प्रारंभ से ही संघ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखता रहा है. बल्कि इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही संघ की स्थापना हुई थी. इसी चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते रहे हैं कि संविधान बदलने के लिए हमें चार सौ सांसदों की ज़रूरत है. हालाँकि चुनावी डर प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि संविधान बदलना हमारा लक्ष्य नहीं है. लेकिन इस पर यक़ीन कौन करेगा! प्रधानमंत्री जी बयान के बाद 2014 से अयोध्या के सांसद और राम मंदिर आंदोलन के नेता लल्लू सिंह का बयान है कि संविधान बदलने के लिए हमें सांसदों की संख्या चाहिए. राजस्थान के भाजपा नेता किरोड़ी मल मीना या भाजपा के अन्य नेताओं का भी यही कहना है.
संविधान के निर्माण के समय ही संघ ने कह दिया था कि हम इस संविधान को नहीं मानते हैं. याद होगा कि अटल जी की सरकार ने 1 फ़रवरी 2001 में संविधान की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश वेंकटचलैया की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था. संविधान समीक्षा आयोग के गठन का विरोध, विरोधी दलों के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति आर के नारायण ने भी किया था.
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मूल लक्ष्यों में है. लोकतंत्र तो बराबरी के सिद्धांत पर आधारित है. जबकि हिंदू समाज में किसका क्या स्थान है यह बराबरी के सिद्धांत पर नहीं बल्कि जन्म के आधार पर तय होता है. इस लिए संघ और भाजपा आज वोट खिसकने के डर से भले ही सफ़ाई दे रहे हैं कि वे आरक्षण के समर्थक हैं. लेकिन हिंदू राष्ट्र में सामाजिक समता की कल्पना दिन में सपना देखने के समान है.
शिवानन्द तिवारी
पूर्व राज्यसभा सदस्य
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