देश का लोकतांत्रिक अभिमत और समान नागरिकता एवं संवैधानिक अधिकार आन्दोलन ने सीएए—एनआरसी के पूरे पैकेज को संविधान पर हमला बता कर खारिज कर दिया है. चुनाव से पहले सीएए नियमावली की अधिसूचना ने लोकतंत्र के संवैधानिक आधार को बचाने के जनआन्दोलन की अनिवार्यता को पुन: रेखांकित किया है. मोदी सरकार को आगामी आम चुनावों में सत्ताच्युत करना जरूरी हो गया है. हम अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत समाज के सभी तबकों से — एमएसपी के कानूनी अधिकार के लिए लड़ रहे किसानों, श्रम अधिकारों के लिए लड़ने वाला मजदूर वर्ग, पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए संघर्षरत सरकारी कर्मचारियों, सुरक्षित रोजगार की मांग कर रहे युवाओं, आजादी, सुरक्षा और समान अधिकारों के लिए संघर्षरत महिलाओं, जातीय जनगणना व विस्तारित आरक्षण की मांग कर रहे वंचित लोगों, क्षेत्रीय पहचान और संघीय लोकतंत्र की संवैधानिक गारंटी की जद्दोजहद में जुटीं राष्ट्रीयताओं — से अपील करते हैं कि वे भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी सीएए के विरुद्ध समान नागरिकता आन्दोलन का साथ दें. हमें एकजुट रहना होगा ताकि जनता को बांटने, व आगामी चुनावों में फासिस्ट ताकतों को शिकस्त देने के मिशन से जनता का ध्यान हटाने की मोदी सरकार और भाजपा की साजिश नाकामयाब हो।
पटना, दिसम्बर 2019 में पास किये गये भेदभावकारी और विभाजनकारी अन्यायपूर्ण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने वाली नियमावली की अधिसूचना 2024 चुनावों की अधिसूचना आने से ठीक पहले जारी करना एक राजनीतिक साजिश का संकेत है. जैसा कि अमित शाह ने खुद सीएए की 'क्रोनोलॉजी' समझाते हुए कहा था कि इस कानून को लागू करने के बाद एनआरसी—एनपीआर को देशव्यापी स्तर पर लाया जायेगा जिसके माध्यम से दस्तावेज न दिखा पाने वाले नागरिकों को नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया जायेगा. सीएए नागरिकों को धर्म के आधार पर बांटने के मकसद से लाया गया है, जो भ्रामक रूप से गैरमुस्लिम 'शरणार्थियों' को नागरिकता देने और मुसलमानों की नागरिकता छीनने, यहां तक कि देशनिकाला देने, तक की बात करता है. लेकिन असम में की गयी एनआरसी की कवायद और देश में जगह—जगह चलाये जा रहे बुलडोजर ध्वस्तीकरण अभियानों से स्पष्ट हो चुका है कि आदिवासियों और वनवासियों समेत सभी समुदायों के गरीब इससे प्रभावित होंगे.
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