विचार : पिताजी और उँगलियों के निशान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 21 अप्रैल 2024

विचार : पिताजी और उँगलियों के निशान

Father
पिताजी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। परिणामस्वरूप दीवारें उस स्थान पर बदरंग हो जाती जहां-जहाँ वे उसे छूते थे और उनकी उंगलियों के निशान दीवारों पर छप जाते थे।मेरी पत्नी गंदी दीखने वाली दीवारों के बारे में अक्सर मुझ से शिकायत करती रहती। एक दिन पिताजी को सिरदर्द था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर तेल की मालिश कराई थी और फलस्वरूप दीवार थामते समय उस  पर तेल के गहरे धब्बे पड़ गए थे। मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लायी और मैं भी अपने पिता पर क्रोधित हुआ और उन्हें  ताकीद की कि आगे से वे चलते समय दीवार को न छुआँ करें और न ही उसका सहारा लिया करें। पिताजी ने अब चलते समय दीवार का सहारा लेना बंद कर दिया और एक दिन वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े। अब वे बिस्तर पर ही पड़े रहने लगे और थोड़े समय बाद हमें छोड़कर चले गए।मारे पश्चाताप के मेरा दिल तङप उठा और मुझे लगा कि मैं अपने को कभी माफ़ नहीं कर सकूँगा, कभी नहीं। 


कुछ समय बाद हम ने अपने घर का रंग-रोगन  कराने की सोची। जब पेंटर लोग आए तो मेरा बेटा, जो अपने दादा से बहुत प्यार करता था, ने रंगसाज़ों को अपने दादा के उंगलियों के निशानों को मिटाने और उन क्षेत्रों पर पेंट करने से रोका। पेंटर बालक की बात मान गए। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे उसके दादाजी यानी मेरे पिताजी के उंगलियों/हाथों के निशान नहीं हटाएंगे, बल्कि इन निशानों के आसपास एक खूबसूरत गोल घेरा बनाएंगे और एक अनूठा डिजाइन तैयार करेंगे। इस बीच पेंट का ख़त्म हुआ मगर वे निशान हमारे घर का एक हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे इस अनूठे डिजाइन की प्रशंसा करने लगा। समय के साथ-साथ मैं भी बूढ़ा हो गया।अब मुझे चलते समय दीवार का सहारा लेने की जरूरत पड़ने लगी थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कही गई बातें याद आईं और मैंने बिना सहारे चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझसे दीवार का सहारा लेने को कहा और चिंता जताई कि मैं सहारे के बिना गिर जाऊंगा। मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मेरा सहारा बन गया था।


मेरी बिटिया तुरंत आगे आई और प्यार से मुझसे कहा कि मैं चलने के लिए उसके कंधे का सहारा लूं। मैं रोने लगा। अगर मैंने भी अपने पिता के लिए ऐसा किया होता तो वे और लंबे समय तक जीवित रह सकते थे, मैं सोचने लगा।मेरी बिटिया मुझे साथ लेकर गई और सोफे पर बिठा दिया।फिर  मुझे अपनी ड्राइंग बुक दिखाने लगी । उसकी टीचर ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की थी और उत्कृष्ट रिमार्क दिया था।स्केच मेरे पिता के दीवार पर हाथों के निशानों का था। उसकी टिप्पणी थी - "काश! हर बच्चा बुजुर्गों से इसी तरह प्यार करे"। मैं अपने कमरे में वापस आया और खूब रोया, अपने पिता से क्षमा मांगी, जो अब इस दुनिया में नहीं थे। हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाएंगे । आइए, हम अपने बुजुर्गों की देखभाल करें और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं।





डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

कोई टिप्पणी नहीं: