- रोहिणी के लिए आसान दिख रही लोकसभा की राह
सारण के मतदान केंद्रों का दौरा और स्थानीय लोगों से बातचीत में यह बात सामने आ रही थी कि सारण की जनता किडनी की लाज बचा रही है और इसका लाभ भी बूथ पर मिल रहा है। लोकसभा की राह आसान होती दिख रही है। हालांकि किडनी दान को लेकर लोगों में सहानुभूति नहीं थी, लेकिन रोहिणी के प्रति सम्मान का भाव जरूर था। लोगों से बातचीत में कुछ कहानियां भी सामने आयीं। जेपी सेतु से लगी सड़क के किनारे एक बाबू साहेब से एक भींडी के खेत के मेड़ पर मुलाकात हुई। वोट टपकाकर अपने एक दोस्त राय जी के खेत पर आये थे। उन्होंने बताया कि लालूजी का प्रारंभिक कार्यक्षेत्र पहलेजा में ही था। उनके दो दोस्त थे। एक सरपंच साहेब और चंदेसर राय (नाम सही तरह से याद नहीं है)। दोनों में से अब कोई नहीं बचे हैं। पहलेजा घाट और पहलेजा स्टेशन की कहानी भी सुनायी। हम रामसुंदर दास बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, खरिका में गये थे। बूथ खोजते हुए वहां पहुंच गये थे। वहीं से 5-6 किलोमीटर अंदर दियारे में पहलेजा गांव है। उस इलाके के दियारे में जाने की इच्छा हुई, लेकिन चेतावनी ने कदम रोक दी थी। जब हम गोविंदचक में थे तो बातचीत में एक व्यक्ति ने कहा था कि दियारे में मत जाइएगा। वहीं हमारी ससुराल है। दियारे में बहुत धूल उड़ती और पूरा तरह तोपा जाइएगा। हालांकि बूथ भ्रमण के दौरान राजद के लिए खतरनाक संकेत भी सामने निकल कर आये।
हम गोविंदचक से खरिका की राह में जा रहे थे। तीन-चार लड़के बैठे हुए थे। हमने गाड़ी रोकी और उनसे बातचीत करने लगे। उन सबसे जाति पूछने के बाद हमने कहा – वोट डाल आये। हामी भरी। फिर हमने पूछा- कहां डाल आये हो। उसमें से एक ने कहा कि दो नंबर पर। हमने पूछा कि दो नंबर किसका है। उसने कहा कि मोदी का। बात आगे बढ़ी। हमने पूछा कि बोलने में डरते क्यों हो। उसने कहा- अहीर सब मारने लगेगा। वे सब लड़के दलित वर्ग के थे। तेजस्वी यादव मंच से दलित, अतिपिछड़ों को गले लगाने की अपील करते हैं और उनके ही समर्थकों के बारे में उन्हीं वर्गों में भय व्याप्त है कि गर्दन पकड़ लेगा। हमने जितने भी बूथ पर गये, उन सभी पर भाजपा और राजद के पोलिंग एजेंट थे। दोनों पार्टियों के एजेंटों में बेसिक अंतर था। भाजपा का एजेंट पोलिटिकली ज्यादा जागरूक दिखा, जबकि राजद का एजेंट ज्यादा फरहर नहीं था। दोनों के पहनावे भी पृष्ठभूमि का भेद बाते रहे थे। इसका मतलब यह है कि मोटा चेन, झकास कुर्ता-पैजामा पहनकर महंगी गाडि़यों पर सवार होकर तेजस्वी की परिक्रमा करने वाले युवकों की टोली बूथ से गायब है। बूथ पर वही तैनात है, जिसके कुर्ते की गंध से तेजस्वी यादव को उल्टी आती है। तेजस्वी यादव की यह हनक है कि उनके बांह के नीचे एक सांसद अपना कंधा लगाकर सहारा देने को तैयार है। एक सांसद शानदार कसीदे गढ़ता है। पार्टी का चंदा संभालने में फौज लगी हुई है। लेकिन तेजस्वी यादव अपने कुनबे के बाहर निकल और देख नहीं पाये तो दलित, अतिपिछड़ों, वंचितों को गले लगाने की अपील गले का फंदा भी बन सकता है।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार, पटना ---
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