कालबेलिया समाज की नई पीढ़ी का सांप पकड़ने से दूरी की एक वजह सांपों को लेकर सरकार द्वारा बनाये गए सख्त कानून भी हैं. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत सांपों को रखने पर जेल या जुर्माने का प्रावधान है. हालांकि बिदाम देवी उत्साह के साथ कहती हैं कि "आज भी गांव या शहर में कहीं भी घरों, मकानों, दुकानों या पुरानी इमारतों में सांप नज़र आता है तो उसे पकड़ने के लिए लोग हमें ही बुलाते हैं. सांप पकड़ने के एवज़ में लोग खुश होकर हमें पैसे और कपड़े भी देते हैं. वह कहती हैं कि उनके समुदाय में आज भी सांप को परिवार के एक सदस्य के रूप में माना जाता है. जब समाज में लड़की की शादी होती है तो उसे उपहार स्वरुप सांप और कुत्ता भेंट किया जाता है." सांप के प्रति इसी लगाव ने समाज के बुज़ुर्गों को इसके ज़हर और अन्य जड़ी बूटियों को मिलकर देसी सूरमा बनाने के लिए प्रेरित किया था. जिसे यह पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के अपनाते आ रहे हैं. बहरहाल, कालबेलिया समाज की नई पीढ़ी वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भले ही इस देसी इलाज की जगह आधुनिक चिकित्सा को तरजीह देती हो, लेकिन बिदाम देवी जैसी बुज़ुर्ग अभी भी अपने समाज के इस विरासत पर न केवल गर्व करती हैं बल्कि वह इसे सहेज कर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जद्दोजहद भी करती नज़र आ रही हैं.
घनश्याम सादावत
अजमेर, राजस्थान
(चरखा फीचर)
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