साहित्यिकी : अब्दुर्रहीम खानखानां और उनकी दानवीरता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 16 मई 2024

साहित्यिकी : अब्दुर्रहीम खानखानां और उनकी दानवीरता

kavi-rahim
अब्दुर्रहीम खानखानां, अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। वे केवल एक युद्धवीर ही नहीं बल्कि एक महान दानवीर भी थे। उनकी दानशीलता के किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं। चूंकि वे स्वयं हिंदी के प्रख्यात कवि थे, इसलिए वे हिंदी के कवियों से घिरे रहते थे और समय-समय पर उन्हें पुरस्कृत भी करते थे। इतिहासकार अब्दुल बाकी ने लिखा है कि रहीम ने जितना हिंदी के कवियों को पुरस्कृत किया, उसका दसवां हिस्सा भी फारसी के कवियों को नहीं दिया। इसके अलावा, उन्होंने फारसी में जितना काव्य लिखा, उससे कहीं अधिक हिंदी में लिखा। उनकी दानशीलता का वर्णन करते हुए एक इतिहासकार ने लिखा है - विद्वानों, फकीरों और शेखों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों रुपये, अशरफियां और धन-संपत्ति खानखानां देता था। कवियों और गुणियों का तो मानो वह मां-बाप था। उनके पास जो भी आता था, उसे लगता मानो अपने घर आया हो और उसे इतना धन मिलता था कि उसे बादशाह के दरबार में जाने की आवश्यकता नहीं होती थी। एक दिन की बात है, एक गरीब ब्राह्मण खानखानां के महल के द्वार पर पहुंचा। दरबान ने उसे अंदर जाने से रोका।


दरबान: अरे ब्राह्मण बाबा, तुम अंदर कहां घुस रहे हो? क्या तुम यह नहीं जानते कि यह खानखानां का महल है?

ब्राह्मण: जी हां दरबान साहब, मुझे अच्छी तरह से पता है। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। सहायता के लिए आया हूं। जाकर मालिक से कहो कि तुम्हारा साढू मिलने आया है। 

दरबान: अरे बाबा, तुम होश में तो हो? मालूम है तुम क्या कह रहे हो?

ब्राह्मण: हां-हां, मुझे पूरी तरह से मालूम है। तुम बस जाकर मेरा संदेश सरस्वती के पुत्र, कवियों के अधीश्वर, गुणियों के पारखी खानखानां से कह दो।

दरबान: अजीब पागल ब्राह्मण है। खुद पिटेगा, मुझे भी पिटवाएगा। (ओह, खानखानां इधर ही आ रहे हैं।)

खानखानां: (पास आकर) क्या बात है अशरफ खां? यह खुदा-दोस्त दिखने वाला व्यक्ति कौन है? 

दरबान: हुजूर, मैंने इसे बहुत समझाया है। यह कहता है कि वह गरीब ब्राह्मण है और मदद चाहता है। हुजूर, ऊपर से कहता है कि वह खानखानां का साढू है। 

खानखानां: ह-ह-ह। बहुत खूब! (लंबी सांस लेते हुए) अशरफ खां, इस गरीब व्यक्ति ने सही कहा है। खुशहाली और बदहाली दो बहनें हैं। पहली मेरे घर है तो दूसरी इसके घर में। इसी नाते यह हमारे  साढू हुए । इसे एक खास घोड़ा और दो लाख अशरफियां देकर विदा करो। ऐसे ही सहज और उदार थे खानखानां। उनकी उदारता का आलम यह था कि वे एक-एक शेर, एक-एक कविता पर लाखों रुपये लुटा देते थे। कहा जाता है कि अपनी प्रशंसा में लिखे एक छंद पर खानखानां ने गंग कवि को 36 लाख रुपये दिए थे।


एक बार रहीम की दानशीलता की प्रशंसा करते हुए गंग कवि ने यह दोहा लिखकर भेजा:

"सीखे कहां से नवाबजू ऐसी देनी दैन?

ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करो, त्यों-त्यों नीचे नैन।"


रहीम ने बहुत ही विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया:

"देनदार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।

लोग भरम हम पर धरै, याते नीचे नैन।"


 


डा० शिबन कृष्ण रैणा 

संपर्क : 8209074186

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