नवरात्र में मां दुर्गा के पूजन और उनकी उपासना का विशेष महत्व है। नवरात्रि पूजन वैज्ञानिक रूप से भी बहुत लाभकारी माना गया है। नवरात्री में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि शुरू होती है। इस साल प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल की रात्रि को लगभग 11 बजकर 51 मिनट से शुरू हो जाएगी, लेकिन उदया तिथि की मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि का आरंभ 9 अप्रैल को ही होगा। इस दिन कलश स्थापना के साथ शक्ति आराधना प्रारंभ होगी। जबकि नवरात्रि का समापन 17 अप्रैल को कन्यापूजन और भंडारों के साथ रामनवमी के अवसर पर होगा। नवरात्रि की शुरुआत मंगलवार को हो रही है, इसलिए माता इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी। माता की सवारी के अनुसार ही नवसंवत्सर के बारे में आकलन किया जाता है। 9 अप्रैल से नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही हिंदू नवसंवत्सर 2081 की भी शुरुआत होगी। हालांकि माता का घोड़े पर सवार होकर आना शुभ संकेत नहीं माना जाता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भी माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं तो सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। घोड़े को तीव्रता, युद्ध आदि का प्रतीक माना जाता है। इसलिए जब भी माता की सवारी घोड़ा होता है तो राजनीतिक गलियारों में हलचल देखने को मिलती है। देश-दुनिया में जंग के आसार बन सकते हैं और कोई बड़ा राजनीतिक परिवर्तन भी देखने को मिल सकता है। मतलब साफ है 2023 जैसा ही सबकुछ होने वाला है। युक्रेन और रूस के बीच स्थितियां गंभीर होती गईं वहीं इजराइल और हमास के बीच भी जंग देखी गई। इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिला। इस तरह साल 2024 में भी हालात देखने को मिल सकते हैं। कुछ देशों के बीच शीत युद्ध जैसे हालात बन सकते हैं वहीं जंग की स्थितियां भी बन सकती हैं। इसके साथ ही घोड़े पर माता का सवार होकर आना प्राकृतिक आपदा का भी कारण बन सकता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहमागहमी बढ़ेगी और छोटे राजनीतिक दल राजनीति में बड़ा परिवर्तन लेकर आ सकते हैं। यानि आने वाले संवत्सर में कई सामाजिक और राजनीतिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं। राजनीतिक उथल-पुथल और प्राकृतिक आपदाओं के कारण आम जनता को भी दिक्कतों का सामना इस साल करना पड़ सकता है।नवरात्र शक्ति महापर्व पूरे भारतवर्ष में बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में शक्ति का महत्व स्वयं सिद्ध है। उसकी उपासना के रूप अलग-अलग हैं। समस्त शक्तियों का केन्द्र एकमात्र परमात्मा है परन्तु वह भी अपनी शक्ति के बिना अधूरा है। सम्पूर्ण भारतीय वैदिक ग्रंथों की उपासना व तंत्र का महत्व शक्ति उपासना के बिना अधूरा है। चैत्र नवरात्रि के 9 दिन बेहद पवित्र होते हैं. इन 9 दिनों में मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती है. घटस्थापना करके अखंड ज्योति जलाई जाती है. हर साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि शुरू होती है. इसी दिन से हिंदू नव वर्ष भी प्रारंभ होता है. चैत्र शुक्ल नवमी को राम नवमी के दिन नवरात्रि समाप्त होती हैं. राम नवमी को प्रभु राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है. साथ ही इस नवरात्र में अनेक शुभ योग भी बन रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार नवरात्र में इस बार पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। यह सर्व कार्य सिद्धि के लिए बहुत ही शुभ माना जा रहा है। इस दिन अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण सुबह 07 बजकर 32 से हो रहा है। ये दोनों योग संध्याकाल 05 बजकर 06 मिनट तक है। श्रीमद् देवी भागवत व देवी ग्रंथों के अनुसार इस तरह के संयोग कम ही बनते हैं। इसलिए यह नवरात्र देवी साधकों के लिए खास रहेगी। शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती की आराधना का पर्व माह शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से सनातनी नववर्ष (नवसंवत्सर) का आरंभ माना जाता है। नववर्ष के पंचांग की गणना की जाती है। ज्योतिष के मुताबिक सनातनी नववर्ष में चंद्र गणना पर आधारित काल गणना पद्धति प्रमुख है। इसमें चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्षों का एक मास होता है। इसके आधार पर विक्रम संवत की गणना की जाती है। शक्ति से तात्पर्य है ऊर्जा यदि ऊर्जा को अपने अनुसार चलाना है तो उस पर आधिपत्य करना पड़ेगा। मतलब साफ है या तो शक्ति को हराकर या तो शक्ति को जीतकर उसे हम अपने पराधीन कर सकते हैं। परन्तु यह होना जनमानस से संभव नहीं था इसलिए भारत में उससे समस्त कृपा पाने के लिए मां शब्द से उद्धृत किया गया। इससे शक्ति में वात्सल्य भाव जाग्रत हो जाता है। अधूरी पूजा व जाप से भी मां कृपा कर देती है। इसलिए सम्पूर्ण वैदिक साहित्य और भारतीय आध्यात्म शक्ति की उपासना प्रायः मां के रूप में की गई है। यही नहीं शक्ति के तामसिक रूपों में हाकिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी आदि की पूजा भी तांत्रिक और साधक मां के रूप में करते हैं। मां शब्द से उनकी आक्रमकता कम हो जाती है और वह व्यक्ति को पुत्र व अज्ञानी समझ क्षमा कर अपनी कृपा बरसती हैं। नवरात्रि का समापन बुधवार को होने पर माता के प्रस्थान की सवारी गज या हाथी होती है. माता का हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करना शुभ संकेत होता है. यह अच्छी बारिश, खुशहाली और तरक्की का संकेत होता है. अच्छी फसल होती है और किसानों को फायदा होता है.
शुभ मुहूर्त
इस साल चैत्र नवरात्रि पर घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल की सुबह 6 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 23 मिनट है. यानी कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना और पूजा-पाठ के लिए 4 घंटे 11 मिनट का शुभ समय मिलेगा. वहीं घटस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त 9 अप्रैल की दोपहर 11.57 - दोपहर 12.48 (51 मिनट) तक है।तिथियां
प्रतिपदा तिथि व्रत 9 अप्रैल - मां शैलपुत्री की पूजा
द्वितीया तिथि व्रत 10 अप्रैल - मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
तृतीया तिथि व्रत 11 अप्रैल - मां चंद्रघंटा की पूजा
चतुर्थी तिथि व्रत 12 अप्रैल - मां कुष्माण्डा की पूजा
पंचमी तिथि व्रत 13 अप्रैल - मां स्कंदमाता की पूजा
षष्ठी तिथि व्रत 14 अप्रैल - मां कात्यायनी की पूजा
सप्तमी तिथि व्रत 15 अप्रैल - मां कालरात्री की पूजा
अष्टमी तिथि व्रत 16 अप्रैल - मां महागौरी की पूजा
नवमी तिथि व्रत 17 अप्रैल - मां सिद्धिदात्री की पूजा, नवमी पूजन
घटस्थापना विधि
सबसे पहले प्रतिपदा तिथि पर सुबह जल्दी स्नान करके पूजा का संकल्प लें। फिर इसके बाद पूजा स्थल की सजावट करें और चौकी रखें जहां पर कलश में जल भरकर रखें। इसके बाद कलश को कलावा से लपेट दें। फिर कलश के ऊपर आम और अशोक के पत्ते रखें। इसके बाद नारियल को लाल कपड़े से लपेट कर कलश के ऊपर रख दें। इसके बाद धूप-दीप जलाकर मां दुर्गा का आवाहन करें और शास्त्रों में मां दुर्गा के पूजा-उपासना की बताई गई विधि से पूजा प्रारंभ करें। कलश स्थापना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है, कहते हैं जहां घट स्थापित होते हैं वहां दुख-दरिद्रता का नाश होता है और मां दुर्गा की कृपा से वैवाहिक जीवन में मधुरता और संतान सुख की प्राप्ति होती है. जिन घरों में नवरात्रि के दौरान घटस्थापना की जाती है वहां कभी अंधेरा न होने दे, घर सूना न छोड़े. अखंड ज्योत जलाई है तो उसमें ध्यानपूर्वक तेल या घी डालते रहें. 9 दिन तक अखंड ज्योति जलनी चाहिए.घर में गंदगी ना रखें
प्याज-लहसुन के साथ-साथ मांसाहारी भोजन भी ना खाएं.
नवरात्रि के 9 दिन बाल, नाखुन काटने और दाढ़ी-मूंछ बनवाने के लिए भी मना किया जाता है.
व्रतधारी को नवरात्रि के दौरान काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए.
सुबह शाम विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करें
नवरात्रि के दौरान सात्विक भोजन ही ग्रहण करें.
इस मंत्र से करें मां दुर्गा को प्रसन्न
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
नवरात्रि के रंगों का महत्व
लाल (9 अप्रैल, पहला दिन )ः ऊर्जा, शक्ति और साहस का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के शक्तिशाली रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
गहरा नीला (10 अप्रैल, दूसरा दिन )ः आत्मविश्वास, शक्ति और सफलता का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के शांत और शक्तिशाली रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
पीला (11 अप्रैल, तीसरा दिन )ः ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के ज्ञान और शक्ति के रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
हरा (12 अप्रैल, चौथा दिन )ः प्रकृति, विकास और समृद्धि का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के जीवनदायी और पोषण करने वाले रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
स्लेटी (ग्रे) (13 अप्रैल, पांचवां दिन )ः तटस्थता, संतुलन और ज्ञान का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के शांत और ज्ञानी रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
नारंगी (14 अप्रैल, छठा दिन)ः उत्साह, खुशी और रचनात्मकता का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के उत्साही और रचनात्मक रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
सफेद (15 अप्रैल, सातवां दिन)ः शांति, पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के शांत और दयालु रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
गुलाबी (16 अप्रैल, आठवां दिन)ः प्रेम, करुणा और क्षमा का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के प्रेमपूर्ण और दयालु रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
आसमानी नीला (17 अप्रैल, नौवां दिन )ः प्रकृति की विशालता एवं अखंडता का प्रतीक, यह देवी दुर्गा के शांत और दयालु रूप का प्रतिनिधित्व करता है.
शक्ति की पूजा के लिए नवरात्र का अत्यधिक महत्व
भारत में शक्ति की पूजा के लिए नवरात्र का अत्यधिक महत्व है। नवरात्र में प्रायः वातावरण में ऐसी क्रियाएं होती हैं और यदि इस समय पर शक्ति की साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं। नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है, क्रमशः चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। लेकिन ज्यादातर इन्हें चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है। उसका प्रमुख व्यवहारिक कारण जन सामान्य के लिए आर्थिक, भौतिक दृष्टि से इतने बड़े पर्व ज्यादा दिन तक जल्दी-जल्दी कर पाना सम्भव नहीं है। चारो नवरात्र की साधना प्रायः गुप्त साधक ही किया करते हैं जो जप, ध्यान से माता के आशीर्वाद से अपनी साधना को सिद्धि में बदलना चाहते हैं। नवरात्र को मनाने का एक और कारण है जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है। वर्ष के दोनों प्रमुख नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में अर्थात् दो ऋतुओं के सम्मिलन में मनाए जाते हैं। जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्रायः शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया।नौ देवियों की साधना
शक्ति साधना में मुख्य रूप से नौ देवियों की साधना, तीन महादेवियों की साधना और दश महाविद्या की साधना आदि का विशेष महत्व है। नवरात्र में दशमहाविद्या साधना से देवियों को प्रसन्न किया जाता है। दशमहाविद्या की देवियों में क्रमशः दशरूप- काली, तारा, छिन्नमास्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगला मुखी (पीताम्बरा), मातंगी, कमला हैं। प्रत्येक विद्या अलग-अलग फल देने वाली और सिद्धि प्रदायक है। दशमहाविद्याओं की प्रमुख देवी व एक महाविद्या महाकाली हैं। दशमहाविद्या की साधना में बीज मंत्रें का विशेष महत्व है। दक्षिण में दशमहाविद्याओं के मंदिर भी है और वहां इनकी पूजा का आयोजन भी किया जाता है। दशमहाविद्या साधना से बड़ी से बड़ी समस्या को टाला जा सकता है। कहते है आप किसी देवता की पूजा करते हैं परन्तु आपने शक्ति की आराधना नहीं की तो पूजा अधूरी मानी जाती है। श्रीयंत्र पूजा शक्ति साधना का एक बड़ा ही प्रखररूप है। शक्ति के बिना शिव शव हैं ऐसा प्रायः धर्मशास्त्र में कहा गया है। यही नहीं शक्ति का योगबल विद्या में भी बड़ा महत्व है, बिना शक्ति जगाए योग की सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती है। ज्योषिय आधार पर ऐसा माना जाता है कि यदि व्यक्ति नौ देवियों की नौ दिन तक साधना करता है तो उससे उस साधक के नौ ग्रह शांत होते हैं। ये सब मां शक्ति की कृपा स्वरूप होता है। यही नहीं काल सर्प दोष, कुमारी, दोष, मंगल दोष आदि में मां की कृपा से मुक्त हुआ जा सकता है। भारतीय ऋषियों के वैदिक ज्ञान के विश्लेषण और विश्व के व्यवहारिक पहलू का विश्लेषण से ऐसा कहना तर्क संगत है कि शक्ति (नारी) की पूजा बिना हम और हमारे कर्मकांड अधूरे हैं।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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