वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है. इस साल 14 मई को गंगा सप्तमी मनाई जाएगी. इस दिन गंगा में स्नान कर समस्त पापों से मुक्ति पाई जा सकती है. पौराणिक कथा के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन मां गंगा स्वर्गलोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थी। इसलिए इस दिन को गंगा सप्तमी रूप में मनाते हैं. इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है. इस दिन गंगा स्नान से सभी पापों से छुटकारा मिलता है. इससे मान सम्मान, यश की प्राप्ति होती है. इस दिन दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहते है इस दिन भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करने से सौभाग्य की प्राप्ति होगी। गंगा पूजन के बाद एक घी का दीपक जलाकर गंगा में छोड़ने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी. घर के वास्तु दोष को दूर करने के लिए गंगाजल का छिड़काव करने से सारे वास्तु दोष दूर हो जाएंगे
पूजा विधि
गंगा सप्तमी तिथि पर दैनिक कार्यों और स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. उसके बाद साफ वस्त्र पहनें फिर तांबे के पात्र में गंगाजल लें. इसके लिए आप लोटे का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस पात्र को लाल रंग के कपड़ें से ढ़क दें. इसके बाद लोटे के ऊपर कलावा बांधें, फिर उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं. आप लाल या पीले चंदन से स्वास्तिक बना सकते हैं. अब आपको इस पात्र को चौकी पर स्थापित करना है. गंगाजल से भरा हुआ पात्र मां गंगा का प्रतीक के रूप में पूजा जाएगा. इसके बाद मां गंगा को अक्षत, धूप दीप, फूल, नैवेद्य, मिठाई, फल आदि वस्तुएं श्रद्धा भाव से अर्पित करना है. इसके बाद मां गंगा के मंत्रों का जाप करें. मां गंगा के स्त्रोत व गंगा चालीसा का पाठ करें.
गंगा सप्तमी पूजा मंत्र
ओउम् नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नमः गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति। काशी के विद्वानों का कहना है कि इस दिन गंगा स्नान और पूजन से सात जन्मों के पाप से मुक्ति मिल जाती है और अमृत की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव की नगरी काशी में मां गंगा का विशेष पूजन होता है.
पौराणिक मान्यताएं
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी गंगा पहली बार गंगा दशहरा के दिन धरती पर उतरी थीं, लेकिन ऋषि जह्नु ने सारा गंगा जल पी लिया। तब सभी देवताओं और भागीरथ ने ऋषि जह्नु से गंगा को छोड़ने का अनुरोध किया। इसके बाद गंगा सप्तमी के दिन देवी गंगा फिर से धरती पर आईं और इसीलिए इस दिन को जह्नु सप्तमी भी कहा जाता है। गंगा सप्तमी से जुड़ी एक और कहानी है, एक बार, कोसल के राजा भागीरथ परेशान थे क्योंकि उनके पूर्वज बुरे कर्मों के पापों से पीड़ित थे। भागीरथ चाहते थे कि वे इससे मुक्त हों, इसलिए उन्होंने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की और भगवान ब्रह्मा ने उन्हें आश्वासन दिया कि गंगा पृथ्वी पर आएंगी, उनके पूर्वजों की आत्मा को शुद्ध करेंगी। लेकिन वह जानते थे कि देवी गंगा का प्रवाह सब कुछ नष्ट कर सकता है, तब ब्रह्मा जी ने भागीरथ को भगवान शिव की पूजा करने के लिए कहा क्योंकि वे ही गंगा के प्रवाह को नियंत्रित कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया और इस शुभ दिन देवी गंगा पृथ्वी पर उतरीं, इसलिए गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। गंगा जल नकारात्मकता से बचाता है और यह शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है। भक्त शिवलिंग अभिषेक के लिए गंगा जल का उपयोग करते हैं। गंगा जल का उपयोग मृत लोगों की अस्थियों को विसर्जित करने में भी किया जाता है ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। उल्लेख मिलता है कि सतयुग राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश और ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डल के जल से ब्रह्माजी ने श्रीविष्णु के चरण का पूजन किया। चरण धोते समय श्रीविष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा। वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया। गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं।
बाबा विश्वनाथ धाम मं होगा भव्य आयोजन
