पीसीओडी-पीसीओएस क्या है ?
हार्मोनल असंतुलन के कारण होने वाली इस बीमारी में महिलाओं के अंडाशय (ओवरी) पर प्रभाव पड़ता है. अक्सर महिलाओं में मेंस्ट्रुअल साइकिल में दोनों ओवरी एक एक करके फर्टिलाइज़्ड एग रेडी करते हैं. लेकिन जिन महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है उनका अंडाशय हर बार पीरियड्स साइकिल के दौरान ऐसा अंडा रिलीज करता है जो अभी परिपक्व नहीं हुआ है और फिर वही सिस्ट बन जाता है.
वैश्विक स्तर पर बढ़ती जा रही है पीसीओडी की समस्या
पीसीओडी हार्मोनल असंतुलन से उत्पन्न होने वाली एक समस्या है जो विश्व भर में लगभग 10% महिलाओं को प्रभावित कर चूका है और कई बार उचित समय पर इसका इलाज न होने पर यह निःसंतानता की वजह भी बन सकता है. इस बीमारी की शिकार होने वाली महिलाओं में मुख्यतः 20-35 वर्ष की औरतें शामिल हैं. इसका उपचार केवल दवाइयों से करना संभव नहीं है आपको अपनी लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना होगा तभी यह रोग जड़ से समाप्त हो सकती है.
पीसीओडी से होने वाली परेशानी
इस रोग का बढ़ता दायरा कई महिलाओं के माँ बनने के सपने में रुकावट बन जाता है और ताउम्र निराशा और अवसाद का कारण बन जाता है. महिलाओं के चेहरे और छाती पर अनचाहे बाल आने लगते हैं और पीरियड्स में अनियमितता देखी जाती है. महिलाओं में वजन का बढ़ना, डायबिटीज आदि जैसी गंभीर समस्या भी देखी जा सकती है.
पीसीओडी की बढ़ती समस्या का कारण क्या है ?
भारत जैसे देश में आज भी कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ अक्सर महिलाएं अपने रिप्रोडक्टिव लाइफ के बारे में खुलके बात नहीं करती हैं इसलिए अगर ऐसी कोई समस्या उन्हें होती भी है तो वो उससे अनजान होती हैं और धीरे धीरे जब यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है और गर्भधारण में रुकावट उत्पन्न करती है तब उन्हें इसके बारे में पता चलता है. आजकल लोगों का खानपान का तरीका, जीवन जीने का तरीका इसके पीछे का एक बड़ा कारण है जिसमे लोगों की फिजिकल एक्टिविटी कम होती जा रही है और मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है ऐसे में हार्मोनल रोगों से ग्रसित मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
पीसीओडी का उपचार
डॉ चंचल शर्मा इस रोग के बारे में बताते हुए कहती हैं कि इसका कोई निर्धारित उपचार तो संभव नहीं है लेकिन आप अगर कुछ सावधानियां बरते तो इससे खुद को सुरक्षित रख सकती हैं, जैसे आप अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं, प्राकृतिक रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करें, प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फ़ूड आइटम्स से बचने की कोशिश करें, नियमित योग या व्यायाम करें, और किसी स्वास्थ्यसेवा प्रदाता की मदद से अपनी समस्या की जांच कराएं और उचित दवाओं का सेवन करें. ऐसा करने से आप इस रोग के हानिकारक प्रभावों से बच सकती हैं और भविष्य के जोखिम को कम करके एक बेहतर जीवन जी सकती है.
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