कई नाम प्रचलित रहे:-
राजा चम्प को चंचू, धुन्धु हारीत चन्य तथा कैनकू आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। पार्जीटर ने चन्चु को धुन्धु हारीत एवं चन्य आदि नामों से समीकृत किया है। ब्रह्मांड पुराण के अनुसार - कैनकू का उल्लेख हरिता के पुत्र के रूप में किया गया है। सतयुग की समाप्ति के बाद यह त्रेता युग का प्रथम शासक था।
तीर्थ नगरी भी रही :-
अथर्ववेद में अंग महाजनपद को अपवित्र माना जाता है, जबकि कर्ण पर्व में अंग को एक ऐसे प्रदेश के रूप में जाना जाता था जहां पत्नी और बच्चों को बेचा जाता है। वहीं दूसरी ओर महाभारत में अंग (चम्पा) को एक तीर्थस्थल के रूप में पेश किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार अंग राजवंश का संस्थापक राजकुमार अंग थे। जबकि रामयाण के अनुसार यह वह स्थान है जहां कामदेव ने अपने अंग को काटा था।
अंग महाजनपद की राजधानी :-
महाकाव्यों और पुराणों में संरक्षित एक पृथक परंपरा के अनुसार, मनु के महान पोते, अनु की संतान ने पूर्व में अनावा राज्य की स्थापना की थी| इसके बाद यह राज्य राजा बलि के पांच बेटों में विभाजित किया गया जिसे अंग, बंग, कलिंग, पुंडिया और सुधा के रूप में जाना जाता है| अंग के राजाओ में जिनके बारे में कुछ सन्दर्भ है, " लोमोपाडा, अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन एवं उनके मित्र थे| उनका महान पोता चंपा था, जिसके नाम पर ही अंग की राजधानी चंपा के नाम से जानी गयी| चंपा के पूर्व अंग की राजधानी मालिनी के नाम से जनि जाती थी| अंग और मगध का पहला उल्लेख अथर्ववेद संहिता में वैदिक साहित्य में मिलता है| बौध धर्म-ग्रंथों में उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों के बीच अंग का उल्लेख किया गया है| बीते समय में भागलपुर भारत के दस बेहतरीन शहरों में से एक था। आज का भागलपुर सिल्क नगरी के रूप में भी जाना जाता है। इसका इतिहास काफी पुराना है। भागलपुर को (ईसा पूर्व 5वीं सदी) चंपावती के नाम से जाना जाता था। यह वह काल था जब गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भारतीय सम्राटों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था। अंग 16 महाजनपदों में से एक था जिसकी राजधानी चंपावती थी। अंग महाजनपद को पुराने समय में मलिनी, चम्पापुरी, चम्पा मलिनी, कला मलिनी आदि आदि के नाम से जाना जाता था। अंग प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। बौद्ध ग्रंथो में अंग और वंग को प्रथम आर्यों की संज्ञा दी गई है। महा भारत के साक्ष्यों के अनुसार आधुनिक भागलपुर,बिहार और बंगाल के क्षेत्र अंग प्रदेश के क्षेत्र थे। इस प्रदेश की राजधानी चम्पापुरी थी। यह जनपद मगध के अंतर्गत था। प्रारंभ में इस जनपद के राजाओं ने ब्रह्मदत्त के सहयोग से मगध के कुछ राजाओं को पराजित भी किया था किंतु कालांतर में इनकी शक्ति क्षीण हो गई और इन्हें मगध से पराजित होना पड़ा। महाभारत काल में यह कर्ण का राज्य था। इसका प्राचीन नाम मालिनी था। इसके प्रमुख नगर चम्पा (बंदरगाह), अश्वपुर थे।
धनी विरासत वाली नगरी:-
