विचार : हिंदू राष्ट्र में सामाजिक समानता की कल्पना दिन में सपना देखने के समान है!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

विचार : हिंदू राष्ट्र में सामाजिक समानता की कल्पना दिन में सपना देखने के समान है!!

shivanand-tiwari
' हम आरक्षण का समर्थन करते हैं' यह कहने वालों ने ही मंडल के विरोध में कमंडल यात्रा निकाली थी. आज जब चुनाव हो रहा है इस बीच उनको सफ़ाई की ज़रूरत क्यों पड़ी ! उनकी बात पर पिछड़ा या दलित समाज कैसे यक़ीन कर सकता है !  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा था कि आरक्षण समानता के सिद्धांत के विरूद्ध है. मोदी सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत का आरक्षण ही इसका प्रमाण है कि सामाजिक आधार पर आरक्षण के संवैधानिक व्यवस्था पर इनका यक़ीन नहीं है. 

प्रारंभ से ही संघ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखता रहा है. बल्कि इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही संघ की स्थापना हुई थी. इसी चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते रहे हैं कि संविधान बदलने के लिए हमें चार सौ सांसदों की ज़रूरत है. हालाँकि चुनावी डर प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि संविधान बदलना हमारा लक्ष्य नहीं है. लेकिन इस पर यक़ीन कौन करेगा! प्रधानमंत्री जी बयान के बाद 2014 से अयोध्या के सांसद और राम मंदिर आंदोलन के नेता लल्लू सिंह का बयान है कि संविधान बदलने के लिए हमें सांसदों की संख्या चाहिए. राजस्थान के भाजपा नेता किरोड़ी मल मीना या भाजपा के अन्य नेताओं का भी यही कहना है. 


संविधान के निर्माण के समय ही संघ ने कह दिया था कि हम इस संविधान को नहीं मानते हैं. याद होगा कि अटल जी की सरकार ने 1 फ़रवरी 2001 में संविधान की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश वेंकटचलैया की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था. संविधान समीक्षा आयोग के गठन का विरोध, विरोधी दलों के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति आर के नारायण ने भी किया था.


भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मूल लक्ष्यों में है. लोकतंत्र तो बराबरी के सिद्धांत पर आधारित है. जबकि हिंदू समाज में किसका क्या स्थान है यह बराबरी के सिद्धांत पर नहीं बल्कि जन्म के आधार पर तय होता है. इस लिए संघ और भाजपा आज वोट खिसकने के डर से भले ही सफ़ाई दे रहे हैं कि वे आरक्षण के समर्थक हैं. लेकिन हिंदू राष्ट्र में सामाजिक समता की कल्पना दिन में सपना देखने के समान है.





शिवानन्द तिवारी

पूर्व राज्यसभा सदस्य 

कोई टिप्पणी नहीं: