बदलते, बिगड़ते मौसम पर लिखने वाले पत्रकारों को अधिक प्रशिक्षण की जरूरत : रिपोर्ट - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 2 मार्च 2024

बदलते, बिगड़ते मौसम पर लिखने वाले पत्रकारों को अधिक प्रशिक्षण की जरूरत : रिपोर्ट

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साल-दर-साल बढ़ती तपिश मीडिया के लिए भी खबरों का एक प्रमुख विषय बन चुकी है। एक अध्ययन के मुताबिक खास तौर पर भाषायी प्रकाशनों में काम कर रहे पत्रकारों को इस गूढ़ विषय के बारे में और प्रशिक्षित करने की जरूरत है। ब्रिटेन के स्कूल ऑफ़ जियोग्राफी एंड द एनवायरनमेंट के विशेषज्ञ जेम्स पेंटर, ऑस्ट्रेलिया स्थित क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के जगदीश ठाकेर और क्लाइमेट ट्रेंड्स की विनम्रता बोरवंकर, गुंजन जैन और कार्तिकी नेगी द्वारा लिखित इस रिपोर्ट में वर्ष 2022 के मार्च से लेकर में महीने तक अंग्रेजी, हिंदी, मराठी और तेलुगू अखबारों, पत्रिकाओं और अन्य प्रकाशनों में हीटवेव की कवरेज का मूल्यांकन किया गया है। पेंटर ने आज एक वेबिनार में इस रिपोर्ट को जारी करते हुए बताया कि अध्ययन में यह पाया गया है कि अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ज्यादातर खबरों में जलवायु परिवर्तन और हीट वेव के बीच रिश्तो को सटीक तरीके से रिपोर्ट किया गया है। इनमें से 70% से ज्यादा लेखों में जलवायु परिवर्तन को वर्ष 2022 में हीट वेव को और भी ज्यादा तपिश भरी तथा बार-बार आने वाली आपदा की वजह के तौर पर पेश किया गया है। साथ ही उनमें जलवायु परिवर्तन को चरम मौसमी स्थितियों के एकमात्र कारण के तौर पर प्रस्‍तुत करने के बजाय अन्‍य पहलुओं पर भी व्‍यापक परिप्रेक्ष्‍य में बातें कही गयी हैं। इसके बरक्‍स हिंदी में छपे लेखों में से ज्यादातर में जलवायु परिवर्तन और हीट वेव के बीच में सीधा संबंध बताया गया है और उनमें कई अहम पहलुओं को शामिल नहीं किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय मीडिया हीट वेव और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध को उतनी प्रमुखता या पुरजोर तरीके से सामने नहीं रखता है जितना कि रखा जा सकता है। अंग्रेजी मीडिया के विपरीत हिंदी भाषा में जलवायु परिवर्तन की कवरेज में जलवायु परिवर्तन और हीट वेव के बीच संबंधों की रिपोर्टिंग उतनी बेहतर नहीं है। यह अलग बात है कि हिंदी मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों को अंग्रेजी रिपोर्टर्स के मुकाबले कम संसाधन और प्रशिक्षण हासिल हो पाता है। इसके अलावा एक पहलू यह भी है कि विज्ञान और स्वास्थ्य के विशेषज्ञ संवाददाताओं के बजाय सामान्य विषयों की रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाता भी हीटवेव को कवर कर रहे हैं। इसके अलावा हिंदी अखबारों का अपना अलग पाठक वर्ग और खबरों का अपना खाका है। साथ ही उन्हें जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक या क्लिष्ट बातों का अनुवाद करके लिखने में भी परेशानी होती है।


