- हर रोज देवी मंत्रों के साथ 31 हजार से अधिक दी जा रही आहुतियां
आदिशक्ति मां भगवती कूष्मांडा की महिमा
यज्ञाचार्य पंडित श्री दुबे ने आदिशक्ति मां भगवती कूष्मांडा की महिमा का वर्णन करते हुए बताते हैं कि मां कुष्मांडा को सिलेटी रंग अत्यंत प्रिय है। यदि आप भी माँ को प्रसन्न करने के साथ साथ धन, यश की प्राप्ति और रोगों से मुक्ति चाहते हैं तो सिलेटी रंग के साथ माँ की आराधना करें। मां दुर्गा के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। कु मतलब थोड़ा शं मतलब गरम अंडा मतलब अंडा। यहां अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा। मां कुष्मांडा का यह स्वरूप खुशियों भरा है। पुराणों के अनुसार मां कुष्मांडा ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है। जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। यही वजह है कि वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती हैं। कुछ मान्यताओं अनुसार यह भी कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड का निर्माण मां कुष्मांडा के उदर से हुआ है। उनके आठ हाथ हैं। जिनमें से सात हाथों में सात प्रकार के विभिन्न हथियार उनके हाथ में चमकते रहते हैं। जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प,अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। उनके दाहिनी तरफ आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। वह शेर की सवारी करती हैं। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए यह सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। मां कुष्माण्डा की आठ भुजाएं हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है जहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनकी भक्ति से आयु,यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। आज के दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है।
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