सीहोर : श्रीराम कथा में केवट प्रसंग व भरत मिलाप के मार्मिक वर्णन से नम हुई आंखें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 13 अप्रैल 2024

सीहोर : श्रीराम कथा में केवट प्रसंग व भरत मिलाप के मार्मिक वर्णन से नम हुई आंखें

  • ग्राम चंदेरी में जारी श्रीराम कथा और प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में उमड़ा आस्था का सैलाब

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सीहोर। हमेशा मीठी बोली बोलना सबसे बड़ी आवश्यकता है। इससे अपने विरोधियों का भी दिल जीत सकते हैं। जबकि, अगर कड़वा बोलने की आदत है तो अपनों को भी पराया होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। भगवान श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेना चाहिए, श्रीराम कथा हमें सही मार्ग का अनुसरण कराती है। भगवान तो प्रेम के भूखे है। केवट का प्रसंग और भरत मिलाप के मार्मिक वर्णन शनिवार को जिला मुख्यालय के समीपस्थ जारी श्रीराम कथा के पांचवे दिन कथा व्यास पंडित देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने कहे। इस संबंध में जानकारी देते हुए यज्ञ संचालक धर्मरक्षक पंडित दुर्गा प्रसाद कटारे ने कहा कि ग्राम चंदेरी में एकादश कुंडीय श्रीराम महायज्ञ प्राण-प्रतिष्ठा समारोह और संगीतमय श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सुबह आठ बजे से यज्ञ में आहुतियां दी जा रही है, वहीं दोपहर में श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। 


कथा व्यास पंडित श्री शास्त्री ने केवट प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा। भगवान केवट के समीप आए। गंगाजी का किनारा भक्ति का घाट है और केवट भगवान का परम भक्त है, किंतु वह अपनी भक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहता था। अत: वह भगवान से अटपटी वाणी का प्रयोग करता है। केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण धुलवाने के लिए मुझे आदेश दे दीजिए, तो मैं आपको पार कर दूंगा केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा। उसने भगवान से उनके चरणों का प्रक्षालन मांगा। केवट की नाव से गंगा पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। सीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर-मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया, किंतु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिया। जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसे भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया। कथा के अंत में धर्मरक्षक पंडित कटारे के साथ  सुरेन्द्र सिंह मेवाड़ा आदि ने आरती की। 

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