सीहोर : आज किया जाएगा मरीह माता मंदिर पर कन्याओं का पूजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 10 अप्रैल 2024

सीहोर : आज किया जाएगा मरीह माता मंदिर पर कन्याओं का पूजन

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सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में आस्था के साथ चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। नवरात्रि के दूसरे दिन यहां पर उपस्थित श्रद्धालुओं के द्वारा फूलों से माता का विशेष श्रृंगार किया गया। इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ और हवन-पूजन किया गया। प्रबंधक रोहित मेवाड़ा ने बताया कि बुधवार की शाम को हलवे की प्रसादी का वितरण किया गया था। वहीं गुरुवार को कन्याओं का पूजन किया जाएगा। मंदिर में 100 से अधिक समय से चारों नवरात्रि का पर्व पूरी आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर  मंदिर के प्रबंधक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, राहुल सिंह जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, पंडित उमेश दुबे, पंडित गणेश शर्मा, सुनिल चौकसे, सुभाष कुशवाहा, सुमित भानू उपाध्याय, रामू सोनी सहित अन्य के द्वारा किया जाएगा। यहां पर सुबह हवन-पूजन के अलावा नौ दिन मां का अलग-अलग स्वरूपों में सुंदर श्रृंगार किया जाएगा। इसके अलावा परम्परा अनुसार इस वर्ष भी महाष्टमी की रात्रि बारह बजे निशा आरती और उसके पश्चात भव्य भंडारे का आयोजन किया जाएगा।


नौ दिन जीवन में उमंग एवं उर्जा शक्ति का संचार करते

जिला संस्कार मंच के संयोजक मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि नवरात्रि के नौ दिन जीवन में उमंग एवं उर्जा शक्ति का संचार करते हैं, मां के नौ स्वरूपों की आराधना करने से तन और मन दोनों निर्मल हो जाते हैं, जिससे रोग और शोक दूर होने लगते हैं। सर्वव्यापी ब्रह्माण्डीय चेतना का दूसरा स्वरूप नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के रूप में भक्तों को आशीष देता है। देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से दूसरे अवतार को, माता ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। देवी के इस अवतार की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। मां का नाम ब्रह्मचारिणी दो शब्द ब्रह्म और चारिणी से मिलकर बना है। जहां ब्रह्म का अर्थ है तपस्या, वहीं चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, तप का आचरण करने वाली। महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए की गई कठोर तपस्या के कारण ही देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का आविर्भाव हुआ था। मान्यता है कि देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करने वाले भक्त शीघ्र ही समस्त भोगों के सुख को भोग कर अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं और ब्रह्म तत्व की प्राप्ति करते हैं। हमें भी माता की शरण प्राप्त हो ऐसी भावना भानी चाहिए।


तप, त्याग, सदाचार, परिश्रम और संयम

उन्होंने बताया कि देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी अवतार की कहानी हमें ये सीख देती है, कि तप, त्याग, सदाचार, परिश्रम और संयम का मनुष्य के जीवन में कितना महत्व होता है। मनुष्य अगर कठोर परिश्रम करते हुए अपना जीवन यापन करें, तो उसे अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस प्रकार अत्यंत मुश्किल परिस्थियों में भी देवी ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या का पथ नहीं छोड़ा, उसी प्रकार मनुष्य को भी परिश्रम का पथ नहीं छोडऩा चाहिए।


मां ब्रह्चारिणी का दिव्य स्वरूप -

श्री दीक्षित ने बताया कि पूरे चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय और भव्य रूप वाली दो भुजाओं वाली इस ब्रह्मचारिणी कौमारी शक्ति का स्थान योगियों ने स्वाधिष्ठान चक्र में बताया है। इनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में जप की माला रहती है। अपने भक्तों को ब्रह्मचारिणी उनके प्रत्येक कार्य में सफलता देती है। वे सन्मार्ग से कभी नहीं हटते और जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य का पालन बिना विचलित हुए करते रहते हैं। मां भगवती सूक्ष्म से सूक्ष्म रूपों में भी शिव प्राप्ति के लिए तप करती रही, तीनों लोकों में भगवती के इस रूप का तेज व्याप्त हो गया, तब ब्रह्माजी ने आकाशवाणी से इस रूप को भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने का वर दिया। इस देवी के पूजन से जीवन के कठिन संघर्षों में भी साधक का मन विचलित नहीं होता है। इस रूप के पूजन से दीर्घायु प्राप्त की जाती है।

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