मै बेचैन हूं तकलीफ़ में हूं।
घर की दिक्कतों से हूं परेशान।
साथ नहीं रह पा रहा मैं।
कही ये चिंता ले ना ले मेरी जान।।
तभी एक दोस्त मिला और कहने लगा।
ले कर ले भाई थोड़ा नशा।।
मैं करना तो नही चाहता था।
पर मन चाहता थोड़ा आराम।।
वो दिन तो गुज़रे मज़े मज़े में।
पर दूजे दिन मैं तड़प रहा था।
कोई प्यार से भी बुलाता तो।
मैं बेमतलब का भड़क रहा था।।
वो थी शुरुआत बर्बादी की मेरी।
मैं करने लगा था रोज नशा।
सोचा ना तब इसका परिणाम।।
सूख रहा था गला मेरा।
लग रही थी बार बार प्यास।
बेचैन था मैं, हो गया था मुझको।
अपनी बर्बादी का एहसास।।
हाल था मेरा बेहाल।
रोक ना पाया था मैं खुद को।
लग चुकी थी लत तब मुझको।।
मैं होने लगा था बदनाम।
उस अनजानी गलती का मैं।
अब भुगत रहा हूं अंजाम।।
नीतू रावल
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड
चरखा फीचर
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