उदयपुर : कविता विकल्प क़ी विधा : अशोक वाजपेयी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 अप्रैल 2024

उदयपुर : कविता विकल्प क़ी विधा : अशोक वाजपेयी

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उदयपुर। नन्द चतुर्वेदी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य पर नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन की ओर से आंठवा नन्द चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया, कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों क पुष्प गुच्छ भेंट कर किया गया, अतिथियों के स्वागत हेतु अनुराग चतुर्वेदी ने स्वागत उद्बोधन दिया, साथ ही अतिथियों का परिचय देते हुए अशोक वाजपेयी की दो प्रसिद्ध कविताओं से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया l आपने कहा कि अशोक जी निर्भीक कवि है जिनकी निष्पक्षता उल्लेखनीय है l आपने कहा कि नन्द जी को भी ओम थानवी पसंद थे,ओम थानवी जी को वे अपनी पहली कविता भेजते थे, पत्रकारिता मे आपका विशेष योग रहता है l आपने कहा कि माधव हाड़ा  चमकते सितारे हैं वे प्रख्यात आलोचक है l पल्लव हिन्दू कॉलेज मे प्रोफ्रेसर है और ये इनका जादुई चमत्कार है कि दिल्ली जाकर आपने अपना स्थान बनाया है।


कार्यक्रम मे रचानवली के आवरण का विमोचन किया गया l रचनावली के संपादक आलोचक पल्लव ने नन्द बाबू की कविता के अंश सुनाते हुए कहा कि नन्द बाबू ने हमारे लिए समृद्ध विरासत छोडी है। उन्होंने कहा कि नन्द बाबू में पिछली पीढ़ी को याद करने और आदर देने का गहरा जज़्बा था, जिन्हें सब भूल जाते हैं नन्द बाबू उन्हें कविता मे स्थान देते हैंl चार खंडो की रचनावली का परिचय देते हुए उन्होंने बताया कि पहले खंड में कविता, दूसरे खंड में वैचारिक गद्य, तीसरे खंड मे नन्द बाबू के संस्मरण एवं चौथे खंड मे अनुवाद होंगे। मुख्य वक्ता अशोक वाजपेयी ने कविता का समय और समाज विषय पर स्मृति व्याख्यान दिया l आपने कहा कि नन्द बाबू  सादगी वाले और पारदर्शी व्यक्तित्व वाले थे l उनकी सादगी मे सुंदरता और संघर्ष दोनों हैl उनकी कविता मे उत्सव भी है और कौतुभ भी,नन्द बाबू ने उत्सव की तरह मुक्तिदाई पद का प्रयोग भी किया है, अम्लान रोशनी उनकी कविता मे है। नन्द जी के संस्मरणों मे भी सौम्यता व सुंदरता ढूंढ़ लेते थे l नन्द बाबू प्रियदर्शी, स्वप्नदर्शी व समयदर्शी थे l उन्होंने कठिन से कठिन समय मे सपने देखने की ताव रखी l कवि होने का प्रतिमान है कि उसमे जीजीविषा भी हों नन्द बाबू मे ये है, उनकी सामाजिकता भी सौम्य थी, यह उनकी कविताओं मे स्वयं नन्द बाबू ने कहा है। आपने कहा कि नंद बाबू कि रचन्ना के शीर्षक ही पढ़ ले तो पाठक जान जायेगा कि वे क्या थे। आज के समय के विषय में आपने कहा कि राजनीति की सर्वग्रासिता से धर्मो का अध:पतन, विद्रुपन हो रहा है। मंदिर व्यापारिक गतिविधि बन गए है, आज झूठ, नफरत, हिंसा,हत्या,लवजीहाद का बुलडोजीकरण हो रहा है l सच आज अल्पसंख्यक है l आज का समय स्मृति के क्षरण का समय है l निडर होने के लिए कितना डरना पड़ता है ये नन्द बाबू ने अपनी कविता मे कहा है l आज ज्ञान का दैनिक अपमान व अज्ञान का महिमामंडन होता है l आज मिडिया सत्ता से प्रश्न नहीं पूछता विपक्ष से प्रश्न पूछता है l


समाज के विषय मे वाजपेयी जी ने कहा कि आज का सबसे हिंसक समाज हिन्दी का समाज है l इस समाज की सहज़ मानवीयता क्षरित हो रही है l  हिन्दी समाज बेरोजगारी, बेकारी अशिक्षा मे आगे हैं, इसमें भी मध्यवर्ग मातृभाषा से दूर होता जा रहा है। वाजपेयी ने कहा कि हिन्दी समाज का एक प्रतिशत ही साहित्य पढता होगा l हिन्दी समाज पुस्तकों, लेखकों से मुँह फेरे हुए है l हिन्दी समाज सांस्कृतिक विपन्न हो गया है l हिन्दी केवल अभिव्यक्ति और सृजन की भाषा रह गयी है l साहित्य सम्बन्धी संस्थाओ को भी नष्ट कर दिया गया है, पुस्तकालय सुने है मंदिरो मे भीड़ है l हिन्दी लिखने और बोलने वाले लोग भी पुरातत्विक हो गए है l ऐसे समाज मे नन्द बाबू का होना अद्भुत है l ऐसे समाज मे रहकर भी कविता के समय और समाज पर कहना अदभुत है l हिन्दी मे कविता लिखना आज फिजूल मना जाता है, कविता मे रुचि का तेजी से ह्रास हो रहा है l हिन्दी मे कायदे से कविता लिखना गैरकानूनी है l कविता भाषा मे लिखी जाती है जो हमारा सामाजिक उत्तराधिकार है l कविता हर समय मे संभव है, कविता भाषा का रूपयान भी करती है और संभावना भी व्यक्त करती है , कविता याद को बचाने का काम करती है l उदयपुर के समाज की नन्द बाबू की कविता के प्रति क्या जिम्मेदारी है इस प्रश्न पर कहा कि सब जिम्मेदारी कवि की ही नहीं होती पाठक की भी होती है l कविता जो हो रहा है वह भी और जो नहीं हो रहा उसे भी कहती है, कविता चतुर चालाक जानवर है सब पर नज़र रखती है, कविता बहुलता की पोषक है l कविता विकल्प की विधा है, विकल्प की कल्पना की जा सकती है l सपना ना देखना कविता का अपमान होगा।


हिन्दी कविता समाज दर्पण नहीं समाज का नैतिक व राजनैतिक पक्ष है। प्रसिद्ध आलोचक प्रो. माधव हाड़ा ने अपने उद्बोधन मे कहा कि कविता का समय से सम्बन्ध महत्वपूर्ण है नन्द बाबू कि कविता मे समय पारदर्शी है, आपने नन्द बाबू की कविता का पाठ करते हुए कहा कि नन्द बाबू की कविता जीवन के राग की कविता है जीवन का अभाव उनकी कविता मे है जीवन का राग पक्ष उनकी कविता मे है, नन्द बाबू की सबसे महत्वपूर्ण कविता है - शरीर l डॉ हाड़ा का कहना है कि मुझमें जो थोड़ा बहुत आत्मविश्वास है वह नन्द बाबू कि देन है। अध्यक्षता कर रहे ओम थानवी ने कहा कि मुझ पर नन्द बाबू का स्नेह काफ़ी था l  नन्द बाबू मुझे चिट्ठियां लिखते थे जिन्हे मैंने संभाल रखा है, उनमे से कुछ चिट्ठीयों का वाचन कर कहा कि वे समय के यथार्थ की बाते कहते थे l वे पत्रकारिता पर भी कुछ ना कुछ लिखा करते थे, जो उन्हें सही नहीं लगता उसको भी वे कहा देते थे l  वे हमेशा बताते थे कि कहाँ आप भावुक हो रहे है आपकी जो जिम्मेदारी है उसमे ज्यादा भावुकता का स्थान नहीं l उन्होंने कहा कि लेखक आज चुप है जिन्हे कहना चाहिए वे आज चुप है, डरे हुए है ऐसे समय मे नन्द बाबू को पढ़ने की आवश्यकता है, ख़ासतौर पर तब जब हम संकट के समय से गुजर रहे हो। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अरुण चतुर्वेदी ने कियाl साथ ही कार्यक्रम मे उपस्थित सभी श्रोताओ और वक्ताओ का अपनी और फाउंडेशन की और से धन्यवाद ज्ञापित किया।

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