51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ मां विन्ध्यवासिनी धाम के लिए यूपी ही नहीं पूरे देश में जाना जाने वाला मिर्जापुर एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जो धार्मिक ही नहीं किला, झरना व मठ-मंदिर के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्यता व पीतल के बर्तन के अलावा रंग-बिरंगी बलबूटेदार हस्तनिर्मित कालीनें भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह अलग बात है कि हाल के वेब सीरीज में ओटीटी पर देखे जाने वाली फिल्म मिर्जापुर, मिर्जापुर सीजन 3’, गुड्डु भईया और कालीन भईया का नाम लेते ही युवाओं का चेहरा कौंध उठता है. और बात चुनाव की होती है यहां मुद्दों की जगह जातीय गोलबंदी की चर्चा ज्यादा होती है। शायद यही वजह भी है कि इस बार केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए सपा ने राजेन्द्र बिन्द का टिकट काटकर रमेश बिन्द व बसपा ने मनीष त्रिपाठी के जरिए जातीय चक्रव्यूह तैयार किया है। सपा बसपा का जीत का सपना साकार होगा या निराकर, ये तो 4 जून को ईवीएम बतायेगा, लेकिन विन्ध्याचल के जगन्नाथ पांडेय कहते यहां मुद्दा राजा रानी का नहीं बल्कि जीत उसी की होगा, जो जातिय गुणा-गणित के सांचे में फिट होने के साथ ही राष्ट्रवाद व सनातन हित के रक्षा की बात करेगा। जबकि घंटाघर के तुलसी यादव का कहना है कि वोटबैंक की समीकरण के बीच श्रीराम मंदिर, 370, राष्ट्रवाद, विकास व मोदी लहर तो है ही मां विन्ध्यवासिनी विश्वविद्यालय, विसुन्दरपुर का मेडिकल कालेज, मॉ विन्ध्यवासिनी कॉरीडोर, 6 लेन ओवरब्रिज, इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) का पेट्रोलियम डिपों, रामनगर-टिंगरामोड़ ओवरब्रिज जैसे विकास कार्य भी उनके जेहन में है। इससे इतर गौरा विजयपुर के आलम अंसारी कहते है नफरत की राजनीति उन्हें डराती है। इस चुनाव में बेराजेगारी, महंगाई तो बड़ा मुद्दा है ही बुनकरों का पलायन व जनप्रतिनिधियों द्वारा किसी फैक्ट्री न लगवाने की टीस उन्हें सता रहा है। लालडिग्गी के हरिशंकर सिंह का कहना है कि जातिगत गणना और पीएम मोदी को वोट देने की लोकप्रिय भावना के साथ ही मुख्य चुनावी मुद्दा मोदी योगी के विकास का है, न कि राजा रानी का। वैसे भी राजा भैया का मिर्जापर में कोई प्रभाव नहीं है और दो चार चाटुकारों को छोड़ दें उन्हें कोई जानता भी नहीं है
लोकसभा चुनाव अब अपने आखिरी पड़ाव पर है। सातवें चरण में मिर्जापुर के लिए वोटिंग 1 जून को होनी है. ऐसे में माहौल अपने पक्ष में करने के लिए चुनावी धनुर्धरों ने पूरी ताकत झोक रखी है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच वादों और इरादों की झड़ी लगी है। इन्हीं दावों और वादों के बीच मिर्जापुर में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल तीसरी बार जीत की हैट्रिक लगाने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। खासकर उनके द्वारा कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ दिए गए उस बयान की चर्चा काफी है, जिसमें उन्होंने कहा है लोकतंत्र में कोई भी राजा रानी के पेट से पैदा नहीं होता है. वह तो ईवीएम से पैदा होता है. कुंडा किसी की जागीर नहीं है. कुंडा की जनता ये बता चुकी है. ये देश अब संविधान से चलता है ना कि किसी की हुकूमत से.’ इस बयान के बाद राजा भैया के समर्थक सपा का माहौल बनाने में जुटे है। लेकिन मुकेरी बाजार के देवेन्द्र सिंह कहते है राजा भैया के लिए अनुप्रिया का सियासी गेम बिगाड़ना इतना आसान नहीं होगा। मुठ्ठीभर समर्थकों के शोर मचाने से कुछ होना जाना नहीं है। लोगों को अनुप्रिया के विकास याद है।
मिर्जापुरवासी समझ रहे है कि किस तरह मॉ विन्ध्यवासिनी कॉरीडोर के निर्माण के बाद श्रद्धालुओं व पर्यटकों का आवागमन बढ़ा है। वैसे भी इस सीट का जातीय समीकरण केंद्रीय मंत्री के पक्ष में जाता दिख रहा है. देखा जाएं तो हर क्षेत्रों की तरह 2008 के बाद मिर्जापुर लोक सभा के अंतर्गत मिर्जापुर नगर, छानबे, चुनार, मड़िहान और मझवां सहित पांच विधान सभाएं है. इस लोकसभा में कुल 18 लाख 72 हजार 394 मतदाता है। जिसमे पुरूष मतदाता 9 लाख 83 हजार 438 और महिला मतदाताओं कि संख्या 8 लाख 88 हजार 851 है. राजनीतिक समीकरण से देखें तो मिर्जापुर के पांच विधानसभाओं में मिर्जापुर सदर, चुनार व मड़िहान भाजपा और मझवां उसकी सहयोगी निषाद पार्टी व छानबे पर अपना दल (सोनेलाल) काबिज है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि मिर्जापुर 2008 तक मिर्जापुर-भदोही लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. 2008 में परिसीमन के बाद मिर्जापुर अलग और भदोही लोकसभा बन गया. मिर्जापुर लोकसभा बनने के बाद सपा के बाल कुमार पटेल यहां के पहले सांसद बने. इसके बाद बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की नेता अनुप्रिया सिंह पटेल यहां लगातार दो बार जीत दर्ज की है. एक मिथक के अनुसार, मिर्जापुर लोकसभा सीट से कोई भी तीसरी बार सांसद नहीं बना. फूलन देवी भी दो ही बार यहां से संसद पहुंच सकी थी। ईडी गठबंधन ने वर्तमान सांसद, अनुप्रिया पटेल के पास बाबा योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर इतिहास रचने का सुनहरा मौका हैं. यह अलग बात है कि 2024 लोकसभा चुनाव में उनकी राह रोकने के लिए इंडी गठबंधन चट्टान की तरह खड़ा है। सपा मुख्यि अखिलेश यादव ने अनुप्रिया के अभेद किले को भेदने के लिए ऐन वक्त पर राजेंद्र एस बिंद का टिकट कांटकर भदोही से भाजपा सांसद रहे रमेश बिन्द का टिकट कटने के बाद अपना उम्मीदवार बनाया है। उन्हें भरोसा है कि एमवाई समीकरण में रमेश बिन्द फिट बैठते है। जबकि बसपा सुप्रीमों मायावती ने मनीष त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। उन्हें भी भरोसा है कि दलित ब्राह्मण गठजोड से उन्हें कामयाबी मिलेगी। बता दें, अनुप्रिया की पार्टी सत्ताधारी एनडीए का हिस्सा है. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में राज्य मंत्री हैं. 2014 व 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा की लहर कुछ यूं चली कि हर किसी के पांव इस क्षेत्र में उखड़ गए और अब तो उनके साथ वोटबैंक की समीकरण के बीच श्रीराम मंदिर, 370, राष्ट्रवाद, विकास व मोदी लहर तो है ही मां विन्ध्यवासिनी विश्वविद्यालय, विसुन्दरपुर का मेडिकल कालेज, मॉ विन्ध्यवासिनी कॉरीडोर, 6 लेन ओवरब्रिज, इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) का पेट्रोलियम डिपों, रामनगर-टिंगरामोड़ ओवरब्रिज जैसे विकास कार्य भी है।
रामआसरे बिन्द का कहना है कि वो दिन भी थे, जब दूसरे शहरों से लोग रोजगार के लिये मिर्जापुर आते थे। यह संपन्नता अब बीते जमाने की बात हो गई है। आज बेरोजगारी यहां की सबसे बड़ी समस्या है। कालीन एवं पीतल बर्तन उद्योग दोनों की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि लोग रोजगार के लिये पलायन कर रहे हैं। आजादी के बाद से कई जनप्रतिनिधि आये और विकास के लंबे चौड़े वादे किये, मगर हालात नहीं बदले। यह अलग बात है कि योगी सरकार में विकास दिखाई देने लगे है। भैसा निवासी धनु का कहना है कि उनके एवं गांव के लोगों के प्रयास से लड़-झगड़ वह खते के बीच से रास्ता तो बना लिए है, मिट्टी भी पाट दिया गया है, लेकिन डामरयुक्त कंक्रीट नहीं बिछाया जा रहा है। इसकी शिकायत उन्होंने कई बार जिला प्रशासन और पीडब्ल्यूडी से की और तमाम बार सांसद व विधायक सहित क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से भी सड़क को बनवाने की गुहार लगाई लेकिन उनकी इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और सड़क आज भी कच्ची पड़ी है। सिर पर दौरा उठाएं फूलमती का कहना है कि एक तरफ सरकार जहां सड़क - बिजली - पानी और जनता की तमाम मूलभूत सुविधाओं को धरातल पर देने की बात कह रही है और बहुत सी जगहों पर सरकार ने अपने इन वादों को पूरा भी किया है, लेकिन जनप्रतिनिधि चाहे वह सांसद हो या विधायक हो या फिर प्रशासनिक अधिकारी ये सभी सरकार के इन वादों को पलीता लगाते नजर आ रहे हैं। भैंसा के गौरीशंकर चौबे व भैरो प्रसाद चौबे ने कहा कि इस चुनाव में राम मंदिर व राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही वह अपना वोट डालेंगे। जबकि मझवा के जितेन्द्र तिवारी ने निर्माणाधीन स्टेडियम का जिक्र करते हुए कहा राजनीतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि जो सरकार शिलान्यास कर रही है, वहीं उद्घाटन भी कर रहा है, जनता मोदी के नाम की बमबम कर रही है। नम्रता का कहना है कि वह पांच सालों में जिस तरह से केंद्र में मंत्री रही वह इससे और अच्छा काम कर सकती थी। जबकि गीता यादव का कहना है कि अगर जाति पाति से उठ कर देखे तो सांसद ने पांच सालों में कई विकास करवाया है। यह अलग बात है कि कमरुछ्दीन को कोई विकास कार्य नजर नहीं आता है। उनका कहना है कि वह केंद्रीय मंत्री थी, उन्हें जनपद में रोजगार के लिए बड़े काम करना चाहिए था। फैक्ट्री लगवानी चाहिए मगर वह नहीं कर पायी। सिद्धनाथ सिंह कहते है, “पार्टी लाइन और उनके सर्मथक के आधार पर ध्रुवीकृत चुनावी परिदृश्य तैयार किया गया है. सभी समुदायों के अस्थायी वोट परिणाम तय करेंगे. हालांकि उनका काम, ग्लैमर और मोदी की लोकप्रियता उनकी मदद कर सकती है.
जातीय समीकरण
2011 की जनगणना के मुताबिक, मिर्जापुर की जनसंख्या करीब 25 लाख है. इसमें 13 लाख के करीब पुरुष और 12 लाख के करीब महिलाएं हैं. कुर्मी बहुल मिर्जापुर में कुल वोटरों की संख्या 11,08,965 थी. जिसमें पुरुष मतदाता 5,87,558 और महिला मतदाता 5,20,101 थी. पिछड़ा दलित और आदिवासी बहुल मिर्जापुर में सामान्य वर्ग की आबादी 18,15,709 लाख है, तो अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी 6,61,129 और अनुसूचित जनजाति की आबादी 20,132 है, जबकि मुस्लिम आबादी करीब दो लाख है. मिर्जापुर सामान्य एवं ग्रामीण संसदीय सीट है. यहां पिछड़े और सामान्य वर्ग की जातियां बहुसंख्यक हैं. 2011 में, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की संख्या 6.80 लाख के आसपास थी. यहां की साक्षरता दर करीब 68.48 फीसदी है. अनुसूचित जाति की आबादी 26.48 फीसदी के लगभग है और अनुसूचित जनजाति 0.81 फीसदी है. कुर्मी मतदाता लगभग 3 लाख के आसपास हैं। बिंद 1 लाख 45 हजार, ब्राह्मण 1 लाख 55 हजार, मौर्या 1 लाख 20 हजार, क्षत्रिय 80 हजार, वैश्य 1 लाख 40 हजार, हरिजन 2 लाख 55 हजार, कोल 1 लाख 15 हजार, यादव 85 हजार के अलावा पाल 50 हजार, सोनकर 30 हजार और प्रजापति, नाई, विश्वकर्मा करीब एक लाख के आसपास है। इस लोकसभा क्षेत्र में निषाद और पटेल जातियों का प्रभाव माना जाता है. इससे सवर्ण वोटरों की भी यहां निर्णायक भूमिक है.
जीत का अंतर 2 लाख से ज्यादा
2014 के लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने बसपा प्रत्याशी को हराया था. अनुप्रिया पटेल को कुल 10,07,627 में से 4,36,536 वोट हासिल हुए थे. कांग्रेस प्रत्याशी ललितेश पति त्रिपाठी को 152666 और सपा प्रत्याशी सुरेंद्र पटेल को 108859 वोट मिले थे। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने सपा के रामचरित्र निषाद को हराया था. अनुप्रिया पटेल को 5,91,564 वोट मिले और सपा के रामचरित्र निषाद को 3,59,556 वोट मिला था. 2019 में अखिलेश यादव की सपा और मायवती की बसपा साथ चुनाव लड़ रही थी. दोनों पार्टी के सयुंक्त उम्मीदवार होने के बाद भी अनुप्रिया पटेल ने 232008 वोटों से हराया था. जबकि 2014 में अनुप्रिया ने बसपा के समुद्र को 2,19,079 मतों से हराया था. संयुक्त प्रत्याशी के बावजूद अनुप्रिया पहले से बड़ी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई.
18.97 लाख मतदाता करेंगे मतदान
इस बार चुनाव में 18 लाख 97 हजार 805 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसमें से 9,94,546 पुरुष, 9,03,154 महिला के साथ ही 105 थर्ड जेंडर मतदाता भी मतदान करेंगे। जिले में इस वर्ष 70 हजार 11 मतदाता बढ़े हैं, जबकि 44,600 मतदाता घट गए हैं। निर्वाचन को सकुशल संपन्न कराने के लिए संसदीय क्षेत्र को 20 जोन और 188 सेक्टरों में विभाजित कर दिया गया है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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