आलेख : ’कुम्भ नगरी’ में दो दिग्गजों की ’वरासत’ को लेकर छिड़ी है जंग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

आलेख : ’कुम्भ नगरी’ में दो दिग्गजों की ’वरासत’ को लेकर छिड़ी है जंग

गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम किनारे बसा तीर्थराज प्रयाग में हर किसी की ख्वाहिश होती है, एकबार डूबकी लगाकर मोक्ष प्राप्त करने की। लेकिन बात चुनाव की हो तो मामला दिलचस्प हो जाता है कि इस बार संगम मईया अपना आर्शीवाद देकर किसे तारेगी? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है लगातार दो बार से जीत रही भाजपा लगायेगी जीत की हैट्रिक या विपक्ष की रणनीति कुछ कर पायेगी कमाल? फिरहाल, दो प्रतिष्ठित परिवारों के उम्मींदवारों के बीच इस बार कड़ा मुकाबला है। एक तरफ पूर्व राज्यपाल व सूबे में मंत्री रहे केशरीनाथ त्रिपाठी के पुत्र नीरज तिपाठी है तो दूसरी तरफ सपा में मंत्री रहे रेवती रमण के बेटे उज्जवल रमण मैदान में है। इन दो दिग्गज परिवारों के बेटों में किसके सिर जीत का ताज बंधेगा ये तो ये तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन दोनों प्रत्याशी जंग जीतने के लिए हर हथकंडे अपना रहे है। फिरहाल, कभी प्रधानमंत्रियों के लिए अभिशप्त रहा प्रयागराज ऐसा क्षेत्र है जहां से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्रा जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ अमिताभ बच्चन सांसद रह चुके हैं. ऐसे में इस सीट पर देश भर की निगाहें हैं. मौजूदा समय में बीजेपी का कब्जा है. यूपी की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में इलाहाबाद सीट का नाम भी आता है. ऐसे में बीजेपी के लिए इस सीट पर अपने वर्चस्व को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है, तो विपक्ष को खोया सियासी जमीन वापस पाने की बेचैनी

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धर्म, शिक्षा, राजनीति और न्यायविदों से आबाद प्रयागराज यूपी के हॉट सीटों में से एक है। यह वह लोकसभा क्षेत्र है, जहां से 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद हुए चुनाव मे कांग्रेस पार्टी से तब सदी के महानायक सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने जीत हासिल की थी। उसके बाद से यहां कांग्रेस कभी नहीं जीती। यह अलग बात है कि आजादी के बाद इस सीट पर अब तक हुए 21 बार के चुनावों में सबसे अधिक 9 बार कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की है। जबकि पांच बार जीत चुकी बीजेपी बीते दो चुनावों से मोदी-योगी लहर में यहां भगवा ही लहरा रहा है. तीसरी बार जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा हर हथकंडे अपना रही है। शायद यही वजह है कि इस बार सीटिंग सांसद रीता बहुगुणा जोशी की टिकट कांटकर भाजपा के दिग्गज लीडर एवं पूर्व राज्यपाल रहे केशरीनाथ त्रिपाठी के पुत्र नीरज त्रिपाठी पर अपना दांव लगाया है। नीरज त्रिपाठी यूपी सरकार के अपर महाधिवक्ता हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस सपा गठबंधन से रेवती रमण सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमण सिंह से है। उज्जवल यहां से दो बार सांसद रहे। इसके अलावा उनका क्षेत्र के लोगों के बीच चार दशक से मजबूत दखल है। इस तरह से यह चुनाव दो सियासी परिवारों का होने से भी दिलचस्प हो गया है। ऐसे में सभी की नजर बसपा पर है। बसपा ने अभी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। जबकि अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने आदिम समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसराज कोल को यहां से उम्मीदवार घोषित किया है। वह यमुनापार के नारीबारी स्थित मवैइया कला गांव के रहने वाले हैं। हंसराज कोल वर्ष 2002, 2007 में बारा विधानसभा से सीपीआइएमएल से चुनाव लड़ चुके हैं। वर्ष 2014 में इलाहाबाद संसदीय सीट से निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या 2024 में बीजेपी को जीत की हैट्रिक लगाने से रोक पाएगा ईडी गठबंधन? प्रयागराज लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभाएं आती हैं. इसमें मेजा, करछना, प्रयागराज दक्षिण, बारा और कोरांव शामिल है. बारा और कोरांव विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. साल 2022 विधानसभा चुनाव में 4 सीटों पर एनडीए और एक सीट पर सपा को जीत मिली है. मेजा विधानसभा सीट से सपा के संदीप सिंह पटेल और बारा सीट से अपना दल की वाचस्पति ने जीत हासिल की है. इसके अलावा 3 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है. करछना से पीयूष रंजन निषाद, कोरांव से राजमणि कोल और प्रयागराज दक्षिण से नंद गोपाल गुप्ता विधायक चुने गए हैं. प्रयागराज दक्षिण से विधायक नंद गोपाल गुप्ता नंदी प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता हमेशा निर्णायक रहे हैं। इसके बाद पटेल, बनिया, कायस्थ और मुस्लिम मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करते हैं।


इतिहास

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प्रयागराज प्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक है। यह नगर, जिसे प्राचीन समय में ’प्रयाग’ नाम से जाना जाता था, अपनी सम्पन्नता, वैभव और धार्मिक गतिविधियों के लिए जाना जाता रहा है। भारतीय इतिहास में इस नगर ने युगों के परिवर्तन देखे हैं। बदलते हुए इतिहास के उत्थान-पतन को देखा है। यह नगर राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक गरिमा का गवाह रहा है तो राजनीतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र भी रहा। इलाहाबाद को ’संगम नगरी’, ’कुम्भ नगरी’ और ’तीर्थराज’ भी कहा गया है। ’प्रयागशताध्यायी’ के अनुसार काशी, मथुरा, अयोध्या इत्यादि सप्तपुरियां तीर्थराज प्रयाग की पटरानियां हैं, जिनमें काशी को प्रधान पटरानी का दर्ज़ा प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चार वेदों की प्राप्ति के पश्चात् ब्रह्मा ने यहीं पर यज्ञ किया था, इसीलिए सृष्टि की प्रथम यज्ञ स्थली होने के कारण इसे प्रयाग कहा गया। प्रयाग अर्थात् ’यज्ञ’। कालान्तर में मुग़ल बादशाह अकबर इस नगर की से काफ़ी प्रभावित हुआ। उसने भी इस नगरी को ईश्वर या अल्लाह का स्थान कहा और इसका नामकरण ’इलहवास’ किया अर्थात् “जहां पर अल्लाह का वास है“। परन्तु इस सम्बन्ध में एक मान्यता और भी है कि ’इला’ नामक एक धार्मिक सम्राट, जिसकी राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी, के वास के कारण इस जगह का नाम ’इलावास’ पड़ा। कालान्तर में अंग्रेज़ों ने इसका उच्चारण इलाहाबाद कर दिया। यहां हर 12 साल में कुंभ मेला लगता है। यहां प्रयागराज उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग, राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय है। स्वरुप रानी नेहरु अस्पताल, मोतीलाल नेहरु अस्पताल, कमला नेहरु अस्पताल यहां के कुछ अस्पताल हैं। प्रयागराज किला, स्वराज भवन, रानी महल यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। हनुमान मंदिर, हनुमत निकेतन, सरस्वती कूप यहां के कुछ धार्मिक स्थल हैं। संगम स्थल को त्रिवेणी भी कहते हैं और यह स्थल हिंदुओं के लिए बेहद पवित्र माना जाता है. यह शहर शिक्षा नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चौथा सबसे पुराना यूनिवर्सिटी है.


2014 व 2019 में बीजेपी जीती

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2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के श्यामा चरण गुप्ता सपा के रेवती रमण सिंह को 62 हजार 9 मतों से मात देकर जीत हीसिल की. बीजेपी के श्यामा चरण गुप्ता को 3,13,772 वोट मिले तो वहीं सपा के रेवती रमण सिंह को 2,51,763 वोट मिले. बसपा की केशरी देवी पटेल को 1,62,073 वोट मिले और कांग्रेस के नंदगोपाल नंदी को 1,02,453 वोट मिले थे. जबकि साल 2019 आम चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी ने जीत दर्ज की थी. जोशी को 494454 वोट मिले थे. जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के राजेंद्र सिंह पटेल को 3 लाख 10 हजार 179 वोट मिले थे. इस सीट पर तीसरे नंबर कांग्रेस के योगेश शुक्ला 31953 वोट हासिल हुए थे.


जातीय समीकरण

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इस सीट पर ब्राह्मण, कुर्मी, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता है. एक अनुमान के मुताबिक 2.35 लाख ब्राह्मण, 2 लाख मुस्लिम, 2.10 कुर्मी और सवा लाख यादव वोटर हैं. इसके अलावा 50-50 हजार राजपूत और भूमिहार हैं. इस सीट पर डेढ़ लाख वैश्य, 80 हजार मौर्य और कुशवाहा, एक लाख कोल, .125 निषाद-बिंद, एक लाख विश्वकर्मा और प्रजापति वोटर हैं. इस सीट पर 40 हजार पाल बिरादरी का भी वोट है. इस सीट पर ब्राह्मण तथा भूमिहार मतदाताओं की निर्णायक भूमिका मानी जाती है। वहीं, पिछड़ों में निषाद, कुर्मी मतदाताओं की अधिक संख्या है। इस सीट पर कोल मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है। हालांकि, चुनावों में इस सीट पर अगड़ी जाति के नेताओं का ही वर्चस्व रहा है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अब तक सभी चुनावों में अगड़ी जाति के नेता ने ही जीत हासिल की है। इसी समीकरण को देख भाजपा ने नीरज त्रिपाठी, कांग्रेस ने सपा से आए उज्ज्वल रमण सिंह को उम्मीदवार बनाया है।


दिग्गजों की कर्मस्थली रही प्रयागराज

प्रयागराज संसदीय क्षेत्र ने कई बड़ी शख्सियतों को सदन पहुंचाया है. देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह यहीं संसद चुने गए हैं. जबकि बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी एक बार संसद में प्रयागराज का प्रतिनिधित्व किया है. दिग्गजों की लिस्ट में पुरषोत्तम दास टंडन से लेकर हेमवती नंदन बहुगुणा और छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्रा व मुरली मनोहर जोशी का नाम भी शामिल है. ऐसे में इस सीट पर देश भर की निगाहें रहती हैं.


कुल मतदाता

2011 की जनगणना के अनुसार प्रयागराज की आबादी 59,54,390 है. लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 901 है और साक्षरता दर 72.3 फीसदी है. कुल मतदाता 1693447 हैं। 927964 पुरुष और 765288 महिला हैं।


कब कौन जीता

इस सीट पर 2019 तक 16 बार लोकसभा चुनाव और 3 बार उपचुनाव हुए हैं. 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. 1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में स्वतंत्रता सेनानी श्रीप्रकाश कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और सांसद चुने गए. इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री 1957 में इस सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे और लगातार दो बार जीत हासिल की. इसके बाद 1967 में हरिकृष्णा शास्त्री और 1971 में हेमवती नंदन बहुगुणा सांसद चुने गए थे. वह 1974 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. 1984 में अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा को हराकर यहां पर बड़ी जीत हासिल की थी. कांग्रेस के इस विजयरथ को जनेश्वर मिश्रा ने रोका था. 1973 में भारतीय क्रांति दल से जनेश्वर मिश्रा उतरे और सांसद बने. इमरजेंसी के बाद 1977 में यहां कांग्रेस का वर्चस्व जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले जनेश्वर मिश्र ने ढहाया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ प्रताप सिंह को करीब 90 हजार मतों से हराया, जिन्हें राजा मंडा के नाम से भी जाना जाता था। इसके बाद 1984 में अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर यहां से सांसद बने. 1988 के उपचुनाव में वीपी सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस के सुनील शास्त्री को हराया था। बसपा संस्थापक कांशीराम तीसरे स्थान पर रहे थे। इलाहाबाद सीट पर बीजेपी का पहली बार खाता 1996 में खुला था. बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी 1996 से 1999 तक लगातार तीन बार जीत हासिल की. 2004 और 2009 में सपा के रेवती रमण सिंह जीते थे. 2014 में यह सीट बीजेपी एक बार जीतने में कामयाब रही. बीजेपी के श्याम चरण गुप्ता ने सपा के रेवती रमण सिंह को शिकस्त दी थी. लेकिन इस बार के चुनाव में श्यामा चरण गुप्ता बीजेपी का दामन छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं. खास यह है कि देश आजाद होने के बाद पहला लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प रहा। क्योंकि तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पंडित जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद से चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव की एक और खास बात कि तब यहां से तीन सांसद चुने गए थे। 1951-52 में लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट का कहीं भी अता-पता नहीं था। तब इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट (ईस्ट) कम जौनपुर डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) और इलाहाबाद वेस्ट नाम से दो संसदीय सीट थीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू जिससे चुनाव लड़े थे वह तब इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट (ईस्ट) कम जौनपुर डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) के नाम से थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू जिससे चुनाव लड़े थे वह तब इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट (ईस्ट) कम जौनपुर डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) के नाम से थी। उस चुनाव में नेहरू जिस सीट से चुनाव लड़े थे, उसमें दो सांसदों को चुना जाना था। इसी वजह से तब कांग्रेस ने पंडित नेहरू संग मसुदियादीन को भी प्रत्याशी घोषित किया। उस समय कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी थी। इलाहाबाद वेस्ट सीट से कांग्रेस ने श्रीप्रकाश को प्रत्याशी घोषित किया। तब इलाहाबाद ईस्ट सीट से पंडित नेहरू ने 233571 मत प्राप्त किए, जबकि दूसरे स्थान पर आने वाले मसुरियादीन को 181700 मत मिले। कुल पड़े मतों में से 68 फीसदी मत जवाहर लाल नेहरू और मसुरियादीन को ही मिल गए। इससे तब इलाहाबाद ईस्ट सीट से दो सांसद चुने गए। इसी तरह इलाहाबाद वेस्ट सीट की बात करें तो श्री प्रकाश को 53 फीसदी मत मिले, जबकि दूसरे स्थान पर किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी) के आरएन बसु रहे। तब उन्हें 25 फीसदी मत मिले। इस तरह से पहले लोकसभा चुनाव में प्रयागराज तीन सांसद चुने गए और तीनों ही कांग्रेस पार्टी के रहे।


मुद्दे

विकास और स्थानीय मुद्दे कुंभ की वजह से इस संसदीय क्षेत्र में भी काफी काम हुआ हैं। हाईकोर्ट, रामबाग व प्रयाग स्टेशन के पास फ्लाई ओवर का निर्माण, प्रमुख चौराहों का सौंदर्यीकरण व सड़कों का चौड़ीकरण प्रमुख है। बारा, कोरांव, मेजा, शंकरगढ़ में कृषि योग्य भूमि कम है। यह इलाका विकास की दौड़ में पिछड़ा है। पेयजल व सिंचाई साधन का अभाव गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी हमेशा से मुद्दा रहे हैं। वादे हुए पर बेमानी रहे। नैनी औद्योगिक क्षेत्र में मोदी सरकार बड़े उपक्रमों की स्थापना नहीं करा सकी। एचएएल की अनुषांगिक कंपनी यहां जरूर आईं। यही एक उपलब्धि रही है।


कोई नहीं तोड़ सका अमिताभ की जीत का रिकार्ड

इलाहाबाद सीट का जिक्र होते ही सभी को अमिताभ बच्चन का नाम जरूर याद आ जाता है। इलाहाबाद सीट पर सबसे ज्यादा मतों से जीत का रिकार्ड भी फिल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन के ही नाम है। अमिताभ बच्चन ने 1984 के लोकसभा चुनाव में 1,87,795 वोटों से जीत कर यह किर्तिमान रचा था। 2019 में भाजपा से चुनाव लड़ीं रीता जोशी ने भी 1,84275 वोटों से जीत दर्ज किया था, लेकिन अमिताभ बच्चन के रिकार्ड को नहीं तोड़ पाईं। बता दें, 1984 में कांग्रेस ने इलाहाबाद से फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन को टिकट दिया। उनके सामने लोकदल से हेमवती नंदन बहुगुणा उम्मीदवार थे। बहुगुणा ने कांग्रेस में रहते हुए इस क्षेत्र के विकास के लिए कई बड़े काम किए थे, लेकिन अमिताभ बच्चन के स्टारडम के आगे उनकी राजनीतिक हैसियत छोटी पड़ गई। अमिताभ ने 1.88 लाख वोटों से जीत हासिल की, जो इस इस सीट पर जीत का सबसे बड़ा आंकड़ा है। बाद में बोफोर्स घोटाला सामने आने के बाद अमिताभ ने राजनीति से संन्यास ले लिया। 1988 में हुए उपचुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विश्वनाथ प्रताप ने कांग्रेस के सुनील शास्त्री को करीब 1.10 लाख वोटों से शिकस्त दी। 89 के चुनाव में जनता दल प्रत्याशी और छोटे लोहिया के रूप में मशहूर जनेश्वर मिश्र ने कांग्रेस की कमला बहुगुणा को करीब 39 हजार वोटों से हराया। 1991 में हुए आम चुनाव में यह सीट फिर जनता दल को मिली। जनता दल की सरोज दुबे ने बीजेपी प्रत्याशी श्यामा चरण गुप्ता को करीब 5000 मतों से शिकस्त दी।


 




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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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