सीहोर : गणगौर तीज पर निकाला जाएगा भव्य चल समारोह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

सीहोर : गणगौर तीज पर निकाला जाएगा भव्य चल समारोह

  • मां पार्वती के कठोर तप का प्रतीक है गणगौर का पर्व : श्रीमती ज्योति अग्रवाल

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सीहोर। शहर में अग्रवाल महिला मंडल, माहेश्वरी महिला मंडल और स्वर्णकार समाज के संयुक्त तत्वाधान में हर साल की तरह इस साल भी आस्था और उत्साह के साथ गणगौर का पर्व मनाया जा रहा है। गुरुवार को शहर के संजय टाकीज के समीपस्थ स्वर्णकार समाज के गार्डन में महिलाओं के द्वारा पूजा अर्चना की गई अब शुक्रवार को शहर के अमर टाकीज के समीप नारायण भवन पर शोभा चांडक के द्वारा सामूहिक रूप से निकाली जाने वाली गणगौर का स्वागत किया जाएगा। इस संबंध में जानकारी देते हुए अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती ज्योति अग्रवाल ने बताया कि माहेश्वरी महिला मंडल श्रीमती आभा कासट, सोनी महिला मंडल की अध्यक्ष सुनीता सोनी के मार्गदर्शन में गणगौर का पर्व महिलाओं के द्वारा पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।


अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती अग्रवाल ने बताया कि आगामी गणगौर की तीज व्रत पर भव्य रूप से चल समारोह निकाला जाएगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार, गणगौर पूजन के माध्यम से मां पार्वती द्वारा की गई तपस्या व पूजन का अनुसरण किया जाता है। उन्होंने शिवजी की प्राप्ति के लिए घोर तप किया था। उसके बाद उन्हें पति रूप में पाया था। गणगौर पूजन के दिन गणगौर को प्रसाद चढ़ाया जाता है। महिलाओं और बच्चियों द्वारा ही यह प्रसाद ग्रहण किया जाता है। शहर में पिछले दिनों लगातार गणगौर उत्सव की धूम चल रही थी। गणगौर महिलाओं का त्योहार है। यह सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए अथवा पति के दीर्घ जीवन के लिए किया जाता है। प्रसाद को इस पूजन का फल समझा जाता है। गणगौर का पर्व सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। उत्सव प्रारंभ होने के साथ ही महिलाएं हाथों और पैरों को मेहंदी से सजाती हैं। इसके बाद सोलह श्रृंगार के साथ गवर माता को पूजती हैं और भजन गाती महिलाएं होली की राख अपने घर ले जाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाई जाती हैं। पूजन के स्थान पर दीवार पर ईसर और गवरी के भव्य चित्र अंकित कर दिए जाते हैं। ईसर के सामने गवरी हाथ जोड़े बैठी रहती है। ईसरजी काली दाढ़ी और राजसी पोशाक में तेजस्वी पुरुष के रूप में अंकित किए जाते हैं। मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोली कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं। दीवार पर सोलह बिंदियां कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की रोज लगाई जाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं हैं और सुहाग का प्रतीक भी। महादेव को पूजती कुंआरी कन्याएं मनचाहे वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ जुलूस और गणगौर की सवारी निकलती है, जो आकर्षण का केंद्र जाती हैं।

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