14 मई को गंगा सप्तमी के पर्व पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा विशिष्ट आयोजन किए जायेंगे। प्रातः काल ललिता घाट पर गंगाभिषेक एवं प्रांगण स्थित गंगा मंदिर में विशेष आराधना संपन्न होगी। सायंकाल में मंदिर चौक स्थित शिवार्चनम मंच से मां गंगा एवं महादेव की स्तुति में संगीतमय भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा। पौराणिक आख्यानों एवं सनातन परंपरा के निर्वाह में इस वर्ष श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास भव्य आयोजन कर गंगा जी का महोत्सव मना रहा है। इस विशिष्ट आयोजन हेतु संपूर्ण धाम की विशिष्ट साज सज्जा सुंदर सजावटी प्रकाश लगा कर की जा रही है। गंगा सप्तमी के दिन मां गंगा की विशिष्ट आराधना के क्रम में ललिता घाट पर सुंदर पुष्प द्वार सजा कर गंगा जी का भव्य अभिषेक किया जाएगा। तत्पश्चात धाम परिसर में स्थित गंगा मंदिर में भव्य गंगा आराधना पूजा संपन्न की जायेगी। दिन भर विभिन्न धार्मिक क्रिया कलापों के साथ उत्सव के उल्लास को निरंतर सजीव रखते हुए सांध्यवेला में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा भव्य दिव्य सांस्कृतिक भजन संध्या शिवार्चनम आयोजित की जायेगी। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास इन समस्त आयोजनों में समस्त सनातन मतावलंबियों को ससम्मान सादर आमंत्रित करता है। किन्हीं कारणों से धाम में आयोजित कार्यक्रमों में सम्मिलित न हो सकने वाले श्रद्धालु श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल फेसबुक एवं यूट्यूब चैनल पर ऑनलाइन सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास सभी आने वाले श्रद्धालुओं के स्वागत हेतु तत्पर है।
कथा
मां गंगा को सनातन परंपरा में ब्रह्मदेव के कमंडल से उत्पन्न माना जाता है। पौराणिक कथानक के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट सगर के अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में अश्व चोरी हो गया। सम्राट सगर के पुत्रों ने अश्व को ढूंढते समय कपिल मुनि से धृष्टता कर दी। क्रोधित कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया। कालांतर में सम्राट सगर के वंशज भगीरथ ने अपने इन भस्म बांधवों की मुक्ति हेतु ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव ने मुक्ति का उपाय मां गंगा की जलधारा को बताया। परंतु मां गंगा का वेग पृथ्वी के लिए असहनीय था अतः मां गंगा का धरावतरण असंभव प्रतीत होता था। दृढ़ संकल्प के स्वामी सम्राट भगीरथ ने हार नहीं मानी। भागीरथ ने इस समस्या के समाधान हेतु महादेव शिव की अखण्ड साधना की। महादेव के प्रसन्न होने पर भगीरथ ने अनुरोध किया कि गंगा जी के वेग को महादेव अपनी जटाओं में धारण कर मंद कर दें जिससे पृथ्वी माता, गंगा जी का प्रवाह धारण कर सकें। महादेव ने भगीरथ की याचना स्वीकार कर ली। इस प्रकार गंगा मां का धरावतरण संभव हो सका। ब्रह्मकमंडल से गंगा जी के सरिता स्वरूप में प्राकट्य का उत्सव गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।
काशी की गंगा
पौराणिक कथानक में गंगा रहस्य की एक कथा के अनुसार पाण्ड्य नरेश पुण्यकीर्ति ने गंगा जी से यह वर मांगा था कि वह प्रतिदिन गंगा मां का देवी स्वरूप में साक्षात दर्शन कर सकें। तब गंगा जी ने पुण्यकीर्ति से कहा कि इसके लिए पुण्यकीर्ति को गंगा जी के गृहनगर में निवास करना होगा। पाण्ड्य नरेश की जिज्ञासा पर गंगा जी ने यह रहस्य बताया कि उनका गृहनगर काशी है। गंगा जी ने बताया कि अपने प्रवाह के क्रम में वह शिव की जटाओं से मुक्त हो हिमालय शिखरों से उतर प्रयाग होते हुए काशी की सीमा पर पहुंचीं। काशी के पुराधिपति भगवान विश्वनाथ जी ने गंगा जी को सीमा पर ही बांध दिया। इससे गंगा जी का सम्राट सगर के पूर्वजों के भस्म होने के स्थल तक जाने का मार्ग अवरूद्ध हो गया। भगीरथ को गंगावतरण से अभीष्ट पूर्वजों की मुक्ति का अपना मनोरथ असिद्ध होता जान पड़ा। मनोरथ की सफलता हेतु भागीरथ एवं उनके अनुनय पर मां गंगा ने भी भगवान विश्वनाथ से प्रवाह मुक्त करने की याचना की। तब भगवान विश्वनाथ ने मुक्त प्रवाह हेतु गंगा जी से तीन वचन लिए, प्रथम यह कि गंगा जी काशी के घाटों को अपने प्रवाह से क्षतिग्रस्त नहीं करेंगी। दूसरा यह कि गंगा जी का कोई जलीय जन्तु काशी में मनुष्यों को क्षति कारित नहीं करेगा। श्री विश्वनाथ जी ने तीसरा वचन यह लिया कि गंगा जी अपने साक्षात देवी स्वरूप में काशी में ही विराजेंगी। तब से काशी ही गंगा जी का गृहनगर है।
सजा बाबा विश्वनाथ धाम
श्री काशी विश्वनाथ धाम में अभूतपूर्व तैयारियां की जा रही हैं। माह मई में गत 5 मई को संपन्न “श्री नंदीश्वर उत्सव“ के पश्चात “गंगा सप्तमी“ पर भव्य आयोजन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा किया जा रहा दूसरा भव्य सनातन नवाचार है। ब्रह्मकमंडल से देवी गंगा की सरिता स्वरूप में उत्पत्ति के पर्व “गंगा सप्तमी“ की तैयारियों में सुसज्जित भव्य दिव्य श्री काशी विश्वनाथ धाम की एक झलक प्रस्तुत है। सभी सनातन बंधुओं से धाम में हो रहे इस आयोजन को और भी भव्य एवं दिव्य बनाने के लिए किए जा सकने वाले संभव सुझाव सादर आमंत्रित हैं। ध्यातव्य है कि “गंगा रहस्य“ में वर्णित पाण्ड्य नरेश पुण्यकीर्ति की कथा के अनुसार काशी मां गंगा का घर है। अतः श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा गंगा उत्पत्ति दिवस को इस वर्ष सतत् निरंतर किए जा रहे नवाचारों के क्रम में अनिवार्यतः सम्मिलित कर मनाया जा रहा है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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