- वीपी सरकार के ओबीसी आरक्षण लागू करने का जनता दल के बाद बसपा उठाती चली आ रही है फायदा
फतेहपुर। दोआबा की सरजमीं पर जातीय फैक्टर के सहारे ढाई दशक से भी ज्यादा समय से अपनी सियासी पकड़ का बेहतर अहसास कराने वाली बसपा इस चुनाव के चर्चा बाजार से ही आखिर तक गुम नजर आई। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सरकार में ओबीसी आरक्षण लागू होने पर इस व्यवस्था का लाभ जनता दल के उठाने के बाद बेहतर तरीके से बसपा ही उठाती रही जिसने जातीय फैक्टर के सहारे जीत का रास्ता इजाद किया। यह दीगर बात रही कि उसे इस प्रयास में महज दो जीत ही हासिल हो सकीं। इस बार नीले झंडे वाली इस पार्टी के हालात शुरू से लेकर आखिर तक अपनी सियासी चमक से अलहदा नजर आए’। यही कारण रहा कि अबकि बसपा के नीला झंडा के लहराने में वह बात नजर नहीं आई जिस पर अभी तक विरोधियों की आंखें टिकती रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार में 13 अगस्त 1990 को ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी हुई थी। उसी के बाद इस सीट का भी उम्मीदवार चयन का मिजाज जातिगत भागीदारी के हिसाब से तय होने लगा। ओबीसी आरक्षण वर्ष 1989 के चुनाव में जनता दल के लाभ उठाने के बाद इस व्यवस्था का फायदा सबसे पहले बसपा ने ही उठाया। वर्ष 1996 से वर्ष 2019 के बीच हुए चुनाव में हरेक पार्टी ने इसी जाति का ट्रंप खेलना मुनासिब समझा। इसमें बसपा की बात करें तो वह अपने कैडर के साथ मौका ए हालात के ट्रंपकार्ड खेलने के साथ जातीय फैक्टर के सहारे चुनाव दर चुनाव गंगा व यमुना के बीच बसे इस जिले में अपनी सियासी पकड़ का लगातार अहसास कराती चली आई। ऐसे में इस चुनाव में भी पार्टी से किसी बङे करिश्में की भले ही उम्मीद नहीं की गई लेकिन यह भी सोंचा नहीं गया था कि वर्ष 1996 व 2004 के चुनाव में फतह का झंडा गाङने वाली यह पार्टी बाकी के चुनाव में नंबर दो पर काबिज रही। आंकङों पर, वर्ष 1996 के चुनाव में बसपा से विशंभर प्रसाद निषाद को यहां की जनता ने अपना समर्थन लुटाया। वर्ष 1998 के चुनाव में आरक्षण की मलाई भाजपा को खाने को मिली और यहां से डॉक्टर अशोक पटेल चुनकर संसद पहुंचे। ठीक एक साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में भी डॉक्टर साहब को पसंद किया गया। वर्ष 2004 का चुनाव आया तो फिर बसपा का नीला रंग पार्टी के कैडर वोटर और प्रत्याशी की बिरादरी के साथ मौका एक हालात के सियासी ट्रंप खेलते हुए अपना झंडा बुलंद करने में कामयाब रहा। वर्ष 2009 के चुनाव में सपा उम्मीदवार राकेश सचान को यहां की जनता का साथ मिला। राकेश इस वक्त भाजपा में हैं जिनकी बिरादरी में अच्छी खासी पकड़ है। वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव में भी बसपा को रनिंग ट्रैक पर दौड़ते देखा गया। यही कुछ ऐसे सियासी पहलू हैं जो मायावती की पार्टी को इस चुनाव से दूर करती दिखाई दे रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बसपा शुरू से ही अपनी किस्मत पर खुद दांव लगा कर चल रही है। बसपा ने सपा के बाद अपना उम्मीदवार उतारा। इसके बावजूद जातिगत समीकरणों पर गौर नहीं किया गया। भाजपा ने चुनाव में दो बार से यहां संसद साध्वी निरंजन ज्योति को मैदान में उतारने के बाद सपा ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को उम्मीदवार बनाकर जनता के बीच पेश कर दिया। नरेश जिले के अमौली ब्लाक के रहने वाले हैं। भाजपा की बात करें तो उसका भी दावा कुर्मी बिरादरी पर बनता नजर आ रहा है क्योंकि पूर्व सांसद राकेश सचान के साथ विधायक राजेंद्र सिंह पटेल व जय कुमार सिंह जैकी के कंधे पर भी इस चुनाव की जिम्मेदारी रही। ऐसे में बसपा को कुर्मी बिरादरी पर दांव नहीं खेलना था लेकिन ऐसा किया गया और डॉक्टर मनीष सचान को पार्टी सिंबल देकर मैदान में उतार दिया गया। राजनीतिक जानकार ऐसे ही कुछेक पॉइंट को बसपा के बैकफुट का कारण मान रहे हैं।
अब तक हुए चुनाव में बसपा की परफारमेंस-
वर्ष पार्टी जीतने वाले को मिले मत हारी पार्टी हारने वाले को मिले मत
1996 बसपा 135043 भाजपा 111569
1999 भाजपा 142911 बसपा 141848
2004 बसपा 163568 सपा 111000
2009 सपा 218953 बसपा 166885
2014 भाजपा 367835 बसपा 485994
2019 भाजपा 556040 बसपा 367835
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