सीहोर : नौ दिवसीय श्रीराम कथा में उमड़ा आस्था का सैलाब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 17 मई 2024

सीहोर : नौ दिवसीय श्रीराम कथा में उमड़ा आस्था का सैलाब

  • श्रीराम कथा मनुष्य को मर्यादाशील जीवन जीना सिखाती है : महंत उद्वावदास महाराज

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सीहोर। श्रीराम कथा हमें मर्यादा में रहना सिखाती है। मानव जीवन में कई भटकाव है, अगर जीवन में कथा का आनंद आ जाए तो मनुष्य का जीवन धन्य हो जाए साथ ही यह मानव का सही मार्गदर्शन भी करती है। जो मनुष्य सच्चे मन से श्रीराम कथा का श्रवण कर लेता है, उसका लोक ही नहीं परलोक भी सुधर जाता है। मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है और बहुत सत्कर्मों के बाद ही मनुष्य का जीवन मिलता है। उक्त विचार शहर के शुगर फैक्ट्री स्थित भगवान चित्रगुप्त मंदिर परिसर में चित्रांश समाज के तत्वाधान में जारी नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के दौरान महंत 108 उद्वाव दास महाराज ने कहे। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान सभी को आदर दिया है।  जब वानर सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के प्रकोप से डरकर अपने मित्र हनुमान की शरण में आते हैं और उनसे छिपने के लिए सहायता मांगते हैं। इसी दौरान सुग्रीव को वन की ओर से दो पुरुषों को आते हुए देखते हैं, उन्होंने सादे वस्त्र पहने थे किंतु शस्त्र धारण किए हुए थे। सुग्रीव के मन में भय प्रकट हुआ। उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भाई बालि के भेजे हुए गुप्त सैनिक हो सकते हैं जो उनकी हत्या के लिए भेजे गए हैं। सुग्रीव ने इस बात की जानकारी हनुमान जी को दी और कहा कि मित्र, आप स्वयं वन में जाकर पूछताछ करें कि ये दोनों पुरुष कौन हैं, कहां से आए हैं और इनका वन में आने का उद्देश्य क्या है। मित्र की परेशानी को समझते हुए हनुमान ब्राह्मण का रूप धारण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सामने पहुंच गए और उनसे पूछताछ करने लगे। हनुमान जी ने पूछा कि आप दोनों कौन हैं, कहां से आए हैं और आपको क्या चाहिए, पूछने पर श्रीराम बोले ने उन्हें आने और सीता माता के अपहरण की पूरी घटना बताई। जैसे ही हनुमान जी को अहसास हुआ कि ये तो प्रभु राम हैं, वह फूले नहीं समाते है और इस बात की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक उठती है। सच्चाई जानने की देर ही थी कि हनुमान जी अपने असली रूप में वापस लौट आए और श्रीराम के चरण पकड़कर धरती पर गिर पड़े। यह पल ऐसा था मानो हनुमान जी को पूर्ण संसार मिल गया हो। उनके मुख से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, बस अपने प्रभु को पा लेने की जो खुशी उनके मुख पर दिखाई दे रही थी, उसका कोई मोल नहीं था। महंत श्री उद्वाव दास महाराज ने कहा कि हनुमान ने श्रीराम से क्षमा मांगी, कहा यह मेरी भूल है जो मैं आपको पहचान ना सका। ना जाने यह कैसे हो गया कि मेरे प्रभु मेरे समक्ष खड़े थे और मैं ज्ञात ही ना कर सका। तब श्रीराम ने हनुमान को अपने चरणों से उठाया, गले से लगाया और कहा, हनुमान तुम दुखी ना हो, शायद तुम्हें यह आशा ही नहीं थी कि मैं तुम्हे यहां वन में इस वेष में मिलूंगा। तुम दिल छोटा मत करो।


चरण पादुका सिंहासन पर रखकर अयोध्या राज चलाते

उन्होंने कहा कि भरत अपनी सेना व अयोध्यावासियों के साथ राम से मिलने चल देते हैं। पहली रात को तमसा नदी पर विश्राम करते हैं। श्रृंगवेर पर्वत पर पहुंचते हैं। वहां एक लकड़हारा भरत के आने की सूचना निषादराज को देता है। उधर, जब सुमंत की नजर निषाद राज पर पड़ती है तो कहते हैं कि भइया भरत देखो प्रभु राम के सखा निषादराज खड़े हैं। इस पर भरत रथ से कूद कर निषादराज को गले से लगा लेते हैं। निषादराज से प्रभु के ठहरे स्थान की जानकारी लेकर उनका स्मरण करते हैं। बड़े भाई राम से मिलकर उनसे अयोध्या वापस चलने की विनती करते हैं। राम के मना करने पर उनकी चरण पादुका लेकर वापस लौटे। चरण पादुका सिंहासन पर रखकर अयोध्या राज चलाते हैं।


जीवन में रंगत, संगत और मेहनत का असर पड़ता

 महंत उद्वाव दास महाराज ने कहा कि मनुष्य पर संगत का असर पड़ता है। कैकेयी अपने बेटे भरत से ज्यादा अपने सौतेले बेटे राम को प्यार करती थीं। लेकिन अपने मायके से आई दासी मंथरा के कान भरने की वजह से उन्होंने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। पहले वे ऐसी नहीं थीं। इसे संगत का असर ही कहेंगे, जिसने कैकयी के अंदर नकारात्मकता को हावी कर दिया। इसलिए कहा गया है कि जीवन में रंगत, संगत और मेहनत का असर पड़ता है। 

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