सीहोर : आज किया जाएगा श्रीराम कथा का समापन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 16 मई 2024

सीहोर : आज किया जाएगा श्रीराम कथा का समापन

  • भगवान रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा : महंत उद्वावदास महाराज

Ram-katha-sehore
सीहोर। भगवान रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। मानवता के उद्धार के लिए भगवान श्रीराम वन गए थे। उक्त बात शहर के शुगर फैक्ट्री स्थित सीहोर चित्रांश समाज के तत्वाधान में जारी संगीतमय नौ दिवसीय श्रीराम कथा के दौरान महंत उद्वावदास महाराज ने कहे। उन्होंने कहा कि राजा दशरथ ने बड़े ही दुखी हृदय के साथ श्रीराम चंद्र, माता सीता व लक्ष्मण को चौदह साल के वनवास पर जाने की अनुमित दी। इसके बाद भगवान श्रीराम चंद्र, माता सीता व लक्ष्मण वन-वन भटकते रहे। इसी दौरान जगत के पालनहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को गंगा पार करने के लिए केवट की मित्रता करनी पड़ी। केवट ने भगवान श्रीराम को गंगा पार करवाने से पहले उनके चरण धोकर चरण अमृत पीने की जिद पकड़ ली। भगवान श्रीराम द्वारा बार-बार केवट की जिद करने के बाद भी उसने भगवान की एक न मानी और आखिरकार भगवान को इस बात पर राजी कर ही लिया। इसके बाद केवट ने भगवान श्रीराम जी के चरण धोकर खुद भी चरण अमृत का पान किया और साथ-साथ ही साथ गांववासियों को भी बुलाकर उन्हें अमृत पान करवाया।

 

रघुकुल रीति सदा चल आई, प्राण जाई पर वचन न जाई

उन्होंने कहा कि अयोध्या के कोपभवन में कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वचन मांगा। जिस पर राजा दशरथ ने कहा कि रघुकुल रीति सदा चल आई, प्राण जाई पर वचन न जाई, यह सुनते ही कैकयी ने राजा दशरथ से दो वचनों में से, पहला वचन अपने पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी तथा दूसरा प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास। यह वचन सुनते ही महाराजा दशरथ के होश उड़ गए, जब प्रभु श्रीराम इस बात से अवगत हुए, तो वह पिता के वचन को निभाने के लिए वन जाने को सहर्ष तैयार हो गए। माता सीता व लक्ष्मण के साथ वन को चल दिए।


महंत उद्वावदास महाराज ने आगे कहा कि भगवान रामचंद्र ने अपने साथ आए मंत्री सुमंत को समझाकर रथ लेकर वापस राजा दशरथ के पास जाने के लिए रवाना किया। उसके बाद सीता, लक्ष्मण व निषादराज के साथ गंगा तट पर आए। केवट को गंगा पार जाने के लिए नाव लाने को कहा तो केवट ने लाने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि है नाथ मैं चरणकमल धोकर ही आप लोगों को नाव में चढ़ाऊंगा। फिर प्रभु की आज्ञा पाकर उसने एक लकड़ी के कठौते में पानी लाकर प्रभु के चरण कमलों को धोकर उस जल को पूरे परिवार को पी लिया। इसके बाद अपने पितरों को भवसागर से पार कराकर प्रभु को गंगा पार कराया। केवट को प्रभु राम उतराई में रत्नजडि़त अंगूठी देने लगे तो केवट ने नाव पार कराई नहीं ली। केवट ने कहा कि लौटते समय आप मुझे जो देंगे, उसे प्रसाद समझकर मैं सिर चढ़ाकर लूंगा। इसके बाद सीता ने गंगा मइया से आशीर्वाद लिया व प्रभु ने गणेश और शिव का स्मरण कर गंगा को शिश झुकाकर सखा निषादराज, लक्ष्मण व सीता के साथ वन के लिए चले।


शुक्रवार को नौ दिवसीय श्रीराम कथा का समापन

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के जिलाध्यक्ष प्रदीप कुमार सक्सेना ने बताया कि शहर के शुगर फैक्ट्री स्थित भगवान चित्रगुप्त मंदिर परिसर में चित्रांश समाज के द्वारा नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है। रात्रि आठ बजे से जारी कथा का समापन शुक्रवार की देर रात्रि को किया जाएगा। 

कोई टिप्पणी नहीं: