10 मई सुबह भगवान परशुराम की पूजा अर्चना की जाएगी और 12 को भव्य चल समारोह
10 मई सुबह भगवान परशुराम की पूजा अर्चना की जाएगी, अभिषेक किया जाएगा और उसके पश्चात आरती और वाहन रैली निकाली जाएगी, इसके अलावा महिला मंडल के द्वारा कलश पूजन, थाली सजावट प्रतियोगिता सहित अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। वहीं आगामी 12 मई को शाम पांच बजे विशाल चल समारोह निकाला जाएगा। इसके पश्चात रात्रि आठ बजे शहर के बाल विहार ग्राउंड पर भोजन प्रसादी का इंतजाम किया जाएगा। इस मौके पर पुरुषों के द्वारा सफेद कुर्ता-पजामा और महिलाओं के लिए पीली साड़ी रहेगी।
भगवान शिव की कड़ी तपस्या
सर्व ब्राह्मण समाज के मीडिया प्रभारी मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि परशुराम ऋ षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र हैं। इनका जन्म सतयुग और त्रेता युग के संधिकाल में हुआ। इनका नाम पहले राम था। इन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की और उनसे वरदान में एक परसु प्राप्त किया। उसके बाद इनका नाम हो गया परशुराम। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने सीता स्वंयवर में जिस शिव धनुष को तोड़ा, उसे परशुराम ने ही राजा जनक को दिया था। वह शिव धनुष के टूटने पर बहुत क्रोधित हुए और महेंद्र पर्वत पर अपनी तपस्या से छोड़कर तुरंत स्वयंवर सभा में आए। लेकिन, जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्हीं की तरह भगवान राम भी भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो उनका क्रोध शांत हो गया।
त्रेता के बाद द्वापरयुग में भी भगवान परशुराम मौजूद
उन्होंने बताया कि त्रेता के बाद द्वापरयुग में भी भगवान परशुराम मौजूद थे। उन्होंने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महावीरों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दी थी। जब परशुराम को पता चला था कि कर्ण ने उनसे झूठ बोलकर शिक्षा ली है, तो उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया कि जब उसे उनकी सिखाई विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, तो वह उन्हें भूल जाएगा और उसके रथ का पहिया भूमि में धंस जाएगा। महाभारत में अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध के दौरान भगवान परशुराम का यह श्राप निर्णायक साबित हुआ।
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