कविता : क्यो करते हो नशा? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

कविता : क्यो करते हो नशा?

क्यों करते हो नशा?

नशा है खराब बहुत।

क्यों नहीं छोड़ देते हो तुम।

बीड़ी, सिगरेट और शराब।।

करता है यह आंतो को खराब।

यह तुम्हारी जिंदगी को।

कर देती है पूरा बर्बाद।

पीते वक्त क्यों नहीं करते हो।

घर वालों को तुम याद।।

कितना सताते को उन्हें तुम पीकर।

इतना दुख होता है उन्हें।

सोचते हैं फिर क्या करे जीकर।

लेकिन तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

याद सिर्फ रहता है सेवन करना है नशे का।।




Diksha-charkha-feature

दीक्षा

कन्यालीकोट, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: