सीहोर : कुबेरेश्वरधाम में मनाया गया भगवान गणेश का जन्मोत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 6 जून 2024

सीहोर : कुबेरेश्वरधाम में मनाया गया भगवान गणेश का जन्मोत्सव

  • भक्ति पाने के लिए निर्मल मन समर्पण भाव की जरूरत होती-पंडित राघव मिश्रा

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सीहोर। भगवान गणेश रिद्धि सिद्धि के विवाह की कथा सुनने से हमारा दांपत्य जीवन सुखी रहता है। भक्ति में दिखावा मत करो भोले बाबा दिखावा आडंबर से प्रसन्न नहीं होते। उनकी भक्ति पाने के लिए निर्मल मन समर्पण भाव की जरूरत होती है। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए दिल से भक्ति करो। भगवान गणेश बुद्धि के देवता है। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी पांच दिवसीय शिव महापुराण में अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के पुत्र कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा महाराज ने कहे। गुरुवार को भगवान गणेश के विवाहोत्सव प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा करके शिव पार्वती को प्रसन्न किया। क्योंकि माता पिता ही ईश्वर का रूप है, जो माता पिता की सेवा से दूर रहता है। उन्हें शिव से मिलने की भक्ति करने की जरूरत नहीं है।


शिव महापुराण के दौरान तारकासुर के पुत्रों का वर्णन

चौथे दिन कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने कहा कि शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे, तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दु:ख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का। अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं। भगवान शिव की कथा का श्रवण करने और उनके नाम का मनन करने से हमारे दुख नष्ट होते है। विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि पांच दिवसीय संगीतमय शिव महापुराण कथा शुक्रवार को विश्राम दिवस है। कथा शाम चार बजे से आरंभ की जाएगी। 

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