विशेष : फर्जी है जाति आधारित गणना रिपोर्ट? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 29 अप्रैल 2024

विशेष : फर्जी है जाति आधारित गणना रिपोर्ट?

  • सामान्य प्रशासन विभाग ने कहा- जिलावार आंकड़े संकलित नहीं

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जा‍ति आधारित गणना रिपोर्ट को बिहार सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में दर्शाती है। तेजस्‍वी यादव जाति गणना को अपनी उपलब्धियों में बताते हैं और उसकी मार्केटिंग भी खूब करते हैं। मुख्‍यमंत्री  नीतीश कुमार भी इसे ऐतिहासिक कहते हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर बिहार में आरक्षण का कोटा पु‍नर्निर्धारित किया गया। आरक्षण 60 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया। जिस जा‍ति गणना को नीतीश कुमार अपनी उपलब्धि बता रहे हैं, उन्‍हीं का विभाग उनके दावे को झूठ करार देता है। सामान्‍य प्रशासन विभाग आरटीआई के तहत पूछे गये एक सवाल के जबाव में कहता है कि बिहार जाति आधारित गणना, 2022 से संबंधित आंकड़ों को संप्रति जिलावार और पंचायतवार संकलित नहीं किया गया है। मुजफ्फरपुर के रहने वाले अमरेंद्र कुमार के आरटीआई के जवाब में सामान्‍य प्रशासन विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी सह उप सचिव मिनहाज अख्‍तर ने बताया है कि जिलावार और पंचायतवार आंकड़े संकलित नहीं हैं।


इस जवाब के आलोक में यह प्रश्‍न बनता है कि जब आंकड़े पंचायतवार और जिलावार संकलित ही नहीं किये गये हैं तो राज्‍य स्‍तरीय आकंड़े किस आधार पर तैयार किये गये। जाति आधारित गणना की रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखी गयी और उसी के आधार पर आरक्षण का कोटा भी पु‍नर्निर्धारित किया गया। यदि लोक सूचना पदाधिकारी द्वारा दी गयी सूचना को सही माना जाये तो विधान सभा में प्रस्‍तुत जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पूरी तरह फर्जी और निराधार है। इस संबंध में नोडल अधिकारी द्वारा टेबुल पर तैयार की गयी रिपोर्ट है। विधान सभा में रिपोर्ट पर हो रही चर्चा के दौरान स्‍वयं मुख्‍यमंत्री ने कहा था कि सभी तरह की जानकारी पंचायतवार संकलित है और सरकार उसके आधार पर पंचायत स्‍तरीय योजनाओं का निर्धारण भी करेगी। यदि जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पंचायतवार संकलित नहीं है तो क्‍या मुख्‍यमंत्री विधान सभा को गुमराह कर रहे थे। लोक सूचना अधिकारी द्वारा दी गयी जानकारी को सही मान लिया जाये तो एक बड़ा घोटाला का भी खुलासा हो रहा है।


सरकार ने हाल ही 6 हजार तक मासिक आमदनी वाले गरीब परिवारों के लिए दो-दो लाख रुपये देने की शुरुआत की है, ताकि वे आर्थिक उन्‍नयन कर सकें। अपना रोजगार शुरू कर सकें। ऐसे परिवारों की संख्‍या 96 लाख से अधिक है। जब सरकार के पास पंचायत और जिलावार आंकड़े संकलित नहीं हैं तो वे कौन परिवार हैं, जिनकी आमदनी प्रति माह 6 हजार रुपये तक है। बिहार लघु उद्यमी योजना के तहत पहली किस्‍त का वितरण भी किया जा चुका है तो सवाल यह है कि जब पंचायत स्‍तर पर आंकड़े संकलित नहीं हैं तो किस आधार पर लोगों ने आवेदन किया और ऐसे गरीबों की पहचान किस अधिकारी ने की।  सरकारी दस्‍तावेज ही बता रहे हैं कि जाति आधारित गणना के आंकड़े पंचायत और जिलावार संकलित नहीं हैं तो राज्‍यस्‍तरीय आंकड़ों को कैसे सही माना जाए। मुख्‍यमंत्री और जाति आधारित गणना के नोडल अधिकारी को यह बताना चाहिए कि पंचायतवार और जिलावार आंकड़ों के बिना राज्‍य स्‍तरीय आंकड़े कैसे तैयार किये गये। यह कौन सा विज्ञान है कि बिना दूध और जोरन के दही  बन जाता है।




वीरेंद्र यादव, 

वरिष्‍ठ पत्रकार

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