीआई ने कहा है कि कोर्ट ने जो 3 हफ्ते का समय दिया था वह पर्याप्त नहीं है. एसबीआई ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉण्ड के डीटेल्स का खुलासा करने के लिए 30 जून तक समय बढ़ाने का सोमवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया. पिछले महीने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को आदेश दिया था. यू.पी.ए.दो को हराने के बाद एन.डी.ए.की सरकार 2014 में सत्तासीन हो गई.कांग्रेस मुक्त राज्य सरकार बनाने में जुटी भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानून लागू कर दिया था.प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा शुरू की गई चुनावी बांड प्रणाली के तहत, इन बांडों को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से खरीदा जाना चाहिए, लेकिन गुमनाम रूप से पार्टियों को दान किया जा सकता है.इसका भरपूर लाभ एन.डी.ए.सरकार को मिली. हालांकि इलेक्टोरल बॉन्ड का काफी विरोध हुआ. बता दें कि इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बांड जारी कर सकता है.इन्हें ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है.योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं.चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है.
केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो.योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं.इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है.हालांकि, इस प्रणाली के साथ कुछ विवाद भी जुड़े हैं.कुछ लोग यह मानते हैं कि इससे लोगों को निश्चित राजनीतिक दलों के साथ बंधन में डालने का खतरा हो सकता है और यह लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है. इस प्रणाली की तुलना में, यह भी महत्वपूर्ण है कि कैसे उसे सुधारा जा सकता है ताकि यह सबके समर्थन और प्रतिनिधित्व की दिशा में और बेहतर काम कर सके.इसमें नागरिकों को अधिक सकारात्मक और सशक्त बनाने के लिए उपाय शामिल करना भी महत्वपूर्ण है.सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.आयकर अधिनियम के तहत, किसी के चुनावी बांड दान को धारा 80 जीजी और धारा 80 जीजीबी के तहत कर-मुक्त माना जाता है. हालाँकि, दान प्राप्त करने वाला राजनीतिक दल भी आयकर अधिनियम की धारा 13 ए के अनुसार दान प्राप्त कर सकता है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भाजपा को चंदा देने वालों का नाम एस.बी.आई. द्वारा सार्वजनिक नहीं किये जाने के विरोध में पटना महानगर जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष शशि रंजन के नेतृत्व में गुरुवार 0 7 मार्च,2024 को गांधी मैदान स्थित एस.बी.आई. शाखा के पास प्रदर्शन किया जाएगा.प्रदर्शन अपराह्न 12ः30 बजे गांधी मैदान स्थित एस.बी.आई. शाखा के पास होगा.
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