इस धरती पर चारों और दुखों का साम्राज्य है। और हम ऐश्वर्य भोग के सपने देखते-देखते बूढ़े हो रहे हैं। हर तरफ तरफ हिंसा है, अनाचार है। मानवाधिकार का हो हल्ला है, लेकिन मनुष्यता पल-पल तार हो रही है। संवेदनाएं शून्य समाज में यदा-कदा ही झलकती है। दया, करुणा और प्रेम के लिए जगह ही नहीं बची। मतलब साफ है विज्ञान ने चाहे जितनी उन्नति कर लिया हो लेकिन सच्चाई यह है कि अनंत वैष्णव के जाल में फंसा आदमी मुक्ति के लिए छटपटा रहा है। जिस दिन आदमी हार मानकर अपने उजाले में लौटना चाहेगा, तब उसके मुख से शायद एक ही वाक्य निकलेगा, बुद्धम् शरणम् गच्छामि। जी हां भगवान भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था। इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है. गौतम बुद्ध को भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. इस बार की बुद्ध पूर्णिमा बेहद खास रहने वाली क्योंकि इस दिन दुर्लभ संयोग का निर्माण होने जा रहा है. इस वर्ष यह पर्व 23 मई को है। इस दिन दोपहर 12ः11 से अगले दिन सुबह 11ः22 तक शिवयोग रहेगा. इसके अलावा इस दिन गुरु शुक्र और सूर्य कि इस दिन त्रिग्रही योग का निर्माण भी कर रहे हैं. गुरु और सूर्य की युति से इस दिन गुरु आदित्य योग भी विद्यमान रहेगा। इसके अलावा गज लक्ष्मी और शुक्र आदित्य योग भी इस दिन रहेगा। इन शुभ योग में किया गया कार्य सफल होगा
क्षमा याचना की प्रेरणा
शाम का समय था। महात्मा बुद्ध एक शिला पर बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक देख रहे थे। तभी उनका शिष्य आया और आया और गुस्से में बोला, गुरुजी ‘रामजी‘ नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें, उसे उसकी मूर्खता का सबक सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, ‘प्रिय तुम बौद्ध हो, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। तुम इस प्रसंग को भुलाने की कोशिश करो। जब प्रसंग को भुला दोगे, तो अपमान कहां बचेगा?‘। लेकिन तथागत, उस धूर्त ने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया है। आपको चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस, मैं संतुष्ट हो जाउंगा। महात्मा बुद्ध समझ गए कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए वह बोले, अच्छा वत्स! यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलूंगा, और उसे समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा, हम सुबह चलेंगे। सुबह हुई, बात आई-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ न कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा- प्रियवर! आज रामजी के पास चलोगे न?‘ नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपने कृत्य पर भारी पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं। तथागत ने हंसते हुए कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो अब अवश्य ही हमें रामजी महोदय के पास चलना होगा। अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे।‘मनेगी 2668वीं जयंती
बुद्ध पूर्णिमा पर शुक्रवार को महात्मा बुद्ध की 2668 वीं जयंती मनाई जाएगी। इस अवसर पर बौद्ध भिक्षु व उपासक मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में महात्मा बुद्ध के अस्थि अवशेष का दर्शन करेंगे। इस अवसर पर बौद्ध भिक्षु धमेख स्तूप के समक्ष विश्व शांति के लिए प्रार्थना करेंगे। भिक्षु सुमितानंद के नेतृत्व में धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र का पाठ किया जाएगा। साथ ही मूलगंधकुटी विहार स्थित बौद्ध मंदिर परिसर को 2668 दीपों से प्रज्वलित किया जाएगा। बुद्ध विहार कार्यालय के सामने सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक भोजन दान किया जाएगा। इसमें सारनाथ में आने वाले पर्यटक व आगंतुक भोजन करेंगे।
महात्मा बुद्ध का ज्ञान
