सीहोर : हवन पूजन के साथ नौ दिवसीय श्रीराम राम का भव्य समापन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 18 मई 2024

सीहोर : हवन पूजन के साथ नौ दिवसीय श्रीराम राम का भव्य समापन

  • कलयुग में श्रीराम कथा भगवान का रूप है : महंत 108 उद्वावदास महाराज

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सीहोर। कथा के स्मरण मात्र से ही मनुष्य का कल्याण हो जाता है। प्रत्येक मनुष्य को श्रीराम कथा का श्रवण करना चाहिए तथा धर्म की राह पर चलना चाहिए। श्री राम कथा का महत्व बताते हुए कहा कि कथा का श्रवण करने से पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि कलयुग में श्रीराम कथा भगवान का रूप है, इसके सुनने मात्र से पापों का नाश होता है। उक्त विचार शहर के शुगर फैक्ट्री के समीपस्थ भगवान चित्रगुप्त मंदिर परिसर में जारी नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिन महंत 108 उद्वावदास महाराज ने यहां पर मौजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं से कहे। कथा के समापन पर हवन-पूजन का आयोजन किया गया था, इस मौके पर बड़ी संख्या में समाजजन और क्षेत्रवासी मौजूद थे। समापन अवसर पर भगवान श्रीराम के द्वारा रावण वध और भगवान राम का राज्य अभिषेक का विस्तार से वर्ण किया गया। समापन अवसर पर कायस्थ महासभा के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुमार सक्सेना, कार्यकारी अध्यक्ष शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने सभी का आभार व्यक्त किया।

 

महंत उद्वाव दास ने कहा कि संसार में बुराई चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों ना बन जाए। वह अच्छाई के सामने अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता है। अच्छाई और सच्चाई की हमेशा ही जीत के साथ होते हैं। पापियों के पाप का घड़ा एक दिन अवश्य भरता है। जिस वजह से उसका अंत बड़ा ही दुखद तरीके से होता है। उन्होंने कहा कि रावण वध के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या लौट गए। जहां उनका विधि विधान पूर्वक राज्याभिषेक किया गया। राम ने अपने प्रजा के सुख-सुविधा सहित सभी समस्याओं का निदान सुचारू तरीके से करते रहे। इनके शासन चलाने की नीति अत्यंत ही सरल थी। न्याय की उम्मीद लेकर आने वाले सभी इंसान को इंसाफ मिलता था। जहां दोषी पाए जाने वाले लोगों को सजा दी जाती थी। वहीं निर्दोष को सम्मान और आदर प्रदान किए जाते थे। आज भी इस संसार में लोग राम राज्य की कल्पना करते हैं। क्योंकि राम के शासन काल में किसी भी इंसान के साथ नाइंसाफी नही हुई। इनके दरबार में जो भी व्यक्ति पहुंचे। उनके साथ इंसाफ अवश्य हुआ। मानव जीवन को साकार करने का एक मात्र सहारा राम का नाम हे। इनके नाम का स्मरण मात्र ही लोगों को जीवन के सन्मार्ग पर ले जाते हैं।

 

हनुमान जी अपनी विन्रमता के कारण ही भगवान श्रीराम के आंखों के तारे रहे

महंत उद्वाव दास ने कहाकि अहंकारी मनुष्य का पतन हो जाता है और ऐसा पुरुष समाज में सम्मान भी नहीं पाता। प्रभु का स्मरण करने तथा सत्संग में भाग लेने से अहंकार का नाश होता है। प्रभु का ध्यान करने से मनुष्य पापों से दूर रहता है और उसका इस लोक के साथ ही परलोक भी सुधर जाता है। हनुमान जी अपनी विन्रमता के कारण ही भगवान श्रीराम के आंखों के तारे रहे। उनकी विन्रमता और स्वामी भक्ति के कारण वहां भक्तों के शिरोमणि कहलाए। हनुमान जी समुद्र मार्ग से लंका को प्रस्थान कर जाते हैं। मार्ग में कई बाधाएं उत्पन्न होती है। पर सभी को दूर करते हुए वहां विभीषण से मुलाकात होती है। जो माता सीता का तत्कालीन पता बताते हैं। तब हनुमान जी अशोक वन पहुंच कर श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका माता सीता को देते हैं। माता को समझाकर फल खाने के बहाने अशोक वाटिका का विध्वंस कर देते हैं। यह सुन रावण कई योद्धाओं को भेजता है। लेकिन, उनके मारे जाने पर मेघनाथ को भेजता है। जो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान को पकड़ लेता है और रावण की सभा में उपस्थित कराया जाता है। सभा में रावण कटु शब्द बोलते हुए उनके पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। प्रसंग के दरम्यान हनुमान जी विभीषण के आवासगृह को छोड़ते हुए रावण की सोने की लंका जला डालते हैं तथा समुद्र में अपनी पूंछ बुझाकर मैया सीता के पास पहुंचते हैं। जहां मैया से निशानी के तौर पर चूड़ामणि लेकर उन्हें सांत्वना देते हुए वापस रामा दल लौट आते हैं।

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