अक्षय तृतीया : धन, गज केसरी, शुक्रादित्य, रवि, शश व सुकर्मा योग का संयोग, दूर होगी कंगाली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 11 मई 2024

अक्षय तृतीया : धन, गज केसरी, शुक्रादित्य, रवि, शश व सुकर्मा योग का संयोग, दूर होगी कंगाली

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया बेहद खास पर्व है. इसे अक्खा तीज भी कहा जाता है. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की उपासना करने से जीवन में तरक्की होती है. इस दिन सोना-चांदी खरीदना काफी शुभ माना जाता है. कहते है इस दिन किए गए शुभ एवं धार्मिक कार्यों के अक्षय फल मिलते हैं. इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि वृषभ में होते हैं, इसलिए दोनों की सम्मिलित कृपा का फल अक्षय हो जाता है. अक्षय यानी जिसका क्षय ना हो. या यं कहे इस तिथि को किए हुए कार्यों के परिणाम का क्षय नहीं होता है. पौराण्कि मान्यतानुसार इस दिन परशुराम, नर-नारायण, हयग्रीव का अवतार हुआ था. इसी दिन से बद्रीनाथ के कपाट भी खुलते हैं। इसी दिन वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस बार अक्षय तृतीया 10 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी. तृतीया तिथि की शुरुआत इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी और समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 नट पर होगा. अक्षय तृतीया का पूजन मुहूर्त 10 मई को सुबह 5 बजकर 33 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. इस मुहूर्त में आप सोना या चांदी की खरीदारी कर सकते हैं. ज्योतिषियो की मानें तो, अक्षय तृतीया के दिन इस बार दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है, जिससे इस पवित्र दिन का महत्व और बढ़ जाएगा. इस बार अक्षय तृतीया पर धन योग, गज केसरी योग, शुक्रादित्य योग, रवि योग, शश योग और सुकर्मा योग का निर्माण होगा, जो कि बेहद शुभ संयोग माना जा रहा है. दरअसल, अक्षय तृतीया के दिन शनि शश राजयोग का निर्माण करेंगे. मंगल और बुध की युति से मीन में धन योग का निर्माण होने जा रहा है. इसके अलावा बृहस्पति और चंद्रमा की वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे जिससे गजकेसरी योग का निर्माण होगा.

Akshay-tirtiya
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ भी हुआ था, इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना गया है, यानी इस तिथि पर किसी भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्य को करने के लिए मुहूर्त का विचार नहीं करना पड़ता है। इस पर्व पर किया जाने वाले दान-पुण्य, पूजा-पाठ, जाप-तप और शुभ कर्म करने पर मिलने वाला फलों में कमी नहीं होती है। इस दिन सोने के गहने खरीदने और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। अक्षय तृतीया तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं। इस पर्व पर स्नान, दान, जप, यज्ञ, स्वाध्याय और तर्पण आदि जो भी कर्म किए जाते हैं वे सब अक्षय हो जाते हैं। यह तिथि सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली और सभी सुखों को प्रदान करने वाली मानी गई है। शुभ कार्यों को संपन्न करने के लिए अक्षय तृतीया की तिथि बहुत ही खास मानी गई है। इस दिन नई योजना को शुरू करने, नए व्यवसाय, नौकरी, नए घर में प्रवेश करने और शुभ खरीदारी के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। शास्त्रों में अक्षय तृतीया तिथि को स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त माना गया है। यानी इस तिथि पर बिना मुहूर्त का विचार किए सभी प्रकार के शुभ कार्य संपन्न किया जा सकता है। इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सोने-चांदी के आभूषण. घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अबूझ मुहूर्त की तिथि पर व्यापार आरम्भ, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, दान-पुण्य,पूजा-पाठ अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब अक्षय तृतीया का पर्व आता है तब सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में रहते हैं, साथ ही इस तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद होते हैं। माना जाता है इस दौरान सूर्य और चंद्रमा दोनों ही सबसे ज्यादा चमकीले यानी सबसे ज्यादा प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। इस तरह से अक्षय तृतीया पर ज्यादा से ज्यादा प्रकाश पृथ्वी की सतह पर मौजूद रहता है। इस कारण से इस अवधि को सबसे शुभ समय माना जाता है। 


