भोपाल. शायर क़ाज़ी मलिक नवेद के दो काव्य संग्रह " एहवाले वाक़ई और फ़लकज़ार " का लोकार्पण कोहिफिज़ा में संपन्न हुआ। साहित्यिक संस्था " बज़्मे शायक़ीने अदब भोपाल " की जानिब से आयोजित कार्यक्रम में मुशायरा भी हुआ।। मुशायरा में जफर सहबाई ने सुनाया “हमारा दौर तो वह बेज़मीर क़ातिल है, दवा के वास्ते बीमारियां बनाता है” आरिफ अली ने कहा “हर हाथ में है कासा खुशामद का आजकल , अब भीख मांगने का तरीक़ा बदल गया “ मलिक नवेद ने पढ़ा “क़तरे क़तरे से मेरा रिश्ता था, फिर भी मैं मुद्दतों से प्यासा था “ “चल तो सकते थे मगर इश्क़ किया था हमने, उम्र भर कूचए दिलदार से आगे न गए साजिद प्रेमी ने सुनाया “मुझे गुनाह से नफ़रत है क्या किया जाए। मगर हवस तो यथावत है क्या किया जाए” शोएब अली खान शाद ने कहा “आशिक मिज़ाज हम भी हैं आशिक हैं चार के, इख़लास के वफ़ा के मोहब्बत के प्यार के” लोकार्पण समारोह में भोपाल के अतिरिक्त रायसेन, व कुरवाई के शायरों ने भी अपने कलाम से क़ाज़ी मलिक नवेद को बधाइयां दीं । मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की डायरेक्टर डॉक्टर नुसरत मेहंदी एवं समीक्षक इकबाल मसूद एवं विशेष अतिथि वरिष्ठ शायर श्रीजिया फारूकी ने मलिक नवेद की काव्य कृतियों पर व्याख्यान दिया । भोपाल नगर की कई साहित्यिक एवं अदबी संस्थाओं ने मलिक नवेद को बधाइयां दी एवं पुष्प हार पेश करके अपनी मोहब्बतें को प्रकट किया.
शनिवार, 25 मई 2024
Home
मध्य प्रदेश
साहित्य
भोपाल : लोकार्पण पश्चात मुशायरा : क़तरे क़तरे से मेरा रिश्ता था, फिर भी मैं मुद्दतों से प्यासा था
भोपाल : लोकार्पण पश्चात मुशायरा : क़तरे क़तरे से मेरा रिश्ता था, फिर भी मैं मुद्दतों से प्यासा था
Tags
# मध्य प्रदेश
# साहित्य
Share This
About आर्यावर्त डेस्क
साहित्य
Labels:
मध्य प्रदेश,
साहित्य
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Author Details
सम्पादकीय डेस्क --- खबर के लिये ईमेल -- editor@liveaaryaavart.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें