कविता : अब जुल्म नहीं सहूंगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 अप्रैल 2024

कविता : अब जुल्म नहीं सहूंगी

बेटी हूं मैं अब जुल्म नहीं सहूंगी।

बहुत सह लिया है अत्याचार मैंने।

अब फैसला खुद करूंगी।।

चुप बैठी थी मैं सदियो से।

अब चिल्ला चिल्ला कर बोलूंगी।

बेटी हूं मैं अब जुल्म नहीं सहूंगी।।

अब नहीं सहना है दर्द मुझे।

अब इस अत्याचार से आजादी पाना है।।

क्या कसूर था मेरा?

जो मुझपर ज़ुल्मों की बरसात होती है।।

चुप बैठी थी मैं सदियो से।

अब चिल्ला चिल्ला कर बोलूंगी।

बेटी हूं मैं अब जुल्म नहीं सहूंगी।।

पैदा होते ही मुझे।

पराए घर का समझ लिया।

कौन जाने ये दर्द मेरा।

जो सिर्फ मैंने सहा है।

चुप बैठी थी मैं सदियो से।

अब चिल्ला चिल्ला कर बोलूंगी।

बेटी हूं मैं अब जुल्म नहीं सहूंगी।।

जब भी बात करने की सोचती थी मैं।

तब तब बेटी होने का अहसास कराते थे।

कभी कभी कहते थे लड़की हो तुम।

कभी कहते थे बोलो कम।

चुप बैठी थी मैं सदियो से।

अब चिल्ला चिल्ला कर बोलूंगी।।

बेटी हूं मैं अब जुल्म नहीं सहूंगी।।






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पिंकी अरमोली

गरुड़, बागेश्वर

उत्तराखंड

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