- गणगौर पूजन के दिन पूरा माहौल.. गोर-गोर गोमती ईसर पूजे पार्वती
सीहोर। शहर सहित आस-पास के स्थानों में हर साल की तरह इस साल भी गणगौर का पर्व आस्था और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। महिलाओं-युवतियों ने को बुधवार को सिंजारा मनाया। महिलाओं और युवतियों ने हाथों में मेहंदी लगाई और विशेष श्रंगार किया। भगवान शंकर-पार्वती के रूप में ईसर-गणगौर का पूजन किया जाएगा। बड़ी संख्या में महिलाओं ने शहर के बड़ा बाजार स्थित अग्रवाल धर्मशाला में सिंजारा पूजन पूर्ण-विधि विधान से की। मौसम खराब होने के कारण धर्मशाला में भव्य रूप से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। गांधी पार्क में कार्यक्रम का आयोजन होना था, लेकिन बारिश के चलते सामूहिक रूप से धर्मशाला में झाले दिए गए। अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज और सोनी समाज महिला मंडल के संयुक्त रूप से किया जा रहा है। गुरुवार को सौभाग्य सुंदरी व्रत के पावन अवसर पर पर्व का समापन किया जाएगा, अगर मौसम ठीक रहा तो सीवन नदी के तट तक भव्य चल समारोह जाएगा।
इस संबंध में जानकारी देते हुए अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती ज्योति अग्रवाल ने बताया कि माहेश्वरी महिला मंडल श्रीमती आभा कासट, सोनी महिला मंडल की अध्यक्ष सुनीता सोनी के मार्गदर्शन में गणगौर का पर्व महिलाओं के द्वारा पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पीहर में आकर गणगौर पूजन करने वाली नव विवाहिताओं अथवा शीघ्र वैवाहिक जीवन में बंधने वाली युवतियों ने सिंजारा मनाया। इसके तहत उनके ससुराल से विशेष रूप से घेवर, मेवा, आभूषण, साडिय़ां, सोलह श्रंगार की सामग्री भेजी गई। कई इलाकों में महिलाओं और युवतियों ने मेहंदी लगाकर विशेष श्रंगार किया। सिंजारे पर गीत-संगीत के कार्यक्रम हुए। 16 दिन तक मनाया जाने वाले यह पर्व होली के बाद प्रारंभ हो जाता है और महिलाएं व बालिकाएं घर पर मिट्टी के ईसर-पार्वती बनाकर प्रतिदिन सुबह व पूजन व शाम को आरती करती है और झाले लेने के साथ भजन-कीर्तन करती है और फूलपाती भी निकालती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। फिर चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। होली के दूसरे दिन यानी कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिवजी यानी गण व माता पार्वती यानी की गौर बनाकर प्रतिदिन पूजन करती हैं। इन दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठकर दूब और फूल चुनकर लाती हैं। उन दूबों से दूध और पानी के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं यानी बिंदोरा निकालती है। इससे पूर्व पूजन करने वाली महिलाओं के घरों में में गुणे-शक्करपारे बनाएंगे जाएंगे। हलवाई घेवर बनाकर सजाएंगे। सुहागिन महिलाएं 8 गुणे और कुंवारी कन्याएं 16 गुणे माता को अर्पित करती हैं। घेवर का भोग लगाती है। गणगौर पूजन के दिन पूरा माहौल.. गोर-गोर गोमती ईसर पूजे पार्वती.. जैसे लोकगीतों से गूंज उठता है। लंबे समय से आस्था और उत्साह के साथ गणगौर का पर्व शहर में मनाया जा रहा है।
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