आलेख : ब्रह्माजी के ‘सृष्टि सृजन’ का पर्व है ‘नवरात्र’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

आलेख : ब्रह्माजी के ‘सृष्टि सृजन’ का पर्व है ‘नवरात्र’

गुड़ी पड़वां हो या नवरात्र दोनों पवित्र पर्व है। इस तिथि को वर्ष प्रतिपदा और युगादि भी कहा जाता है। इस दिन हिंदू नववर्ष का प्रारंभ हुआ था। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था। इसलिए इस दिन नया संवत्सर शुंरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। देवी दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्र का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से होता है। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के साथ युगाब्द यानी युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जाता है। इसी दिन उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ किया था। भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी वर्ष प्रतिपदा को हुआ था

Chaiti-navratri
नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों‘ (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है, क्योंकि ‘रात्रि‘ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है, क्योंकि इस नवरात्र की अवधि में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्ववाले हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। या यूं कहे नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुंचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति मां एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्र के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता है। इसमें मां भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।


‘गुड़ी पड़वा‘ के रुप में मनाने का चलन

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पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी। रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह ‘गुड़ी पड़वा‘ के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव ‘उगादी‘ से शुरू होता है। धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि ब्रह्मपुराण के अनुसार नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरू किया था, इसलिए इसे सृष्टि के निर्माण का उत्सव भी कहा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं, वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्री रूप है। स्त्री से यहां तात्पर्य यह है कि जो पाने की इच्छा रखनेवाला है, वह स्त्री है और जो इच्छा की पूर्ति करता है, वह पुरुष है।


नवरात्र आज से  

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चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से 9 दिनों तक चलने वाला नवरात्रि आरंभ हो जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। समापन 17 अप्रैल को राम नवमी पर होगा। इस बार चैत्र नवरात्रि बहुत ही शुभ योग चंद्रमा और बृहस्पति की युति से गजकेसरी योग बन रहा है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सभी राजयोगों में गजकेसरी योग का विशेष महत्व होता है। गजकेसरी राजयोग को बहुत ही शुभ और शक्तिशाली माना जाता है। यह योग तब बनता है जब बृहस्पति और चंद्रमा की युति किसी एक राशि में होती है या फिर इन दोनों ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो। कुंडली में गजकेसरी राजयोग पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बनता है। जिन लोगों की कुंडली में गजकेसरी राजयोग होता है। वे जातक तीव्र बुद्धि वाले होते हैं। ये अपने करियर में उच्च स्थान पर पहुंचते हैं। इनको समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। चैत्र नवरात्रि पर बन रहे गजकेसरी योग से कुछ राशि वालों के लिए किस्मत बदलने वाली हैं। यह योग आपके लिए खुशियों की सौगातें लाएंगे। जो लोग नौकरीपेशा हैं उनके कार्यक्षेत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है। नई नौकरी की तलाश करने वाले जातकों को नए और अच्छे अवसरों की प्राप्ति हो सकती है। शत्रु पराजित होंगे। घर और परिवार में सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। उधार दिया गया धन वापस मिल सकता है। समाज में आपके मान-सम्मान में  बढ़ोतरी हो सकती है।


शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि मंगलवार, 9 अप्रैल। घटस्थापना मुहूर्त सुबह 6 बजकर 02 मिनट से सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक है। अवधि 4 घंटे 14 मिनट्स। घटस्थापना अभिजीत मुहूहूर्त सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है। प्रतिपदा तिथि प्रारंभ 8 अप्रैल को रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी। समापन- 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट तक।


चैतीचंद्र महोत्सव‘

आदिकाल से ही न केवल मनुष्य, बल्कि ईश्वर भी आद्याशक्ति की उपासना करते रहे हैं। देवी स्वरूप में ऊषा की स्तुति ऋग्वेद में तीन सौ बार करने का उल्लेख है। शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना के साथ नौ दिनों तक आद्याशक्ति मां भगवती की आराधना का नवरात्र उत्सव प्रारंभ होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन, नव संवत्सर की प्रथम रात्रि का चैत्र शुक्ल प्रथम दर्शन ही चैत्र चंद्र दर्शन है, जिसे उत्सव रूप में मनाया जाता है। इसे ही ‘चैतीचंद्र महोत्सव‘ कहा जाता है। इस दिन झूलेलाल और मातारानी की आराधना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम ने अत्याचारी शासक बाली का वध कर किष्किंधा की प्रजा को मुक्ति दिलायी थी। बाली के अत्याचार से मुक्त हो प्रजा इसी दिन विजय ध्वज फहराकर उत्सव के आनंद के साथ झूम उठी थी। इस दिन नयी साड़ी पहनाकर बांस में तांबे या पीतल का लोटा और आम्र पल्लव रखकर गुड़ी बनायी जाती एवं उसका और श्रीराम-हनुमानजी की पूजा किये जाने का विधान है। द्वापर काल मवारिका में रहने वाले प्रसेनजीत की हत्या के कलंक से कलंकित श्रीकृष्ण जब मणि का पता लगाने हेतू अंधेरी गुफा में प्रवेश किये, तब समस्त ब्रजवासियों ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ कर चौत्र शुक्ल नवमी तक सोपवास माता भगवती की आराधना की एवं रात्रि जागरण किया था, ताकि श्री कृष्ण गुफा से सकुशल लौट आएं. नव संवत्सर के दिन प्रातः पंचांग की पूजा करके वर्षफल का श्रवण किया जाता है। 


