विचार : अनुचित साधनों से कमाया धन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 27 मई 2024

विचार : अनुचित साधनों से कमाया धन

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आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा (२० सितम्बर १९११-जून १९९०) भारत के एक युगद्रष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की।उनहोंने अपना समस्त जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।


बहुत पहले की बात है।हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल साहब, जो अब इस संसार में नहीं रहे, पंडितजी के परम अनुयायी थे। अपने ड्राइंग रूम में उन्होंने आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा की कई सारी सूक्तियां दीवारों पर चिपका रखी थीं।एक सूक्ति मैं अभी तक भूला नहीं हूँ।जब भी मैं उनसे मिलने जाता तो सब से पहले इस शिक्षाप्रद सूक्ति पर मेरी नज़र चली जाती:-  “ऐसे किसी व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने अनुचित साधनों से धन कमाया हो।“  आचार्यजी की उक्त उक्ति से प्रेरणा लेकर आज की तारीख में एक अन्य सूक्ति अनायास ही इस तरह से बन सकती है: ”ऐसे किसी नेता/व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने निष्ठाओं को ताक में रखकर एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर ली हो।” इस सूक्ति में निश्चित ही पर्याप्त ज्ञान छिपा हुआ है क्योंकि जो व्यक्ति या नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चला जाता है, क्या मालूम कल को अपनी सुविधा और मौका देखकर वह यह पार्टी भी छोड़ दे और तीसरी पार्टी का दामन थाम ले!





—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—

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