वाराणसी : मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा, दो लाख का जुर्माना, कहा- हाई कोर्ट जाएंगे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 13 मार्च 2024

वाराणसी : मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा, दो लाख का जुर्माना, कहा- हाई कोर्ट जाएंगे

  • बांदा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे अंतरराज्यीय गिरोह (आईएस-191) के सरगना के खिलाफ आठवीं बार सजा हुई है
  • वाराणसी की एमपी एमएलए कोर्ट ने फर्जी शस्त्र लाइसेंस से जुड़े 36 साल पुराने मामले में पाया है दोषी

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वाराणसी (सुरेश गांधी) उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में बंद पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को आर्म्स एक्ट के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. वाराणसी की एमपी एमएलए कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व विधायक को 33 वर्ष 3 महीने 9 दिन पुराने गाजीपुर के फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में मंगलवार को दोषी करार दिया था. इसके साथ ही 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. जिसके नहीं दिए जाने की स्थिति में अतिरिक्त सजा का प्रावधान किया गया है. मुख्तार अंसारी के वकील श्रीनाथ त्रिपाठी ने बताया कि वो एमपी एमएलए कोर्ट के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे. विशेष न्यायाधीश (एमपी-एमएलए कोर्ट) अवनीश गौतम की अदालत ने बुधवार को मुख्तार अंसारी को सजा सुनाई। इस दौरान मुख्तार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेश किया गया। इसी अदालत ने ही 5 जून 2023 को अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मुख्तार को अब तक सात मामलों में सजा मिल चुकी है। आठवें मामले में दोषी करार दिया गया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, मुख्तार अंसारी ने 10 जून 1987 को दोनाली बंदूक के लाइसेंस के लिए गाजीपुर के जिलाधिकारी के यहां प्रार्थना पत्र दिया था। आरोप था कि गाजीपुर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से संस्तुति प्राप्त कर उसने शस्त्र लाइसेंस प्राप्त किया था। फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद सीबीसीआईडी ने 4 दिसंबर 1990 को गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में मुख्तार अंसारी, तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर समेत पांच नामजद और अन्य अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। जांच के बाद तत्कालीन आयुध लिपिक गौरीशंकर श्रीवास्तव और मुख्तार अंसारी के विरुद्ध 1997 में आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया गया था। सुनवाई के दौरान गौरीशंकर श्रीवास्तव की मृत्यु हो जाने के कारण उसके विरुद्ध 18 अगस्त 2021 को मुकदमा समाप्त कर दिया गया। अदालत में अभियोजन की ओर से एडीजीसी विनय कुमार सिंह और अभियोजन अधिकारी उदय राज शुक्ला ने पक्ष रखा। उम्रकैद की सजा काट रहे अंतरराज्यीय गिरोह (आईएस-191) के सरगना और माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 467/120बी, 420/120, 468/120 और आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. माफिया मुख्तार की सजा को लेकर 54 पेज का फैसला आया है। फैसले के दौरान सफेद टोपी और सदरी पहने मुख्तार मुंह लटकाए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बांदा जेल से पेश हुआ। माफिया मुख्तार अंसारी को अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 420 यानी धोखाधड़ी, 467 यानी बहुमूल्य सुरक्षा, वसीयत आदि की जालसाजी और 468 यानी ठगी के मकसद से जालसाजी का दोषी पाया गया, जिसमें सजा सुनाई गई है। भारतीय दंड संहिता की इन धाराओं के तहत अधिकतम दस साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा मुख्तार अंसारी को आयुध अधिनियम की धारा 30 के तहत दोषी पाया गया है। इसके तहत अधिकतम छह माह की सजा या जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है।


आईपीसी 467/120 बी में उम्रकैद व एक लाख जुर्माना।

420/120 बी में 7 वर्ष सजा व 50 हजार जुर्माना।

468/120 बी में 7 वर्ष की सजा व 50 हजार जुर्माना।

आर्म्स एक्ट में 6 माह सजा व दो हजार जुर्माना।


21 साल से जेल में है मुख्तार

अक्टूबर 2005 में मऊ जिले में हिंसा भड़की। इसके बाद उन पर कई आरोप लगे, हालांकि वे सभी खारिज हो गए। उसी दौरान उन्होंने गाजीपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तभी से वे जेल में बंद हैं। इसी दौरान कृष्णानंद राय से मुख्तार के भाई अफजल अंसारी चुनाव हार गए। मुख्तार पर आरोप है कि उन्होंने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतिकुर्रह्मान उर्फ बाबू की मदद से 5 साथियों सहित कृष्णानंद राय की हत्या करवा दी। 2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा। मौर्य, मन्नत सिंह नामक एक स्थानीय ठेकेदार की हत्या का गवाह था। मुख्तार और उनके दोनों भाइयों को 2010 में बसपा ने निष्कासित कर दिया। 21 साल से जेल में बंद मुख्तार को मायावती ने बीएसपी से टिकट दिया था। 1988 में मुख्तार का नाम क्राइम की दुनिया में पहली बार आया। मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में मुख्तार का नाम सामने आया। इसी दौरान त्रिभुवन सिंह के कॉन्स्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या बनारस में कर दी गई। इसमें भी मुख्तार का ही नाम सामने आया।


माफिया डॉन ब्रजेश सिंह से हुई दुश्मनी

1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा शुरू कर दिया। अपने काम को बनाए रखने के लिए मुख्तार अंसारी के गिरोह से उनका सामना हुआ। यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी शुरू हो गई। 1991 में चंदौली में मुख्तार पुलिस की पकड़ में आए, लेकिन आरोप है कि रास्ते में दो पुलिस वालों को गोली मारकर वो फरार हो गए। इसके बाद सरकारी ठेके, शराब के ठेके, कोयला के काले कारोबार को बाहर रहकर हैंडल करना शुरू किया। 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले में उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया। 1996 में मुख्तार पहली बार एमएलए बने। उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया। 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के अपहरण के बाद उनका नाम क्राइम की दुनिया में देश में छा गया। अरोप है कि 2002 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया। इसमें मुख्तार के तीन लोग मारे गए। ब्रजेश सिंह घायल हो गए। इसके बाद मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे।


कृष्णानंद राय मर्डर केस?

साल 2005 में मुख्तार अंसारी जेल में बंद थे। इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को उनके 5 साथियों सहित सरेआम गोलीमार हत्या कर दी गई। हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थी। मारे गए लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थी। इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 में रहस्यमई परिस्थितियों में मृत पाया गया था। उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वालों में से अंसारी और बजरंगी के निशानेबाजों अंगद राय और गोरा राय को पहचान लिया था। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी का दुश्मन ब्रजेश सिंह गाजीपुर-मऊ क्षेत्र से भाग निकला। 2008 में उसे उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया। 2008 में अंसारी को हत्या के एक मामले में एक गवाह धर्मेंद्र सिंह पर हमले का आरोपी बनाया गया था। 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने मुख्तार पर मकोका लगाया। उनके खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।

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