Akshay-tirtiya
अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था। इसलिए इनकी जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है। यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है। यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को ‘दान’ इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अतः यह तिथि “चिरंजीवी तिथि” भी कहलाती है। मान्यता है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है। जिनके विवाह के लिए गृह-नक्षत्र मेल नहीं खाते। लेकिन इस दिन गृह नक्षत्रों का दोष नहीं होता। इस तिथि पर गृह नक्षत्रों के मिलान का अर्थ नहीं होता। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही राजा भागीरथी ने अपने तपोबल के प्रभाव से मां गंगा को पृथ्वी पर लाए थे. अक्षय तृतीया के दिन गंगा में स्नान और दान करने का काफी महत्व होता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि गंगा में स्नान करने से पिछले सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों उच्च राशि में स्थित होते हैं. साल में सिर्फ एक दिन ये संयोग बनता है। सूर्य, मेष में होता है और चंद्रमा वृषभ में होता है। शास्त्रों में सूर्य को हमारा प्राण और चंद्रमा को हमारा मन माना गया है। सूर्य और चंद्रमा का संबंध बनने की वजह से ये तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए इस दिन जो भी काम किया जाए उसका फल दोगुना और कभी न खत्म होने वाला होगा। इसलिए इस दिन सोना खरीदना या नई चीजों में निवेशकरना शुभ माना जाता है.


Akshay-tirtiya
इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाएं, अक्षय रुप में प्राप्त होता है। मांगलिक कार्यों के लिए अक्षय तृतीया का मुहूर्त अबूझ माना जाता है। इस दिन शादियों के लिए जन्म पत्री या फिर लग्न आदि देखने की जरूरत नहीं पड़ती। इस अक्षय तिथि में सभी प्रकार की चल अचल संपत्ति जैसे भूमि, भवन, वाहन, आभूषण आदि की खरीदारी करना भी काफी शुभ माना गया है। इस दिन अन्न दान करने से अकाल मृत्यु टल जाती है। देवताओं व पूर्वजों की आराधना से दरिद्रता का नाश होता है। हालांकि, कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जिन्हें इस दिन घर से बाहर निकाल फेंकना चाहिए. नहीं तो मां रुष्ट हो जाती हैं. अक्षय तृतीया के दिन टूटी झाड़ू, फटे-पुराने जूते चप्पल, देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों को बाहर कर देना चाहिए. धार्मिक दृष्टि से सभी मासों में श्रेष्ठ वैशाख मास को पुराणों में जप, तप, दान का महीना कहा गया है इसलिए इस माह विशेष में विशेष तौर से वरुण देवता की पूजा का विशेष महत्त्व होता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया सभी पापों का नाश करने वाली एवं सभी सुखों को प्रदान करने वाली अक्षय तिथि है। इस दिन शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आप अपनी राशि के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान-पुण्य करेंगे तो आपके पुण्यों में वृद्धि होकर आपको सुख-सौभाग्य प्राप्त होगा। अक्षय तृतीया के दिन किये गए शुभ कामों का फल कभी भी समाप्त नहीं होता। इस दिन शुभ कार्यों या दान-पुण्य के अलावा इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने का भी महत्व है। इस दिन पितरों के लिए घट दान, यानी जल से भरे हुए मिट्टी के बर्तन का दान जरूर करना चाहिए। गर्मी के इस मौसम में जल से भरे घट दान से पितरों को शीतलता मिलती है और आपके ऊपर उनका आशीर्वाद बना रहता है।


सोना खरीदना हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल

कहते हैं ग्रीष्म ऋतु का आगमन, खेतों में फसलों का पकना और उस खुशी को मनाते खेतीहर व ग्रामीण लोग विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ इस तिथि का पदार्पण होता है। धर्म की रक्षा हेतु भगवान श्री विष्णु के तीन शुभ रुपों का अवतरण भी इसी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ हैं। माना जाता है कि जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते हैं। व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है या किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिल पा रहा है तो उनके लिए कोई भी नई शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया में सोना खरीदना हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्रदान करता है। अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी कुबेर की पूजा करते हैं। इस पूजा में देवी लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा सुदर्शन चक्र और कुबेर यंत्र के साथ में रखते है। चारों युगों सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि “युर्गाद तिथि” भी कहते हैं। मान्यता है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है, जिनके विवाह के लिए गृह-नक्षत्र मेल नहीं खाते। लेकिन इस दिन गृह नक्षत्रों का दोष नहीं होता। इस तिथि पर गृह नक्षत्रों के मिलान का अर्थ नहीं होता। अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है। मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है तब उस धन से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है। पुनर्जन्म लेकर जब धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है।


अवगुणों को प्रभु चरणों में समर्पित करें 

‘अक्षय तृतीया’ का पर्व भगवान परशुराम के जन्म से भी जुड़ा हुआ है। भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम इस पृथ्वी लोक में ब्राम्हणों के आदिदेव माने जाते है। भगवान परशुराम थे तो ब्राम्हण, किंतु उनका पराक्रम क्षत्रियों जैसा था। परशुराम रामायण काल के मुनि थे। उनके पिता जमदग्नि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ संपन्न कर उन्हें वरदान के रूप में पाया था। जनदग्नि जी की पत्नि रेणुका के गर्भ से परशुराम जी ने ‘अक्षय तृतीया’ के दिन जन्म लिया। उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार अर्थात गुस्सैल स्वभाव वाला अवतार माना जाता है। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के महान गुरू थे। उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को शस्त्र विद्या सिखायी थी। हिंदू धर्म गं्रथों में ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम के शेष कार्यों में अभी उनका एक अवतार होना बाकि है, जो कलयुग की समाप्ति पर कल्कि अवतार के रूप में भगवान विष्णु के दसवें अवतार को शस्त्र विद्या प्रदान करेंगे। भगवान परशुराम महान मातृ-पितृ भक्त थे। श्रीमद्भागवत में उल्लेख मिलता है कि एक बार गंधर्व राज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख उनकी माता रेणुका उन पर आसक्त हो गई और हवन काल का समय बीत जाने पर जनदग्नि अपनी पत्नि अथवा रेणुका के मर्यादा विरोधी आचरण के कारण अपने पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दे डाली। परशुराम जी के अन्य भाईयों ने ऐसा करने का साहस नहीं दिखाया और पिता के आज्ञा की अवहेलना की। परशुराम जी ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुये अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया और पिता के चरणों में लाकर रख दिया। इस पर जनदग्नि जी ने परशुराम जी से इच्छित वरदान मांगने कहा। यहां पर परशुराम जी का मातृ और पितृ प्रेम सबके सामने आया, उन्होंने पिता की आज्ञा न माने जाने पर मां और भाईयों के वध के बाद अपने पिता से मांगे वर में सभी का जीवन तो मांगा ही साथ ही यह भी वर मांग लिया कि मां सहित सभी भाई वध की बातों को भी हमेशा के लिये भुल जाये।


आत्म-विश्लेषण का दिन है अक्षय तृतीया

यह दिन हमें स्वयं को टटोलने के लिए आत्मान्वेषण, आत्मविवेचन और अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है। यह दिन “निज मनु मुकुर सुधारि” का दिन है। क्षय के कार्यो के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है। इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर, संसार और संसार की समस्त वस्तुएं क्षय धर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं है। असद्भावना, असद्विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में आसुरी वृत्ति कहा है जबकि अक्षय धर्मा सकारात्मक चिंतन-मनन हमें दैवी संपदा की ओर ले जाता है। इससे हमें त्याग, परोपकार, मैत्री, करूणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं अर्थात् व्यक्ति को दिव्य गुणों की प्राप्त होती है। इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है। “सत्यमेव जयते” की ओर अग्रसर करती है।


एक आंख वाली नारियल पूजा से प्रसंन होगी माता लक्ष्मी

प्रकृति में आमतौर पर तीन आंखों वाले नारियल मिलते हैं। लेकिन हजारों में कभी-कभी ऐसा नारियल भी मिल जाता है जिसकी एक आंख होती है। ऐसे नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। अक्षय तृतीय के दिन इसे घर में पूजा स्थान में स्थापति करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन पारद की देवी लक्ष्मी घर लाएं और नियमित इनकी पूजा करें। शास्त्रों में बताया गया है कि पारद की देवी लक्ष्मी की प्रतमि जहां होती है वहां कभी अभाव नहीं रहता है। पारद या स्फटिक का बना कछुआ अपने घर लाएं। इस दिन घर में श्री यंत्र की स्थापना भी धन की परेशानी दूर करने के लिए कारगर माना गया है। लक्ष्मी के हाथ में स्थित दक्षिणवर्ती शंख भी धन दायक माना गया है। आप इसे अक्षय तृतीया पर घर ला सकते हैं। श्वेतार्क गणपति की स्थापना भी शुभ फलदायी होती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत लोग उसके सफल होने की उम्मीद के साथ ही करते हैं। ऐसे में एक ऐसा शुभ दिन आ रहा है, जब आप अपने हर शुभ कार्य की शुरुआत कर सकते हैं।


तृप्त होती है आत्माएं 

अक्षय तृतीया पर तिल सहित कुशों के जल से पितरों को जलदान करने से उनकी अनंत काल तक तृप्ति होती है। इस तिथि से ही गौरी व्रत की शुरुआत होती है। जिसे करने से अखंड सौभाग्य और समृद्धि मिलती है। अक्षय तृतीया पर गंगास्नान का भी बड़ा महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करने या घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।




Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

कोई टिप्पणी नहीं: