सीहोर : मरीह माता मंदिर पर 151 कन्याओं को भोजन प्रसादी का वितरण किया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 13 अप्रैल 2024

सीहोर : मरीह माता मंदिर पर 151 कन्याओं को भोजन प्रसादी का वितरण किया

  • हर रोज देवी मंत्रों के साथ 31 हजार से अधिक दी जा रही आहुतियां

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सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में आस्था के साथ चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। इस मौके पर हर रोज यहां पर यज्ञाचार्य के द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ और नियमित से सुबह 31 हजार से अधिक देवी मंत्रों के साथ आहुतियां दी जा रही है। शुक्रवार को 151 से अधिक कन्याओं को भोजन प्रसादी का वितरण किया गया। इस मौके पर मंदिर के प्रबंधक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, पंडित उमेश दुबे, पंडित गणेश शर्मा, सुनिल चौकसे, सुभाष कुशवाहा, सुमित भानू उपाध्याय, रामू सोनी सहित अन्य शामिल थे। यज्ञाचार्य पंडित श्री दुबे ने बताया कि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। इसमें लिखे मंत्र न केवल आपकी विभिन्न रोगों से रक्षा करते हैं, बल्कि दुर्गा सप्तशती का यह पाठ आपके लिए विशेष फलदायी भी सिद्ध होता है। इसके अलावा भी सालभर भक्तजन सप्तशती का पाठ कर देवी मां को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। वहीं जानकारों के अनुसार हर देवी की साधना और सप्ताह के हर दिन सप्तशती पाठ का अपना अलग महत्व है और वार के अनुसार इसका पाठ विभिन्न फल देने वाला कहा गया है। उन्होंने बताया कि आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है। कूष्माण्डा साधना करने और पूजा-अर्चना करने से आयु, यश, बल व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।


आदिशक्ति मां भगवती कूष्मांडा की महिमा

यज्ञाचार्य पंडित श्री दुबे ने आदिशक्ति मां भगवती कूष्मांडा की महिमा का वर्णन करते हुए बताते हैं कि मां कुष्मांडा को सिलेटी रंग अत्यंत प्रिय है। यदि आप भी माँ को प्रसन्न करने के साथ साथ धन, यश की प्राप्ति और रोगों से मुक्ति चाहते हैं तो सिलेटी रंग के साथ माँ की आराधना करें। मां दुर्गा के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। कु मतलब थोड़ा शं मतलब गरम अंडा मतलब अंडा। यहां अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा। मां कुष्मांडा का यह स्वरूप खुशियों भरा है। पुराणों के अनुसार मां कुष्मांडा ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है। जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। यही वजह है कि वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती हैं। कुछ मान्यताओं अनुसार यह भी कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड का निर्माण मां कुष्मांडा के उदर से हुआ है। उनके आठ हाथ हैं। जिनमें से सात हाथों में सात प्रकार के विभिन्न हथियार उनके हाथ में चमकते रहते हैं। जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प,अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। उनके दाहिनी तरफ आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। वह शेर की सवारी करती हैं। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए यह सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। मां कुष्माण्डा की आठ भुजाएं हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है जहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनकी भक्ति से आयु,यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। आज के दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है।

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