मोदी जी के जिस चमक के सहारे भाजपा पंचायत से लेकर दिल्ली तक का चुनाव जीतती थी वह चमक अब फीकी पड़ गई है. दरअसल भारतीय राजनीति में कारपोरेट समर्थित मीडिया ने मोदी जी के कद को विराट बनाकर पेश किया है. इसका प्रमाण लोकसभा का ही पिछला चुनाव है. उस चुनाव के पूर्व पुलवामा और पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक ने देश में देश भक्ति का उफान पैदा कर दिया था. उसी पृष्ठभूमि में 2019 का चुनाव हुआ था. लेकिन उसके बावजूद भाजपा का वोट महज़ 38-39 प्रतिशत था. बाक़ी वोट उनके ख़िलाफ़ ही पड़े थे. इससे स्पष्ट है कि लगभग साठ प्रतिशत से ज़्यादा वोट मोदी जी के विरूद्ध पड़ा था. स्पष्ट है कि विरोधी वोटों के बिखराव की वजह से मोदी जी की जीत हुई थी. लेकिन अब गठबंधन बनने के बाद उनके विरुद्ध वोटों का बिखराव उस तरह नहीं होने वाला है. इसके अलावा मोदी जी की चमक भी अब फीकी पड़ने लगी है. मोदी जी इतना बोलते हैं, उनका चेहरा टेलीविजन से लेकर सरकारी विज्ञापनों में इतना दिखाया जाता है उससे लोगों में उब पैदा होने लगी है. हमारी परंपरा में किसी भी क्षेत्र में अति से बचने की सलाह दी गई है. मोदी जी अति की उस सीमा को पार कर चुके हैं. आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर मोदी जी इस चुनाव में तख़्त से बेदख़ल हो जाएँ तो.
शिवानन्द तिवारी
पूर्व राज्यसभा सदस्य
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