जब विपक्ष उनकी सरकार की आयु के दिन गिन रहा है,तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के निर्माण के लिए सौ दिन के काम की कार्ययोजना भी बना ली है और उसकी पहली बानगी मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में ही देखने को मिली। इसमें संदेह नहीं कि चुनाव परिणाम आने के दिन से ही प्रतिपक्ष अफवाहों का आसमान अपने सिर पर उठाए हुए हैं। सरकार गठन से पहले से ही विपक्ष राजग में दरार डालने की अपनी पुरजोर कोशिश कर रहा है। पदों के बंटवारे को लेकर तेलुगुदेशम और जदयू के शीर्ष नेताओं को भड़का रहा है। यह जानते हुए भी कि दोनों ही हिलने वाले नहीं हैं लेकिन विपक्ष भी अपनी राजनीतिक फितरतों और दुरभिसंधियों के जाल बिछाने में जरा भी पीछे नहीं है। मीडिया में इस बात की खबरें उछल रही थीं कि वित्त मंत्रालय चंद्रबाबू नायडू मांग रहे हैं, रेल मंत्रालय अपने पार्टी के लिए नीतीश कुमार की अपेक्षा है। मोदी के तीसरे कार्यकाल में गडकरी मंत्री बनेंगे या नहीं, भाजपा की सीटें घटने के कारण कहीं जेपी नड्डा साइड लाइन तो नहीं कर दिए जाएंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। विपक्ष के सारे कयास मुंह के बल गिरे। विपक्ष का तर्क है कि नरेंद्र मोदी सहयोगी दलों से तालमेल नहीं बिठा पाएंगे और कुछ ही महीनों में सरकार गिर जाएगी लेकिन वे कदाचित यह भूल जाते हैं कि जो नरेंद्र मोदी बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप,जो बाइडेन और ब्लादिमिर पुतिन तक से बेहतर संबंध बना सकते हैं। रूस और अमेरिका से अपनी बात मनवा सकते हैं,वे अपने सहयोगी दलों से तालमेल कैसे नहीं बिठा पाएंगे। सच तो यह है कि विरोध के चश्मे पहनकर सच्चाई का मंजर भी धुंधला ही नजर आता है।
देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल और विभागों के वितरण में न तो कोई राजनीतिक दबाव नजर आया और न ही नरेंद्र मोदी के मनोबल में कोई कमी दिखी। सहयोगी दलों को अपने ढंग से विभाग देकर उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि साझ तो बूझ क्या और बूझ तो साझ क्या?इंडिया गठबंधन की सुई भले ही सेंगरे पर चले लेकिन राजग में ऐसा नहीं है। उसके सामने विकसित भारत का विराट लक्ष्य है।जो देश हित की सोचता है,उसके अपने हित गौण हो जाते हैं। वैसे भी मोदी किसी भी तरह की सियासी सौदेबाजी और पैंतरेबाजी के समक्ष झुकने वाले नहीं है। चुनाव परिणाम के बाद उन्होंने कहा था कि वे न तो हारे हैं और न कभी हारेंगे। किसानों को किसान सम्मान निधि की किश्त देकर और गरीबो ंके लिए तीन करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री आवास बनाने की योजना को मंजूरी देकर उन्होंने यह बताने और जताने का प्रयास किया है कि वे बहुत तेजी से देश को आगे ले जाना चाहते हैं जबकि विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहयोगी दलों को झुनझुना मंत्रालय पकड़ा दिया है।
विपक्ष और देश को बरगलाने में वह कितना सफल होगा,यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन मोदी के विजय रथ को रोकने में वह कितना गिरेगा,यह विचार का विषय अवश्य है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में उत्तर प्रदेश से प्रधानमंत्री समेत 10 मंत्री बनाए गए हैं,उनमें पांच पिछड़े, दो दलित और तीन अगड़ी जाति के नेता शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पीडीए फार्मूले से उसे बड़ी राजनीतिक शिकस्त मिली है, केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन में जातीय संतुलन को साधने का एक भी अवसर मोदी ने अपने हाथ से जाने नहीं दिया है। तेली-वैश्य, जाट, कुर्मी, लोध, पासी , धनगर और सिख समाज के नेताओं को मंत्री बनाकर यूपी के गढ़ को मजबूती देनेका यह प्रयास विपक्ष को भरपूर झटका देने वाला है। राजनाथ सिंह और कीर्तिवर्धन सिंह के जरिए जहां क्षत्रिय समाज को और जितिन प्रसाद के माध्यम से ब्राह्मण समाज को भाजपा से जोड़ने का प्रयास अगले चुनाव में रंग लाएगा, इसकी उम्मीद तो की ही जा सकती है।
यह तो रही यूपी की बात,उनकी कोशिश तो अपने मंत्री मंडल में उत्तर,दक्षिण,पूरब-पश्चिम के हर उस राज्य को मंत्री देने की रही है,जहां भाजपा या उसके सहयोगी दल का कोई प्रत्याशी जीता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे मंत्रिमंडल में जहां 33 नये चेहरों को महत्व दिया है, वहीं छह मंत्री ऐसे बनाए हैं जो प्रख्यात राजनीतिक परिवारों से संबंध रखते हैं। जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र हैं, रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं। चिराग पासवान बिहार के लोकप्रिय नेता रामविलास पासवान के बेटे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू और महाराष्ट्र के वरिष्ठ राकांपा नेता एकनाथ खडसे की पुत्रवधू रक्षा खडसे को केंद्रीय मंत्री बनाकर यह बात साफ कर दी है कि वह राजनीति की दिग्गज हस्तियों का सम्मान करना जानते हैं। कैबिनेट में पहली बार तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर और एचडी कुमार स्वामी को शामिल किया गया है।
मंत्रिमंडल के गठन में सहयोगी दलों को भी पर्याप्त महत्व दिया गया है। तेलुगु देशम पार्टी से के. राममोहन नायडू और पी. चंद्रशेखर, जदयू के ललन सिंह और रामनाथ ठाकुर, रालोद के जयंत चौधरी, लोजपा के चिराग पासवान और जद (एस) के एच.डी. कुमारस्वामी को मंत्री बनाकर प्रधानमंत्री ने विपक्ष को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह अपने सहयोगियों का साथलेना ही नहीं, उन्हें पर्याप्त आदर देना भी जानते हैं। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में योग्यता और कार्यकुशलता का पूरा ध्यान रखा है। 72 सदस्यीय उनकी मंत्रिपरिषद में 30 कैबिनेट मंत्रियों में से छह वकील हैं, तीन एमबीए डिग्री धारक हैं और 10 स्नातकोत्तर हैं। कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी, जे पी नड्डा, पीयूष गोयल, सर्बानंद सोनोवाल, भूपेंद्र यादव और किरेन रीजीजू के पास जहां कानून की डिग्री है, वहीं राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, निर्मला सीतारमण, एस. जयशंकर, धर्मेंद्र प्रधान, डॉ. वीरेंद्र कुमार, मनसुख मांडविया, हरदीप सिंह पुरी, अन्नपूर्णा देवी और गजेंद्र सिंह शेखावत स्नातकोत्तर हैं। अपनी मंत्रिपरिषद में दूसरे कार्यकाल के 19 कैबिनेट मंत्रियों समेत 34 मंत्रियों पर पुन: विश्वास जताना अपने आप में बड़ी बात है।
राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री, अमित शाह को गृह मंत्री, निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री और एस जयशंकर को विदेश मंत्री के पद पर बरकरार रखकर उन्होंने दुनिया को यह संदेश भी दिया हैकि भारत को विकसित देश बनाने की उनकी अवधारणा बदस्तूर कायम है और पूरी दृढ़ता से वे उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कृषि और किसान कल्याण एवं ग्रामीण विकास विभाग, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा को स्वास्थ्य , रसायन व उर्वरक विभाग और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ऊ र्जा विभाग देकर यह साबित करने की कोशिश की है कि उनके फैसले हमेशा सुचिंतित ही होते हैं। नितिन गडकरी को सड़क परिवहन मंत्री और धर्मंद्र प्रधान को शिक्षा मंत्री बनाए रखकर उन्होंने गडकरी और उनके बीच मतभेद की हवा उड़ाने वाल ेविपक्षी दलोंकी हवा निकाल दी है। विपक्ष को ऐतराज है कि मोदी ने जीतन राम मांझी को मंत्री क्यों बना दिया। दरअसल वह अतीत की कब्र से विवादों के गड़े मुर्दे उखाड़ रहा है। उसे जम्मू-कश्मीर में मोदी सरकार के शपथ ग्रहण का जश्न मना रहे लोगों पर एक वर्ग के हमले नजर नहीं आते लेकिन जम्मू के रियासी जिले में तीर्थयात्रियों की बस पर आतंकी हमले में सरकार की विफलता जरूर नजर आती है लेकिन जिस समय सरकार शपथ ले रही थी, उसी बीच बस पर हमला कोई षड़यंत्र तो नहीं, जांच तो इसकी भी होनी चाहिए। खेर, सरकार इस दिशा में उचित समय पर उचित निर्णय लेगी लेकिन विपक्ष को अपनी शरारतों पर फिलहाल लगाम लगानी चाहिए। यही लोकहित का तकाजा भी है।
सियाराम पांडेय ‘शांत’
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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