रिपोर्ट में अंग्रेजी, हिंदी और बांग्‍ला समेत विभिन्न भाषाओं के पत्रकारों के लिए दिशा-निर्देश प्रकाशित करने वाले संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूए का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इस संगठन ने निष्कर्ष निकाला है कि भारत के मीडिया आउटलेट और पत्रकार अपने दावे का कोई सबूत पेश किए बगैर जलवायु परिवर्तन को लगभग हर चरम मौसमी घटना से जोड़ देते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस बात पर जोर देना काफी अहम है कि किसी एक घटना और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध जोड़ना हीट वेव से जुड़ी खबर का एक पहलू मात्र है। रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से बचने के लिए लोगों को क्या करना चाहिए और इस गर्मी के व्यापक प्रभाव क्या होंगे यह भी खबर के महत्वपूर्ण आयाम होते हैं। पत्रकारों को इस बात पर भी बराबर ध्यान देना चाहिए कि क्या भीषण गर्मी से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिए स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी सरकारी नीतियां है या नहीं और क्या उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है अथवा नहीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों को हीट वेव की संपूर्ण रिपोर्टिंग में आने वाली बाधाओं की पहचान करने में भी पत्रकारों की मदद करनी चाहिए। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि चरम मौसमी घटनाओं की कवरेज करने वाले पत्रकारों के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराने वाले ऑनलाइन संसाधन उन्‍हें मुहैया कराए जाएं और वे भारत में बोली जाने वाली सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध हों। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए हिंदुस्तान टाइम्स के 40 लेखों को उद्धत किया गया है। इसके अलावा टाइम्स आफ इंडिया के 27, मिंट के 19, द हिंदू के 12, एनडीटीवी ऑनलाइन के 9, द न्यू इंडिया एक्सप्रेस के 7 आर्टिकल्स को उद्धत किया गया है। वहीं हिंदी भाषी न्यूज साइट्स की बात करें तो दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण के 7-7 लेखों को रिपोर्ट में उद्धत किया गया है। इसके अलावा न्यूज़ 18 के चार तथा आज तक, ज़ी न्यूज/डीएनए और अमर उजाला के तीन-तीन लेखों का उद्धरण दिया गया है। इसके अलावा तेलुगू न्यूज साइट इनाडु के दो आर्टिकल और मराठी न्यूज साइट डेली सकाल के पांच आर्टिकल्स का अध्ययन किया गया है।


इसके अलावा द टाइम्स ग्रुप के पांच, इंडिया टुडे के तीन और एनडीटीवी के दो वीडियो को भी उद्धत किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के मीडिया कवरेज में जलवायु परिवर्तन को और अधिक प्रमुखता से स्थान दिया जा सकता है, खासतौर पर हीट वेव की शुरुआती दिनों में। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के संबंध का उल्लेख करने वाले लेखो की कुल संख्या और रिपोर्टिंग की सटीकता के संदर्भ में अंग्रेजी भाषा और अन्य भाषाओं के समाचारों की कवरेज के बीच कुछ अंतर है। जलवायु परिवर्तन के लिंक का उल्लेख करने वाले अंग्रेजी लेखों की औसत संख्या 14% थी। इसके विपरीत हिंदी, तेलुगू और मराठी में लेखों के यह आंकड़े 3 से 10% के बीच हैं। अंग्रेजी को छोड़कर अन्य भाषाओं के समाचारों में भी लिक के बारे में कई प्रत्यक्ष दोहरे आधार वाले कथन शामिल थे, जिनमें गलत तरीके से यह सुझाया गया था कि जलवायु परिवर्तन हीट वेव का एकमात्र कारण है। रिपोर्ट में भारतीय भाषायी पत्रकारों के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। इनमें सामान्य रिपोर्टर्स को चरम मौसमी स्थितियों की सटीक तरीके से कवरेज करने के लिए विशेष प्रशिक्षण देने की जरूरत बताया जाना भी शामिल है। इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इन पत्रकारों को पर्यावरण विज्ञान, पर्यावरण वैज्ञानिकों और मौसम वैज्ञानिकों से ज्यादा से ज्यादा संपर्क बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इस बात को लेकर विभिन्न भाषाओं में दिशानिर्देश तैयार किये जाएं कि किस तरह से हीट वेव और अन्य चरम मौसमी घटनाओं तथा जलवायु परिवर्तन से उनके रिश्ते की सटीक तरीके से रिपोर्टिंग की जाए। रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि वह अपनी खबर में हीट वेव के सभी पहलुओं को पर्याप्त तरजीह दें और चरम मौसमी घटनाओं के लिए तैयारी करने और उन्हें लेकर प्रतिक्रिया देने के लिए संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह भी ठहराएं।


रिपोर्ट के लेखक डॉक्‍टर जगदीश ठाकेर ने वेबिनार में कहा कि लगभग 40% लोग पर्यावरण के बारे में जानना चाहते हैं लेकिन उन्हें मीडिया से पर्याप्त सूचनाओं नहीं मिल पा रही हैं। बहुत बड़ी संख्या में भारतीय ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के बारे में नहीं जानते हैं। 10 साल पहले के मुकाबले आज के हालात देखे तो कहीं ज्यादा बड़ी संख्या में भारतीय जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं। सवाल यह है कि मीडिया किस तरह से जलवायु परिवर्तन के बारे में वैज्ञानिकों के कथनों को जनता के सामने रख पाता है। उन्होंने कहा कि हाल में किए गए एक सर्वे ‘क्लाइमेट चेंज इन द इंडियन माइंड’ के मुताबिक भारत के 54% लोग यह कहते हैं कि उन्हें जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुत थोड़ी सी जानकारी है या फिर उन्होंने इसके बारे में कभी कुछ नहीं सुना। वहीं सिर्फ 9% लोग यह मानते हैं कि उन्हें जलवायु परिवर्तन के बारे में काफी कुछ पता है, लेकिन लोग जलवायु परिवर्तन को प्रत्यक्ष रूप से किसी के साथ जोड़ने में असमर्थ दिखे। ठाकेर ने कहा कि हर गुजरते साल के साथ गर्मी और भी ज्यादा भयावह रूप लेती जा रही है। हीट वेव की भौगोलिकता और मौसमी तर्ज हाल के कुछ वर्षों में काफी हद तक बदल गई है। भारतीय एजेंसियों ने आने वाले समय में हीट वेव को सबसे बड़ी आपदा के रूप में चिह्नित कर रखा है। हालांकि हीट वेव भारत के लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन वर्ष 2022 में यह जाहिर हुआ कि किस तरह से बढ़ता हीट स्ट्रेस विभिन्न क्षेत्रों पर बुरे प्रभाव डालता है। इनमें स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और कृषि खासतौर पर शामिल है। ठाकेर ने कहा कि एल नीनो प्रभाव मौजूद है और 2024 की गर्मियां शुरू होने वाली है। वैज्ञानिकों और मौसम विज्ञानों ने पहले ही इस बात की आशंका जाहिर कर दी है कि आने वाली गर्मी और भी ज्यादा गर्म होगी।


एनआरडीसी (इंडिया) के क्‍लाइमेट रेजीलियंस एण्‍ड पब्लिक हेल्‍थ प्रोग्राम के डॉक्टर अभियंत तिवारी ने वेबिनार में कहा कि हर साल भारत में गर्मी बढ़ती ही जा रही है। भारत दुनिया की 17-18 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। पिछले कुछ वर्षों में हमने स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के भयंकर परिणाम देखे हैं। साल 2015 में हीटवेव की वजह से देश के विभिन्न राज्यों में लोगों की मौतें हुई। पाकिस्तान में भी अनेक लोग मारे गए। भारत में अब गर्मी आने को है। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी इंडिया, मेट्रोलॉजी डिपार्मेंट, हेल्थ डिपार्टमेंट एक साथ आए हैं। हाल ही में उन्होंने राष्‍ट्रीय स्‍तर की कार्यशाला आयोजित की। इसका मकसद यह बताना था कि हमने पूर्व में क्या किया और भविष्य में और क्या किया जाना चाहिए। यह बहुत उत्साह जनक है कि पिछले समय से सीख कर हम अब आगे की बात कर रहे हैं। गर्मी के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मीडिया की एक बहुत बड़ी भूमिका है। मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर नरेश कुमार ने इस साल पड़ने जा रही गर्मी की संभावनाओं और उसके सम्‍भावित प्रभावों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि पिछले अधिकतर वर्षों के दौरान ज्यादातर दिनों में न्यूनतम तापमान हमेशा सामान्य से अधिक रहा और उमस भी रही। जब भी न्‍यूनतम तापमान और उमस की मात्रा ज्यादा होती है वहां पर इंसानों की सेहत पर ज्यादा बुरा असर पड़ता है। बढ़ती हुई उमस के बारे में उन्होंने कहा के हमने अपने अध्ययन में यह भी पाया है कि अधिकतम तापमान पूरी दुनिया में बढ़ रहा है और अगर हम मार्च की बात करें तो आमतौर पर तापमान कुछ बढ़ा होता है। आज की बात करें तो केरल में 37-38 डिग्री सेल्सियस तापमान है लेकिन अगर आप पिछले साल की बात करें तो दूसरा ही पैटर्न था इसलिए इस साल हम केरल के लिए गर्म और उमस भरे पैटर्न की चेतावनी जारी कर रहे हैं।

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