एक मान्यता के अनुसार अंग के राजा ब्रह्मदत्त ने मगध के राजा भट्टिया को हराया था| लेकिन उत्तरार्ध में बिम्बिसार (545 ई. पूर्व) ने अपने पिता की हार का बदला लिया और अंग को अपने कब्जे में ले लिया| कहा जाता है की मगध के अगले राजा अजातशत्रु ने अपनी राजधानी को चंपा में स्थानांतरित कर दिया| सम्राट अशोक की माँ सुभाद्रंगी, चंपा के एक गरीब ब्राह्मण लड़की थी, जो शादी में बिन्दुसार को दी गयी थी| अंग नन्द, मौर् ( 324- 185 ई. पूर्व), सुगास(185- 75ई .पूर्व) और कनवास(75- 30ई.पूर्व) तक मगध साम्राज्य का हिस्सा बना रहा| कनवास के शासन के दौरान कलिंग के राजा खारवेल ने मगध और अंग पर आक्रमण किया| अगले कुछ शताब्दियों का इतिहास चन्द्रगुप्त प्रथम 320 ईस्वी) के राज्याभिषेक तक सीमित नहीं है बल्कि यह अस्पष्ट है| अंग महान गुप्त राज्य क्षेत्र का भी हिस्सा था| लेकिन गुप्त शासन के कमजोर होने पर गौड़ राजा शशांक ने 602 ईस्वी में इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया और अपनी मृत्यु 625 ईस्वी तक प्रभाव कायम रखा| शशांक के मृत्यु के उपरांत यह क्षेत्र हर्ष के प्रभाव में आया| उसने मगध के राजा के रूप में माधव गुप्त को स्थापित किया| उनके बेटे आदित्यसेना ने मंदार हिल में एक शिलालेख छोड़ा है जो उनके द्वारा नरसिंह या नरहरि मंदिर के स्थापना का संकेत देता है| ह्वेनसांग अपनी यात्रा के दौरान चंपा नगर का दौरा किया| उन्होंने यात्रा विवरणी में चंपा का वर्णन किया है|
चंपा प्राचीन अंग की राजधानी:-
यह गंगा और चंपा के संगम पर बसी थी। प्राचीन काल में इस नगर के कई नाम थे- चंपानगर, चंपावती, चंपापुरी, चंपा और चंपामालिनी। पहले यह नगर 'मालिनी' के नाम से प्रसिद्ध था किंतु बाद में लेमपाद के प्राचीन राजा चंप के नाम पर इसका नाम चंपा अथवा चंपावती पड़ गया। यहाँ पर चंपक वृक्षों की बहुलता का भी संबंध इसके नामकरण के साथ जोड़ा जाता है। चंपा नगर का समीकरण भागलपुर के समीप आधुनिक चंपानगर और चंपापुर नाम के गाँवों से किया जाता है किंतु संभवत: प्राचीन नगर मुंगेर की पश्चिमी सीमा पर स्थित था। कहा जाता है, इस नगर को महागोविन्द ने बसाया था। उस युग के सांस्कृतिक जीवन में चंपा का महत्वपूर्ण स्थान था। बुद्ध, महावीर और गोशाल कई बार चंपा आए थे। 12वें तीर्थकर वासुपूज्य का जन्म और मोक्ष दोनों ही चंपा में हुआ था। यह जैन धर्म का उल्लेखनीय केंद्र और तीर्थ था। दशवैकालिक सूत्र की रचना यहीं हुई थी। नगर के समीप रानी गग्गरा द्वारा बनवाई गई एक पोक्खरणी थी जो यात्री और साधु संन्यासियों के विश्रामस्थल के रूप में प्रसिद्ध थी और जहाँ का वातावरण दार्शनिक बाद विवादों से मुखरित रहता था। अजातशत्रु के लिय कहा गया है कि उसने चंपा को अपनी राजधानी बनाया। दिव्यावदान के अनुसार विंदुसार ने चंपा की एक ब्राह्मण कन्या से विवाह किया था जिसकी संतान सम्राट् अशोक थे। चंपा समृद्ध नगर और व्यापार का केंद्र भी था। चंपा के व्यापारी समुद्रमार्ग से व्यापार के लिये भी प्रसिद्ध थे।
पुरातात्विक साक्ष्यों का खजाना:-
प्राचीन काल में अंग देश के नाम से विख्यात भागलपुर के चम्पानगर में असीम पुरातात्विक संभावनाएं हैं।चम्पा के पुरातात्विक अवशेष बिहार में प्राप्त अब तक के धरोहरों की तुलना में काफी उत्कृष्ट हैं।दीवार दो हजार साल पुरानी शुंग-कुषाण काल की मिली है। 6ठी शताब्दी में अंग प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में एक था। यह काफी शक्तिशाली था। अंग की राजधानी चम्पा की गिनती दुनिया के बड़े शहरों में होती थी। चम्पा में एक विशाल किले का अवशेष मिले हैं। यहां एक दीवार भी मिली है, इसका निचला स्तर 2000 साल पुराना शुंग-कुषाण काल का प्रतीत होता है। सीटीएस के बाहर किले के उत्तरी भाग में भी पुरानी दीवार मिली है। उन्होंने कहा कि यहां उन्हें एनबीपीडब्लयू के कुछ टुकड़े मिले हैं, जिनका काल छठी शताब्दी रहा होगा।
एक प्रचलित बंदरगाह भी रहा :-
