विशेष : बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 14 अप्रैल 2024

विशेष : बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर

समाज के वंचित और शोषित वर्ग के सशक्तीकरण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले पूज्य बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्षों से भरा रहा। लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा और दृढ़ निश्चय से जीवन की हर बाधा पर विजय पाई जा सकती है. आंबेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया था, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था। वहीं, इस अनुच्छेद को उनकी इच्छाओं के खिलाफ संविधान में शामिल किया गया था। भीमराव आंबेडकर समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और जम्मू-कश्मीर के मामले में अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे। उनका कहना था कि भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, तो उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, उन्होंने समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश की थी। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने अनुभवों के आधार पर जो बातें कहीं, वो आज के समय में लोगों के लिए प्रेरणादायी हैं और भटके हुए लोगों को भी सही राह दिखाती हैं. उनके जीवन में सबसे बड़ी बाधा हिंदू समाज द्वारा अपनाई गई जाति व्यवस्था थी जिसके अनुसार वे जिस परिवार में पैदा हुए थे उन्हें ’अछूत’ माना जाता था. लेकिन उनकी प्रतिभा, कभी हार न मानने वाला हौसला, गरीब और पिछड़े लोगों के उत्थान का जज्बा, शिक्षा ऐसी अनगिनत बाते हैं जिनकी वजह से लोग उन्हें याद करते हैं.

Baba-saheb
भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक डॉ. भीमराव अंबेडकर की 14 अप्रैल को 133वीं जयंती है. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता था. उन्होंने अपना पूरा जीवन दलित समाज के लिए समर्पित कर दिया था. उनका जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था. बाबा साहब का बचपन काफी संघर्षभरा था, लेकिन उन्होंने हर परिस्थिति का डटकर सामना किया और अपनी शिक्षा को पूरा किया. ये बाबा साहब की काबिलियत ही थी कि उन्होंने 32 डिग्रियां हासिल की. इतना ही नहीं, डॉक्टरेट की डिग्री उन्होंने विदेश से ली. इसके बाद दलितों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया. उन्होंने अपने जीवन में दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए कई काम किए. अंबेडकर ने मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), येवला की गर्जना (1935) आदि जैसे कई अहम आंदोलन चलाए, जिसमें लोगों का काफी सहयोग मिला. छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अंबेडकर का कहना था कि ’छुआछूत गुलामी से भी बदतर है.’ बॉम्बे हाई कोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने की काफी कोशिशें कीं. उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जुलूसों द्वारा पेयजल के संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिए खुलवाने के साथ अछूतों को भी मंदिर में प्रवेश दिलानें के लिए संघर्ष किया. बाबा साहब को हमारे देश के संविधान का जनक कहा जाता है. देश के संविधान का मसौदा तैयार करने के अलावा बाबा साहब ने एक अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और वकील के रूप में उन्होंने भारत के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


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बता दें कि बाबा साहेब अछूत परिवार से आते थे। इसी वजह से स्कूल के दौरान उन्हें उच्च जातियों के छात्रों के साथ कक्षा में बैठने नहीं दिया जाता था। लेकिन जब वो सरकार में आए, तो उन्होंने ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाने के लिए अथक प्रयास किए थे। वह 29 अगस्त, 1947 से लेकर 24 जनवरी, 1950 तक कानून मंत्री के पद पर रहे थे। भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, अम्बेडकर एक न्यायविद्, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक भी थे जिन्होंने अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत मेहनत की और विदेशों में भी पढ़ाई की. उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और कोलं बिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. इसके अलावा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कानून की पढ़ाई करने के बाद वे भारत लौटे और वकालत करने लगे. अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय और समान अवसर प्रदान करते हैं. साल 1946 में संविधान सभा के लिए चुना गया. उन्होंने मौलिक अधिकारों, संघीय ढांचे और अल्पसंख्यकों और वंचितों के लिए सुरक्षा उपायों जैसे महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विशेष रूप से धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता उन्मूलन और शोषण के खिलाफ सुरक्षा जैसे अधिकारों पर जोर दिया. बाबासाहेब ने एक मजबूत केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन सुनिश्चित करने के लिए एक संघीय प्रणाली का समर्थन किया. उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि राज्यों को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य किया जाए. भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, अम्बेडकर एक न्यायविद्, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.


डॉ अंबेडकर की प्रेरणादायी बातें

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बाबा साहब पढ़ने में काफी तेज थे. उनके अंदर हमेशा से ही कुछ नया सीखने की इच्छा रहती थी. उनकी इस जिज्ञासु प्रवृत्ति ने उन्हें इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचने में बड़ी भूमिका निभाई. हम सभी को भी भी बाबा साहब से ये गुण सीखना चाहिए. बाबा साहब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से समझते थे. डॉ अंबेडकर का मानना था, जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है. धर्म मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धर्म के लिए. मैं एक ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है. अपने भाग्य के बजाए अपनी मजबूती पर विश्वास करो. यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा. इंसान का जीवन लंबा होने की बजाय महान होना चाहिए. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेईमानी है. जो कौम अपना इतिहास तक नहीं जानती है, वे कौम कभी अपना इतिहास भी नहीं बना सकती है. मैं किसी समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं, जो महिलाओं ने हासिल की है. बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए. उनका मानना था कि हर व्यक्ति को समाज के लिए कुछ करना चाहिए ताकि उसके आसपास के लोग भी बेहतर जीवन जी सकें. बाबा साहब खुद की क्षमताओं पर यकीन रखते थे. उनका मानना था कि अगर व्यक्ति को खुद पर भरोसा है तो वो बड़े से बड़ा काम भी आसानी से कर सकता है. बाबा साहब हमेशा लोगों को साथ लेकर चले, इसीलिए उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा बन सका. उनका मानना था कि व्यक्ति की तरक्की में सभी का साथ होता है, इसलिए उसे लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए. वे कहते थे, शिक्षा जितनी पुरूषों के लिए ज़रुरी है उतनी ही महिलाओं के लिएं किसी का भी स्वाद बदला जा सकता है लेकिन ज़हर को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा. भाग्य में विश्वास रखने के बजाए अपनी शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए. शिक्षित बनो, संगठित रहो और उत्तेजित बनो नका मूलमंत्र था। उनका कहना था धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए. जीवन लम्बा होने की बजाय महान होना चाहिए. अपने भाग्य के बजाए अपनी मजबूती पर विश्वास करो. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेईमानी है. संविधान यह एक मात्र वकीलों का दस्तावेज़ नहीं. यह जीवन का एक माध्यम है. पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना चाहिए. महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्य नहीं है. मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं. एक विचार की प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा. भीमराव आंबेडकर हमेशा कहते थे कि हर एक इंसान को ये समझना चाहिए कि वो एक भारतीय है और अंत में भी हम भारतीय ही रहेंगे। आंबेडकर का कहना था कि व्यक्ति को अपने हर काम में 100 फीसदी देना चाहिए। अगर फिर भी उसका परिणाम न मिले, तो उस चीज को वहीं छोड़कर अपने कर्मां पर ध्यान देना चाहिए। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि ज्ञान ही हर एक व्यक्ति के जीवन का आधार होता है। हर किसी को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए, ये ही हर इंसान का पहला कर्तव्य है। कभी भी कोई अधिकार छीनना नहीं चाहिए। अधिकारों को वसूलना सीखें। हर धर्म के लोग हमारे भाई हैं। इसलिए कभी भी किसी से भेदभाव न करें।


भीमराव आंबेडकर की शिक्षा

भीमराव आंबेडकर ने मुंबई के एलफिन्स्टन हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। इस स्कूल में वह एकमात्र अछूत छात्र थे, जिस कारण से उन्हें काफी परेशानी भी हुई। भीमराव आंबेडकर ने वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद, उन्होंने एलफिन्स्टन कॉलेज में दाखिला लिया। बाबा साहेब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई पूरी की। बाबा साहेब को बड़ौदा (अब वडोदरा) के गायकवाड़ शासक द्वारा छात्रवृत्ति दी गई थी। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि जब गायकवाड़ शासक के अनुरोध पर बाबा साहेब ने बड़ौदा लोक सेवा में प्रवेश लिया, तो उन्हें उच्च जाति के सहयोगियों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता था। इसके बाद, बाबा साहेब ने कानूनी अभ्यास और शिक्षण की ओर रुख किया। इसके साथ ही, उन्होंने दलितों के बीच अपना नेतृत्व कायम किया। इसी दौरान, भीमराव आंबेडकर ने कई सारे पत्रिकाओं को शुरू किया। वहीं, उन्होंने सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे। बाबासाहेब ने 1926 में एक वकील के रूप में अपने करियर के दौरान तीन गैर-ब्राह्मण नेताओं का बचाव किया। इन नेताओं ने ब्राह्मण समुदाय पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगाया था। जाति वर्गीकरण के खिलाफ यह जीत बाबासाहेब के लिए काफी बड़ी थी और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन का जन्म यहीं से हुआ था। इसके अलावा, बॉम्बे उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास करते हुए, उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने और अछूतों के उत्थान का प्रयास किया।


पुणे समझौता

वर्ष 1926 के बाद भीमराव आंबेडकर अछूत राजनीतिक की हस्ती बन चुके थे। बाबासाहेब ने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। वह ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिए स्वतंत्र राजनीतिक पहचान की मांग की, जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की दखलअंदाजी न हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान उन्होंने ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा था। ब्रिटिश सरकार के विधानमंडल में चुनावी सीटों में दलित आरक्षण को लेकर यरवदा सेंट्रल जेल पुणे में महात्मा गांधी और भीमराव आंबेडकर के बीच 24 सितंबर, 1932 को एक समझौता हुआ था, जिसे पूना पैक्ट या पुणे समझौता कहा गया।


राजनीतिक सफर

बाबासाहेब ने 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने 1937 में केंद्रीय विधानसभा के लिए 13 आरक्षित और 4 सामान्य सीटों के लिए चुनाव लड़ा, जिसमें 14 सीटें मिलीं। भीमराव आंबेडकर ने 1937 में बांबे विधानसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य सरकार और किसानों के बीच सीधा संबंध बनाना था। उन्होंने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में काम किया। बाबासाहेब 1952 में पहले आम चुनाव में बॉम्बे नॉर्थ से चुनाव लड़े, वह लेकिन हार गए। इसके बाद, राज्यसभा के सदस्य नियुक्त किए गए। भंडारा सीट से 1954 के उपचुनाव में, वह लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे और तीसरे स्थान पर रहे।


धर्म परिवर्तन की घोषणा

भीमराव आंबेडकर ने 13 अक्टूबर 1935 को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की। उन्होंने कहा था, ’’हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा।’’ इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 साल तक विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। भीमराव आंबेडकर वर्ष 1950 में वह एक बौद्धिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका गए, जहां वह बौद्ध धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए। स्वदेश वापसी पर उन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में पुस्तक लिखी। उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। वर्ष 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें उनके साथ-साथ अन्य पांच लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म अपनाया। कुछ समय बाद छह दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया।


बाबासाहेब और संविधान निर्माण

भीमराव आंबेडकर ने भारत के संविधान का निर्माण किया। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। संविधान समिति का काम 1946 में शुरू हुआ था और संविधान का निर्माण 26 नवंबर, 1949 को पूरा हुआ था। संविधान भारत की संवैधानिक शासन व्यवस्था है और 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र की शुरुआत हुई थी।


बाबासाहेब का निधन

भीमराव आंबेडकर वर्ष 1948 से मधुमेह बीमारी से पीड़ित थे। वर्ष 1954 में जून से अक्टूबर तक काफी बीमार रहे और उन्हें देखने में भी परेशानी होने लगी थी। 6 दिसम्बर 1956 को बाबासाहेब का निधन दिल्ली स्थित उनके घर में हुआ था।





Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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