पूजन विधि

नवरात्र उपासक कक्ष की पूर्व दिशा की ओर गोबर लीपकर माता भगवती को स्थापित कर मिट्टी की वेदी बनाकर कलश रखते हैं। विधिवत गेहूं, जौ आदि धान्य बोते हैं। श्री गौरी, गणपति, नवग्रह आदि की पूजा कर भगवती मां अम्बा की फल-फूलों से पूजा करते हैं। प्राचीन काल में ऋतु और राशि परिवर्तन के ऐसे समय में स्वयं को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए लोग सोपवास मां भगवती की आराधना करते थे। सात्विक आहार, व्रत-उपवास से शरीर और मन दोनों को शुद्ध करने का सशक्त उपक्रम है चैत्र नवरात्रि। 


मां के नौ रुपों की पूजा

सनातन संस्कृति के संदर्भ में नवरात्रि को आदिशक्ति की साधना का सर्वश्रेष्ठ कालखंड माना जाता है। देवीसूक्त में आदिशक्ति नवदुर्गा के नौ रूपों की उपासना का विशद वर्णन मिलता है। नवरात्रि पर्व व्यक्ति को यम, नियम, व्रत-उपवास के द्वारा उसकी सूक्ष्म और स्थूल कर्मेंद्रियों की शुचिता, आत्मानुशासन एवं परिशोधन के लिए विशेष अवसर प्रदान करने का पर्व है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। पहले दिन घी का भोग लगाएं और दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है और बीमारी दूर होती है। दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है। माता को शक्कर का भोग लगाएं और उसका दान करें. इससे आयु लंबी होती है। तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां को दूध चढ़ाएं और इसका दान करें। ऐसा करने से सभी तरह के दुःखों से मुक्ति मिलती है। चौथे दिन मां कुष्मांडा की अराधना होती है। माता को मालपुए का भोग लगाएं और दान करें। इससे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति व सुख की प्राप्ति होती है। पांचवें दिन मां स्कंदमाता का है। मां को केले व शहद का भोग लगाएं व दान करें। इससे परिवार में सुख-शांति रहेगी और शहद के भोग से धन प्राप्ति के योग बनते हैं। छठे दिन मां कात्यानी की पूजा की जाती है। षष्ठी तिथि के दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है। सातवां दिन मां कालरात्रि को पूजा जाता है। मां को गुड़ की चीजों का भोग लगाकर दान करने से गरीबी दूर हो जाती है। अष्टमी के दिन महागौरी यानि मां दुर्गा को समर्पित है। माता को नारियल का भोग लगाकर दान करना चाहिए, ऐसा कहा जाता है कि इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवमी पर सिद्धदात्रि की पूजा की जाती है। मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है। 


‘शक्ति साधना’

भारत ही नहीं पूरे विश्व में शक्ति का महत्व स्वयं सिद्ध है। उसकी उपासना के रूप अलग-अलग हैं। समस्त शक्तियों का केन्द्र एकमात्र परमात्मा है परन्तु वह भी अपनी शक्ति के बिना अधूरा है। सम्पूर्ण भारतीय वैदिक ग्रंथों की उपासना व तंत्र का महत्व शक्ति उपासना के बिना अधूरा है। शक्ति से तात्पर्य है ऊर्जा। यदि ऊर्जा को अपने अनुसार चलाना है तो उस पर आधिपत्य करना पड़ेगा। मतलब साफ है या तो शक्ति को हराकर या तो शक्ति को जीतकर उसे हम अपने पराधीन कर सकते हैं। परन्तु यह होना जनमानस से संभव नहीं था इसलिए भारत में उससे समस्त कृपा पाने के लिए मां शब्द से उद्धृत किया गया। इससे शक्ति में वात्सल्य भाव जाग्रत हो जाता है। अधूरी पूजा व जाप से भी मां कृपा कर देती है। इसलिए सम्पूर्ण वैदिक साहित्य और भारतीय आध्यात्म शक्ति की उपासना प्रायः मां के रूप में की गई है। यही नहीं शक्ति के तामसिक रूपों में हाकिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी आदि की पूजा भी तांत्रिक और साधक मां के रूप में करते हैं। मां शब्द से उनकी आक्रमकता कम हो जाती है और वह व्यक्ति को पुत्र व अज्ञानी समझ क्षमा कर अपनी कृपा बरसती हैं। भारत में शक्ति की पूजा के लिए नवरात्र का अत्यधिक महत्व है। नवरात्र में प्रायः वातावरण में ऐसी क्रियाएं होती हैं और यदि इस समय पर शक्ति की साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं। नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार मनाया जाता है, क्रमशः चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। लेकिन ज्यादातर इन्हें चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है। उसका प्रमुख व्यवहारिक कारण जन सामान्य के लिए आर्थिक, भौतिक दृष्टि से इतने बड़े पर्व ज्यादा दिन तक जल्दी-जल्दी कर पाना सम्भव नहीं है। चारो नवरात्र की साधना प्रायः गुप्त साधक ही किया करते हैं जो जप, ध्यान से माता के आशीर्वाद से अपनी साधना को सिद्धि में बदलना चाहते हैं। नवरात्र को मनाने का एक और कारण है जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है। वर्ष के दोनों प्रमुख नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में अर्थात् दो ऋतुओं के सम्मिलन में मनाए जाते हैं। जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्रायः शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया।


 


 

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 सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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