विशेष : तीन मूर्ति भवन का इतिहास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 27 मई 2024

विशेष : तीन मूर्ति भवन का इतिहास

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कुछेक वर्ष पूर्व दिल्ली के तीन मूर्ति भवन परिसर में स्थित नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी का नाम बदल दिया गया था। इसका नाम 'प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी' कर दिया गया था। केंद्र सरकार के इस फैसले की कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने तब आलोचना भी की थी । नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय (एनएमएमएल) के भवन को 1929-30 में सर एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था। यह अंतिम ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ का आधिकारिक घर था और इसे तीन-मूर्ति हाउस के नाम से जाना जाता था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद यह भवन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का आवास बन गया था।


जवाहरलाल नेहरू यहां 16 वर्षों तक रहे और उनकी मृत्यु के बाद सरकार ने उनके सम्मान में तीन मूर्ति हाउस को एक संग्रहालय और पुस्तकालय में बदलने का फैसला लिया। इसका उद्घाटन 14 नवंबर 1964 को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था। इसके प्रबंधन के लिए 1966 में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और लाइब्रेरी सोसाइटी का गठन किया गया था। यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्थान है, जहां देश के पत्रकार, लेखक,शोधार्थी आदि ऐतिहासिक-सामाजिक विषयों से जुड़ी सामग्री का अध्ययन करने के लिए आते हैं। समसामयिक विषयों पर समय-समय पर उच्च स्तरीय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार भी होते हैं। बहुत पहले दो-एक संगोष्ठियों में भाग लेने का अवसर मुझे भी मिला है।


एनएमएमएल की कार्यकारी परिषद ने 2016 में ‘नेहरू स्मारक संग्रहालय’ के स्थान पर सभी प्रधानमंत्रियों को समर्पित एक वृहत संग्रहालय स्थापित करने की मंजूरी दी थी। 16 जून 2023 को इसका नाम बदलने का फैसला लिया गया था। दरअसल, नाम बदलने के पीछे सरकार की मंशा संभवतः यह थी कि जब दूसरे प्रधानमंत्रियों ने भी देश की सेवा की है और देश-निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है तो मात्र एक ही प्रधानमंत्री के नाम पर संग्रहालय क्यों हो?अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के लिए अलग-अलग स्मारक बनाने की परम्परा डालने से अच्छा है कि देश के सभी प्रधानमंत्रियों को एक ही म्यूजियम में सम्मानजनक स्थान दिया जाय ताकि दर्शकों,शोधकर्त्ताओं और अध्येताओं को हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों से जुडी सारी सूचनाएं और सामग्री एक ही जगह पर मिल जाय।अगर प्रत्येक प्रधानमंत्री के लिए अलग से एक-एक स्मारक अथवा संग्रहालय बनाया गया तो जगह की कमी तो रहेगी ही,राजकोष पर व्यय भी बढ़ेगा।





डा० शिबन कृष्ण रैणा

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