बंदरगाह के स्वरूप भी मिले हैं, और अध्ययन की जरूरत, चौधरी ने बताया, उन्हें प्राचीन बंदरगाह के स्वरूप मिले हैं। इस पर अध्ययन की जरूरत है। चम्पा के पूर्व की खुदाइयों में प्राप्त मातृ देवियों की प्रतिमाओं की पूजन की परम्परा ई. पू 1500 के पहले से है।
चम्पा नदी का अस्तित्व खतरे में:-
अंग प्रदेश की ऐतिहासिक चंपा नदी का अस्तित्व खतरे में है. ये नदी अब नाले में तब्दील हो गई है. चंपा नदी को अब सरकार भूल चुकी है. जिस चंपा नदी की चर्चा महाभारत व पुराणों में हुई वह चम्पा नदी अब नाले में तब्दील हो चुकी है. बताया जाता है कि अंग प्रदेश के राजा सूर्यपुत्र कर्ण चंपा नदी में स्नान कर सूर्य को जल अर्पण करते थे. सती बिहुला विषहरी चंपा नदी के रास्ते स्वर्ग से अपने पति के प्राण लेने गयी थी. वहीं हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आये थे तो चंपा नदी व आसपास की समृद्धि से प्रभावित हुए थे।
पुनर्जीवित किया गया चम्पा नदी :-
चंपा नदी अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत रही है। इसके बिना भागलपुर शहर की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। चंपा नदी की धारा वापस लाने के लिए इसके विभिन्न जलस्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। नदी मार्ग से अतिक्रमण हटाना होगा। यह शासन प्रशासन के साथ-साथ जन सहयोग से ही संभव हो पाएगा। आज से 50-60 वर्ष पूर्व जब चंपा नदी कलकल करते बहती थी तो इसके पोषक क्षेत्र के लोग खुशहाल थे। भूगर्भ में पर्याप्त पानी था। 1970 के दौर तक चंपा नदी अपने मूल रूप में प्रवाहित होती थी। उस समय यह नदी समुद्र तल से 40 मीटर ऊंचाई पर भागलपुर में बहती थी, जो उत्तर-पूर्व दिशा में चंपानगर के पास गंगा में मिलती थी। मुहाने पर समुद्र तल से इसकी ऊंचाई महज 15 मीटर से भी कम रह गई थी। नदी के पुनर्जीवन के लिए उद्गम स्थल से ड्रोन सर्वेक्षण करना होगा, ताकि इसके वास्तविक स्वरूप का आकलन हो सके। फिर इसके चैनल से गाद हटाकर इसकी जलधारा को गति देनी होगी। नदी के आसपास के जलाशयों एवं तालाबों की सूची तैयार कर उसे समृद्ध करना होगा, ताकि चंपा नदी पर सिंचाई का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ सके।
कतरनी और जर्दालु नदियों से चंपा नदी को मिला वरदान:-
चंपा नदी अंग प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और ऐतिहासिक विरासत रही है। इसके बिना भागलपुर शहर की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। यह नदी कभी भागलपुर की जीवन रेखा हुआ करती थी। दुख होता है, जब चंपा नदी को नाला से संबोधित किया जाता है, जबकि इसी नदी के पानी का शोधन कर शहर में जलापूर्ति होती है। चंपा नदी में पश्चिम और दक्षिण से गंगा, चीर, चानन और बडुआ नदियों के पानी का समावेश होता था। कतरनी चावल और जर्दालु आम की खुशबू इसी के निक्षेपण से मिला वरदान है। इस नदी में पहले जहाज चला करते थे। कोलकाता जाने का जल मार्ग चंपा से होकर ही गुजरता था। हर्षवर्द्धन के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आए थे। वे चंपा नदी के आसपास की समृद्धि से खासा प्रभावित हुए थे। ईंट से निर्मित 24 फीट ऊंची चंपा की दीवार और चार सुरक्षा मीनार का उन्होंने अपनी किताब में जिक्र किया है। नदी के किनारे सभी धर्मों के मंदिर, मजार और चर्च आज भी अवस्थित हैं। चंपा की धारा से होकर ही सती बिहुला अपने मृत पति बाला के जीवन को वापस लाने के लिए स्वर्गलोक पहुंची थीं। दानवीर कर्ण चंपा नदी में प्रत्येक दिन स्नान के बाद सूर्य को अघ्र्य देते थे।
आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें