- कलयुग में श्रीराम कथा भगवान का रूप है : महंत 108 उद्वावदास महाराज
महंत उद्वाव दास ने कहा कि संसार में बुराई चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों ना बन जाए। वह अच्छाई के सामने अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता है। अच्छाई और सच्चाई की हमेशा ही जीत के साथ होते हैं। पापियों के पाप का घड़ा एक दिन अवश्य भरता है। जिस वजह से उसका अंत बड़ा ही दुखद तरीके से होता है। उन्होंने कहा कि रावण वध के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या लौट गए। जहां उनका विधि विधान पूर्वक राज्याभिषेक किया गया। राम ने अपने प्रजा के सुख-सुविधा सहित सभी समस्याओं का निदान सुचारू तरीके से करते रहे। इनके शासन चलाने की नीति अत्यंत ही सरल थी। न्याय की उम्मीद लेकर आने वाले सभी इंसान को इंसाफ मिलता था। जहां दोषी पाए जाने वाले लोगों को सजा दी जाती थी। वहीं निर्दोष को सम्मान और आदर प्रदान किए जाते थे। आज भी इस संसार में लोग राम राज्य की कल्पना करते हैं। क्योंकि राम के शासन काल में किसी भी इंसान के साथ नाइंसाफी नही हुई। इनके दरबार में जो भी व्यक्ति पहुंचे। उनके साथ इंसाफ अवश्य हुआ। मानव जीवन को साकार करने का एक मात्र सहारा राम का नाम हे। इनके नाम का स्मरण मात्र ही लोगों को जीवन के सन्मार्ग पर ले जाते हैं।
हनुमान जी अपनी विन्रमता के कारण ही भगवान श्रीराम के आंखों के तारे रहे
महंत उद्वाव दास ने कहाकि अहंकारी मनुष्य का पतन हो जाता है और ऐसा पुरुष समाज में सम्मान भी नहीं पाता। प्रभु का स्मरण करने तथा सत्संग में भाग लेने से अहंकार का नाश होता है। प्रभु का ध्यान करने से मनुष्य पापों से दूर रहता है और उसका इस लोक के साथ ही परलोक भी सुधर जाता है। हनुमान जी अपनी विन्रमता के कारण ही भगवान श्रीराम के आंखों के तारे रहे। उनकी विन्रमता और स्वामी भक्ति के कारण वहां भक्तों के शिरोमणि कहलाए। हनुमान जी समुद्र मार्ग से लंका को प्रस्थान कर जाते हैं। मार्ग में कई बाधाएं उत्पन्न होती है। पर सभी को दूर करते हुए वहां विभीषण से मुलाकात होती है। जो माता सीता का तत्कालीन पता बताते हैं। तब हनुमान जी अशोक वन पहुंच कर श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका माता सीता को देते हैं। माता को समझाकर फल खाने के बहाने अशोक वाटिका का विध्वंस कर देते हैं। यह सुन रावण कई योद्धाओं को भेजता है। लेकिन, उनके मारे जाने पर मेघनाथ को भेजता है। जो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान को पकड़ लेता है और रावण की सभा में उपस्थित कराया जाता है। सभा में रावण कटु शब्द बोलते हुए उनके पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। प्रसंग के दरम्यान हनुमान जी विभीषण के आवासगृह को छोड़ते हुए रावण की सोने की लंका जला डालते हैं तथा समुद्र में अपनी पूंछ बुझाकर मैया सीता के पास पहुंचते हैं। जहां मैया से निशानी के तौर पर चूड़ामणि लेकर उन्हें सांत्वना देते हुए वापस रामा दल लौट आते हैं।
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