महात्मा बुद्ध ने हमेशा मनुष्य को भविष्य की चिंता से निकलकर वर्तमान में खड़े रहने की शिक्षा दी। उन्होंने दुनिया को बताया आप अभी अपनी जिंदगी को जिएं, भविष्य के बारे में सोचकर समय बर्बाद ना करें। बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनके ज्ञान की रौशनी पूरी दुनिया में फैली। महात्मा बुद्ध का एक मूल सवाल है। जीवन का सत्य क्या है? भविष्य को हम जानते नहीं है। अतीत पर या तो हम गर्व करते हैं या उसे याद करके पछताते हैं। भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं। दोनों दुखदायी हैं। बुद्ध के जीवन में दो स्त्रियां बहुत अहम स्थान रखती हैं। एक तो उनकी मौसी महापजापति गौतमी और दूसरी सुजाता जो उनके आत्मिक जन्म का निमित्त बनी। बुद्ध की जन्मदात्री मां उनके जन्म के बाद मर गईं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। उसके लिए गौतमी ने अपने नवजात पुत्र को किसी और दाई को सौंपा और वह खुद बालक सिद्धार्थ का पालन करने लगी। गौतमी ने आगे चलकर बुद्ध से दीक्षा लेने की जिद की, उसके कारण संघ में स्त्री का प्रवेश हुआ, और वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुई। दूसरी घटना है कि बुद्ध दिन रात बिना रुके ध्यान करते थे, इस वजह से उनका शरीर उपवास और तपस्या से क्षीण, अस्थिपंजर हो गया था। लेकिन एक पूर्णिमा के दिन उन्होंने सारे नियम तोड़ने का निश्चय किया और सहज स्वीकार भाव में बैठ गए। भोर के समय सुजाता नाम की स्त्री अपनी मन्नत पूरी करने के लिए खीर बनाकर ले आई। बुद्ध को देख कर उसे लगा, वृक्ष देवता प्रगट हुए हैं। उसने उन्हीं को भोग लगाया और खीर खाने की बिनती करने लगी। बुद्ध ने उसकी बिनती स्वीकार की और सुजाता के हाथ की खीर खाई। उसी दिन उन्हें बुद्धत्व की उपलब्धि हुई। उस दिन सुजाता उन्हें खीर नहीं खिलाती तो उनका शरीर नष्ट हो सकता था। बुद्ध की मां उनके जन्म के बाद नहीं रहीं थीं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। महामानव वो होते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ताउम्र कुछ ऐसी मिसाल कायम की, जिसके कारण उनको भगवान का दर्जा दिया गया। और वह अंत में देवत्व को प्राप्त होकर लोगों के पूज्य हो जाते हैं। उनके नाम पर एक विशेष धर्म जन्म लेता है। जो उस व्यक्ति के विचारों को आगे ले जाने के लिए अपने अनुयायियों को बढ़ाते हुए लोगों के अंदर नई शक्ति और नई चेतना का संचार करता है। इन्हीं में से एक थे भगवान बुद्ध, जिन्हें बौद्ध धर्म का निर्माता भी कहा जाता है। भगवान बुद्ध समय की महत्ता को बेहद अच्छी तरह से जानते थे। वह अपना हर क्षण कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला, तथागत आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है? और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है? प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। तथागत बेतुकी चर्चा में नहीं उलझना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘अरे भाई! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुख क्यों होता है?‘ और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गवाएं ऐसा करने पर आपको दुःख नहीं आएगा। यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है? भाई उस तीर से लगने पर उसका उपचार जरूरी है न की निरर्थक की बातों में समय गंवाना। कई लोग, कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं बहते पानी को तो फिर भी सुरक्षित किया जा सकता है लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापिस कभी नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय को सोच समझ कर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है।
गया में की 6 वर्षों तक तपस्या
बोधगया से करीब 10 किमी की दूरी पर स्थित ढूंगेश्वरी पहाड़ी में प्रागबोधि गुफा है. यहां राजकुमार सिद्धार्थ ने ज्ञान की खोज में छह वर्षों तक तपस्या हिंदू साधना की पराकाष्ठा हठयोग के तहत की थी. बताया जाता है कि अपने कुछ शिष्यों के साथ उन्होंने यहां छह वर्षों तक घोर साधना की और तब उन्होंने खाना-पीना भी छोड़ दिया था. भोजन न मिलने के कारण उनका शरीर कंकाल का रूप धारण कर लिया था और आज भी यहां कंकाल बुद्धा के रूप में बुद्ध की मूर्ति स्थापित है. बौद्ध श्रद्धालु यहां आकर कंकाल बुद्धा का दर्शन करना नहीं भूलते. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी प्रागबोधि गुफा का वर्णन किया है. प्रागबोधि गुफा में स्थापित कंकाल मुर्ति। प्रागबोधि गुफा में स्थापित कंकाल मुर्ति। कहा जाता है कि ढूंगेश्वरी पहाड़ी से साधना के बाद संतुष्ट नहीं होने पर सिद्धार्थ ने पहाड़ की तलहटी से होते हुए मुहाने नदी पार की और तब नदी के कछार पर स्थित सेनानी ग्राम में एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम किया. उनके साथ उनके शिष्य भी थे. इसी दरम्यान सेनानी ग्राम की युवती सुजाता ने उन्हें खीर खिलायी. कहा जाता है कि इसके बाद ही उन्हें मध्यम मार्ग का ज्ञान हुआ और उन्होंने कहा कि शरीर भी जरूरी है.
‘क्षमा, संयम, त्याग’ ही है बुद्ध के संदेश
जब भी गौतम बुद्ध का नाम मेरे मस्तिष्क में आता है तो उनकी एक कहानी मुझे हमेशा याद आ जाती है. किस्सा कुछ यूं है- एक बार वे अपने शिष्यों से संवाद कर रहे थे, तभी गुस्से से भरा एक व्यक्ति आ गया और उन्हें जोर-जोर से अपशब्द कहने लगा. महात्मा बेहद शांत भाव से मुस्कुराते हुए सुनते रहे. बुद्ध तब तक उसे सुनते रहे, जब तक वह थक नहीं गया. शिष्यवृंद क्रोध से भरा जा रहा था. वह व्यक्ति भी आश्चर्यचकित था, हारकर उसने बुद्ध से पूछा- मैं आपको इतने कटु वचन बोल रहा हूं, लेकिन आपने एक बार भी जवाब नहीं दिया, क्यों? बुद्ध ने उसी शांत भाव से कहा- यदि तुम मुझे कुछ देना चाहो और मैं नहीं लूं, तो वह सामान किसके पास रह जायेगा? व्यक्ति ने कहा- निश्चय ही वो मेरे पास रह जायेगा. बुद्ध ने कहा- आपके अपशब्द किसके पास रह गये? व्यक्ति गौतम बुद्ध के पैरों पर गिर पड़ा. यही बुद्ध की ताकत थी. यही बुद्धत्व का सार है. ‘क्षमा, संयम, त्याग’ मुझे लगता है इन्हीं बातों की आज सबसे ज्यादा जरूरत है। गौतम बुद्ध के आदर्श, त्रिशरण व पंचशील का पालन सुखमय जीवन जीने की आधारशिला हैं। बौद्ध धर्म नहीं, यह धम्म भी है। यह जीवन जीने की यह एक विचारधारा है। बुद्ध के बताए मार्ग पर चलने से ज्ञात होता है, जीवन का यथार्थ। तथागत भगवान बुद्ध के शांति व सद्भाव के संदेश को अपनाने की आवश्यकता है। पंचशील सिद्धांत और अष्टशील ग्रहण कर बुद्ध के बताए मार्ग पर चलने से विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। उनकी शिक्षा में मानवता को प्रधानता दी गई है। वर्तमान समय में युद्ध नहीं बुद्ध की आवश्यक्ता है। हमें गौतम बुद्ध के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए। बुद्ध ने पूरे विश्व को सद्भाव, प्रेम व शांति का संदेश दिया है। बुद्ध के जीवन से हमें संघर्ष की प्रेरणा मिलती है। भगवान बुद्ध ने विश्व शांति के लिए तप किया। सभी को अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। बुद्ध पूर्णिमा दिवस भगवान बुद्ध की बुद्धत्व की प्राप्ति हेतु मनाया जाता है। इस दिन को बौद्ध धर्म के लोग ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के लोग भी धूमधाम से मनाते हैं।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें