आलेख : गोरखपुर : न ’’पीडीए’’ न ’’प्रत्याशी’’ योगी ही है ’’खेवनहार’’! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 29 मई 2024

आलेख : गोरखपुर : न ’’पीडीए’’ न ’’प्रत्याशी’’ योगी ही है ’’खेवनहार’’!

राप्ती किनारे बसा गोरखपुर नाम आते ही सबसे पहले जेहन में आस्था से सरोबार बाबा गोरखनाथ की तस्वीर उभरती है, लेकिन वास्तविकता ये भी है कि इस भव्य मंदिर का साया राजनीति पर भी गहरा है और यही वजह है कि काशी के बाद सबसे हॉट सीट कहा जाने वाले इस लोकसभा सीट की किस्मत यहीं से तय होती है। मठ का जलवा ऐसा है कि मौजूदा महंथ और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित दो पूर्व महंथ भी यहां से न सिर्फ सांसद रह चुके हैं, बल्कि प्र्रत्याशी कोई भी हो पूरी सियासत ही इसी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। ये वही लोकसभा सीट है जिसपर भाजपा का पिछले 30 सालों से दबदबा है. इस सीट से ही 26 साल की उम्र में योगी आदित्यनाथ सांसद बने और 19 साल तक देश की सबसे बड़ी पंचायत में अपनी आवाज बुलंद करते रहे। अब 6 साल से यपी की कमान उन्हीं के हाथ में है। यह अलग बात है कि सीएम होने से अब उनकी विरासत भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार रवि किशन संभाल रहे है। 2019 की बंपर जीत के बाद इस बार भी भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा है। कांग्रेस-सपा गठबंधन के बाद अखिलेश यादव का दावा है 90 फीसदी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक एकजुट होकर पीडीए को वोट देंगे और गोरखपुर में इस बार सायकिल दौड़ेगी। दावा के बदले दावा में सायकिल दौड़ेगी या कमल खिलेगा, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन रामनरेश खरवार की मानें तो ’इस बार भी यहां न प्रत्याशी न पीडीए, योगी ही है जीताऊ फैक्टर’! फिरहाल, लंबे समय तक योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रही गोरखपुर सीट पर बीजेपी वापसी कर पाएगी, ये बड़ा सवाल है? क्योंकि योगी के मुख्यमंत्री रहते ही ये सीट 2018 के उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत ली थी


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लोकसभा चुनाव अब अंतिम पड़ाव पर है। मतदान एक जून को होना है. ऐसे में मैदान मारने के लिए गोरखपुर की दोनों सीटों पर बीजेपी और इंडि गठबंधन ने पूरी ताकत झोंक रखी है. भाजपा से रवि किशन, सपा से काजल निषाद और बसपा से जावेद सिमनानी जीत के लिए इस 47 डिग्री के टम्प्रेचर में पसीना बहा रहे है। दूसरी तरफ इंडि गठबंधन की तरफ से अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी तक ने रैलियां की है। जबकि इन दोनों प्रतिष्ठित सीट को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी ने अकेले सीएम योगी को ही जिम्मेदारी दे रखी है. हालांकि पीएम ने देवरिया में योगी के साथ एक संयुक्त रैली 26 मई व 29 अप्रैल को अमित शाह के साथ योगी रोडशों किया था. लेकिन हकीकत यह है कि असली जोर तो योगी ही लगा रहे हैं. वह ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे हैं. रैलियों में 370 खत्म करने की सफलता के बीच अबकी बार एनडीए 400 पार का टारगेट रखा है. ऐसे में युद्ध जीतने के लिए राजा ने प्यादों को आगे बढ़ा दिया है। उनके पीछे हाथी सीधा चल रहा है, तो घोड़ा भी हिनहिना रहा है। अपनी तिरछी चाल से ऊंट भी मात देने को तैयार है। कौन शह देगा और किसकी शिकस्त होगी, यह फैसला प्रभु (मतदाता) के ऊपर है। जो वक्त की नजाकत को समझते हुए फिलहाल मौन साधे हैं। लेकिन कौशलेन्द्र तिवारी का कहना है कि गोरखपुर के चुनावी मैदान में न ’’पीडीए’’ न ’’प्रत्याशी’’ योगी ही है ’’खेवनहार’’!


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देखा जाएं तो गोरखपुर बीजेपी का मजबूत किला माना जाता है, लिहाजा उनके ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी है. तो दुसरी तरफ सपा मुखिया अखिलेश यादव इस सीट की अपने रणबांकुरे के जरिए खुद निगहबानी कर रहे है। मतलब साफ है ये सीट भाजपा और कांग्रेस-सपा के साथ-साथ बसपा के लिए भी अहम है। भाजपा के लिए इसलिए अहम है कि 2018 के उपचुनाव को छोड़ दें तो 1989 से 2024 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा ही नहीं रहा है, हिंदुत्व के एजेंडा को यहां प्रखर बनाने में वह कामयाब भी रही। विपक्ष के लिए सीट इसलिए अहम है कि करीब तीन दशक बाद 2018 के उपचुनाव में इस सीट को भाजपा से छीनने में उसे कामयाबी मिली। इस बार सपा कांग्रेस मिल कर इस सीट पर लड़ रही हैं। वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारी के साथ कार्यकर्ताओं का जोश भी पूरी तरह से दिखाई दे रहा है. लेकिन यह जोश जीत में बदल पायेगा ये तो परिणाम बतायेंगे, लेकिन भाजपा को संजय निषाद की पार्टी ’निषाद पार्टी’ पर पूरा भरोसा है कि इस जाति का वोट उसके ही झोली में आयेगा। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर बीजेपी के योगी आदित्यनाथ ने सपा की राजमति निषाद को 3,12,783 वोट से मात दी थी। वैसे भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर जहां से शुरू हुआ है, वह गोरखपुर ही है. गोरखपुर में सबसे ज्यादा निषाद समुदाय के 3.50 लाख वोटर हैं, फिर करीब डेढ़ लाख मुसलमान, दो लाख यादव, दो लाख दलित, करीब तीन लाख ब्राहम्ण, 80 हजार राजपूत और छोटी बड़ी कई जातियां हैं. वैसे भी पूर्वांचल की राजनीति, हमारे देश की राजनीति का ही प्रतिनिधित्व करती है. यहां की राजनीति में अगर किसी को सर्वाइव करना है तो उसका ब्राह्मण-ठाकुर-यादव-मुसमान-दलित या पिछड़ा होना बहुत जरूरी होता है. पर मोदी-शाह के युग में पार्टी अपने फैसलों से यहां भी हमेशा अचंभित करती रही है. गोरखपुर और आस-पास के जिलों में मेन स्ट्रीम की राजनीति ब्राह्मण और ठाकुरों के हाथ में ही रही है. हालांकि मंडल के दौर के बाद इनके एकतरफा वर्चस्व में कमी आई पर नियंत्रण अभी बरकरार है.


गोरखपुर और आसपास के जिलों में पहले यादवों ने फिर निषादों ने सत्ता में अपनी हकदारी के लिए मजबूती से कदम रखा पर इन दो जातियों का दबदबा बना रहा. कांग्रेस ने जब तक शासन किया इन दोनों जातियों में बैलेंस बनाकर रखा. संगठन और सरकार में से एक-एक पद दोनों जातियों के हिस्से आता रहा। लेकिन भगवा व राम लहर में अब जाति नहीं विकास की बात हो रही है। 1998 से लेकर 2014 तक लगातार 5 बार योगी जीते। लेकिन बाबा गोरखनाथ और बाबा रोशन अली शाह के शहर में उपचुनाव के बाद जब से गठबंधन ने जोर पकड़ा, योगी के लिए चुनौती बढ़ गई है और गोरखपुर का समीकरण भी बदल गया। योगी के सीएम बनने के बाद विकास संबंधी कार्यो में तेजी आई है। हाल के समय मे यहां एम्स, फर्टिलाइजर कारखाना निर्माण का कार्य जोरों पर है। स्थानीय मुद़दों में इंसेफ़लाइटिस बीमारी का कहर अब सपना हो गया है। बाढ़ भी लोगों को नहीं सताती। लेकिन ड्रेनेज सिस्टम यहां की बड़ी समस्या है. शहर की कई सड़कों को फोरलेन किया गया है, लेकिन अधिकतर मुख्य मार्गों पर बनी नालियां सड़क से ऊंची बना दी गई हैं. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का नहीं होना एक बड़ी समस्या है. शहर के कचरे को डंप करना नगर निगम के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है. लोगों को जाम के साथ अतिक्रमण की समस्या से रोज दोचार होना पड़ता है. आईटीएमएस और रूट प्लान के बावजूद अधिकतर सड़कों पर लंबा जाम लगा होना, लोगों को मुसीबत में डाल देता है. कान्हा उपवन और अन्य गोशाला होने के बावजूद सड़क पर घूमने वाले आवारा और पालतू जानवर दुर्घटना का कारण बनते हैं. नगर निगम इसमें भी पूरी तरह से फेल साबित हो रहा है.


हरखापुर में रिक्शा चालक धर्मेंद्र यादव पसीना पोछते हुए कहते है प्रत्याशी कोई भी हो हम तो मोदी के साथ है। पाकिस्तानी आतंकवाद को सिर्फ और सिर्फ मोदी ही निपटा सकते है। जबकि रामगढ़ ताल के किनारे बसी गोरखपुर के जनार्दन निषाद कहते हैं, “अश्वमेध का घोड़ा है, योगीजी ने छोड़ा है,“ जीत तो मोदी की ही होगी। मोदी है तो देश है, मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है। मोदी की ही देन है, ‘जब अंतर्राष्ट्रीय ताकते भारत की ताकत को महसूस कर रही है। लेकिन कांग्रेस हो या सपा बसपा वे पाकिस्तानी भाषा बोल रहे है। बगल में खड़े सलीम महेवा कहते हैं वो योगी समर्थक हैं और सालों साल से बीजेपी को वोट देते आएं हैं लेकिन इस बार वो गठबंधन के साथ हैं। वजह यह है कि पार्टी ने हमारे बीच के काबिल नेताओं को जगह नहीं दी। सहजनवा की रंजना गौतम कहती है इस बार उनका राम के नाम पर पड़ेगा। जबकि सायरा कहती है ट्रिपल तलाक उनके लिए वरदान है, इसलिए उन्हें मोदी पसंद है। क्योंकि जब देश रहेगा तब हम भी रहेंगे।






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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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