इन तीनों पेशेवरों ने समाज सेवा को पीछे छोड़ दिया है और अपने पेशे को प्राथमिकता दे रहे हैं.नेता राजनीतिक शक्ति और पदों के लिए प्रतिस्पर्धा में व्यस्त हैं.वकील अपने मुवक्किलों के मामलों में व्यस्त हैं और सामाजिक मुद्दों पर कम ध्यान देते हैं.पत्रकारिता कॉर्पोरेट हितों और सनसनीखेज खबरों पर केंद्रित हो गई है, सामाजिक मुद्दों को नजरअंदाज़ करते हुए। इससे समाज सेवा कमजोर हुई है.गरीबों, वंचितों और हाशिए पर रहने वालों की आवाज कमजोर पड़ गई है.सामाजिक परिवर्तन और न्याय के लिए लड़ाई कमजोर हुई है.नेता सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रख सकते हैं और नीति निर्माण में जनता की आवाज उठा सकते हैं.वकील गरीबों और वंचितों को कानूनी सहायता प्रदान कर सकते हैं.पत्रकार सामाजिक मुद्दों पर रचनात्मक पत्रकारिता कर सकते हैं और लोगों को जागरूक कर सकते हैं.यह महत्वपूर्ण है कि हम सभी मिलकर समाज को बेहतर बनाने के लिए काम करें. गीत "तू न मिले हम योगी बन जाएंगे" का उल्लेख दिलचस्प है। यह दर्शाता है कि यदि सामाजिक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो लोग निराश होकर चरमपंथ का रास्ता अपना सकते हैं.एक दोस्त वकील अरूण बिंद कहते है कि साइकिल को दूर खड़ाकर पटना हाईकोर्ट में प्रवेश करते हैं.जो पत्रकार समाज के हाशिए पर रहने वालों की खबर लाते थे.वे किनारे कर दिये गए है.वकील अरुण बिंद का कथन "साइकिल को दूर खड़ाकर पटना हाईकोर्ट में प्रवेश करते हैं" प्रतीकात्मक है.यह दर्शाता है कि कैसे पेशेवरों ने सादगी और सामाजिक सरोकारों को छोड़ दिया है और भौतिकवाद और प्रतिष्ठा को महत्व दे रहे हैं. यह उम्मीद की जा सकती है कि नेता, वकील और पत्रकार अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को याद रखेंगे और समाज सेवा में फिर से सक्रिय भूमिका निभाएंगे.
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